शनिवार, 1 मई 2021

रमज़ान हेल्प लाइन: आपके सवालों का जवाब दे रहे हैं मुफ्ती साहब

बेरोज़ेदार को भी खुलेआम खाने पीने की इजाज़त नहीं

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। शरीयत ने जिन लोगों को रोजा न रखने की इजाजत दी है या जो बेरोज़ेदार हैं क्या वो खुलेआम  सबके सामनेे खा पी सकते है ? यह सवाल रेवड़ीतालाब से शमीम ने रमज़ान हेल्पलाइन में किया तो जवाब में उलेेमा ने कहा कि बेरोज़ेदार को भी खुलेआम खाने पीने की इजाज़त शरीयत में नहीं दी गयी है। चाहे उसे शरीयत रोज़ा न रखने की छुट देता हो या न देता हो। रमज़ान अली ने सवाल किया, रमजान के रोजे की नीयत किस तरह से की जाती है। इस पर उलेमा ने जवाब दिया, नीयत दिल के इरादे  का नाम है मगर जुबान से कह लेना अफज़ल है अगर रात में नीयत करें तो यूं कहे "नवैतु अन असू म गदन लिल्लाहि तआला मिन फ रजि रमजान"  और दिन में नीयत करें तो यूं कहे "नवैतु अन असू म हाजल यौम लिल्लाहि तआला मिन फरजिरमाजना"।

रमज़ान हेल्प लाइन में आये इन सवालों का जवाब मुफ्ती बोर्ड के सदर मुफ्ती मौलाना अब्दुल हादी खां हबीबीसेक्रेटरी मौलाना हसीन अहमद हबीबी व मदरसा खानमजान के उस्ताद मौलाना अज़हरुल कादरी ने दिया।

इन नम्बरों पर होगी रहनुमाई

9415996307, 9450349400, 9026118428, 9554107483



शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

इमाम हसन की शान में सजी महफ़िल

शायरों ने पेश किया कलाम, नमाज़ इफ़्तार और हुई दुआएं

वराणसी(दिल इंडिया लाइव)। 17 रमज़ान को मस्जिद मीर नज़ीर औरंगाबाद में क़दीमी महफ़िल का आयोजन किया गया। मेहफ़िल के संयोजक हाजी फरमान हैदर ने बताया के हर साल इस मेहफ़िल में बड़ी संख्या मे लोग शिरकत करते थे लेकिन कोरोना और लॉकडाउन के चलते सोशल डिस्टेंसिंग के साथ कुछ ही लोगों ने शिरकत कर रवायत को क़ायम रखा। महफ़िल की सदारत मौलाना ज़हीन हैदर ने की, मौलाना बाक़र रज़ा बलियवी ने नमाज़ अदा कराई। नमाज़ के बाद कोरोना के खातमे के लिए दुआ ख्वानी का भी आयोजन हुआ।

इस अवसर पर शायरों दिलकश ग़ाज़ीपुरी, बाकर बलियवी, शाद सिवानी, ज़ैन बनारसी, आमिर चंदौलवी, नक़ी बनारसी, नज़ाकत बनारसी, नबील बनारसी ने कलाम पेश किया। अंत में मस्जिद के मोतवल्ली ने लोगों का शुक्रिया अदा किया। हाजी फरमान हैदर ने बताया के शनिवार 18 रमज़ान की शाम से मौला अली की शहादत पर मजलिस मातम, अलम, ताबूत का सिलसिला शुरू होगा जो 21 रमज़ान मंगलवार की शाम तक चलेगा।

ज़कात दोगे तो माल नहीं होगा बर्बाद


रमज़ान का पैग़ाम-16

(30-04-2021)

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। ज़कात देना हर साहिबे नेसाब पर वाजिब है। साहबे नेसाब वो है जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी में से कोई एक होया फिर बैंकबीमापीएफ या घर में इतने के बराबर साल भर से रकम रखी हो तो उस पर मोमिन को ज़कात देना वाजिब है। ज़कात शरीयत में उसे कहते हैं कि अल्लाह के लिए माल के एक हिस्से को जो शरीयत ने मुकर्रर किया है मुसलमान फक़़ीर को मालिक बना दे। ज़कात की नीयत से किसी फक़़ीर को खाना खिला दिया तो ज़कात अदा न होगीक्योंकि यह मालिक बनाना न हुआ। हां अगर खाना दे दे कि चाहे खाये या ले जाये तो अदा हो गई। यूं ही ज़कात की नियत से कपड़ा दे दिया तो अदा हो गई। 

ज़कात वाजिब के लिए चंद शर्ते :

मुसलमान होनाबालिग होनाआकि़ल होनाआज़ाद होनामालिके नेसाब होनापूरे तौर पर मालिक होनानेसाब का दैन से फारिग होनानेसाब का हाजते असलिया से फारिग होनामाल का नामी होना व साल गुज़रना। आदतन दैन महर का मोतालबा नहीं होता लेहाज़ा शौहर के जिम्मे कितना दैन महर हो जब वह मालिके नेसाब है तो ज़कात वाजिब है। ज़कात देने के लिए यह जरूरत नहीं है कि फक़़ीर को कह कर दे बल्कि ज़कात की नीयत ही काफी है।

फलाह पाते हैं जो ज़कात देते है

नबी-ए-करीम ने फरमाया जो माल बर्बाद होता है वह ज़कात न देने से बर्बाद होता है और फरमाया कि ज़कात देकर अपने मालों को मज़बूत किलों में कर लो और अपने बीमारों को इलाज सदक़ा से करो और बला नाज़िल होने पर दुआ करो। रब फरमाता है कि फलाह पाते हैं वो लोग जो ज़कात अदा करते है। जो कुछ रोज़ेदार खर्च करेंगे अल्लाह ताला उसकी जगह और दौलत देगाअल्लाह बेहतर रोज़ी देने वाला है। आज हम और आप रोज़ी तो मांगते है रब से मगर खाने किइफ्तार कि खूब बर्बादी करके गुनाह भी बटौरते हैइससे हम सबको बाज़ आना चाहिए। 

उन्हे दर्दनाक अज़ाब की खुशखबरी सुना दो

अल्लाह रब्बुल इज्जत फरमाता है जो लोग सोनाचांदी जमा करते हैं और उसे अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते उन्हें दर्दनाक अज़ाब की खुशखबरी सुना दो। जिस दिन जहन्नुम की आग में वो तपाये जायेंगे और इनसे उनकी पेशानियांकरवटें और पीठें दागी जायेगी। और उनसे कहा जायेगा यह वो दौलत हैं जो तुमने अपने नफ्स के लिए जमा किया था। ऐ अल्लाह तू अपने हबीब के सदके में हम सबका रोज़ा कुबुल कर ले और हम सबको ज़कात देने की तौफीक दे..आमीन।

   

               मौलाना शमशुद्दीन साहब

{इमामजामा मस्जिद कम्मू खानडिठोरी महालवाराणसी}

ज़कात और खैरात में क्या फर्क है?


रमज़ान हेल्प लाइन: आपके सवालों का जवाब दे रहे हैं मुफ्ती

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। ज़कात और खैरात में क्या फर्क हैगैर मुस्लिम को इसमें से क्या दिया जा सकता है? पुुरानाापुल के वकील अंसारी के इस सवाल पर मुफ्ती बोर्ड के उलेमाओ ने जवाब दिया कि ज़कात मज़हबी टैक्स है इसलिए उसे अपने ही मज़हब के साहिबे निसाब को दिया जाना चाहिए। ज़कात गैर मुस्लिम को नहीं दिया जा सकताजबकि खैरात मुस्लिम व गैर मुस्लिम दोनों को दिया जा सकता है।

 ईद का चांद अगर कोई ख्वातीन देखे तो क्या वो चांद कमेटी के सामने गवाह बन सकती हैयह सवाल था मिर्जापुर से कुलसुम का। जवाब में उलेमा ने कहा कि ख्वातीन अगर चांद देखती है तो वो गवाह हो सकती है। ईद के चांद के लिए हुक्म है कि कम से कम दो लोग गवाह हों। अगर एक ही ने देखा तो वो गवाह नहीं हो सकती चाहे वो मर्द हो या ख्वातीन। अगर दो ख्वातीन ने चांद देखा है तो गवाह बन सकती है। 

रमज़ान हेल्प्लाइन में आये सवालो का जवाब दिया मुफ्ती बोर्ड के सदर मौलाना अब्दुल हादी खां हबीबी, सेक्रेटरी मौलाना हसीन अहमद हबीबी व मदरसा खानम जान के उस्ताद मौलाना अज़हरुल कादरी ने

इन नम्बरों पर होगी आपकी रहनुमाई

इन नम्बरों पर बात करके आप अपनी दुश्वारी का हल निकाल सकते हैं। मोबाइल नम्बर ये है- 9415996307, 9450349400, 9026118428,  9554107483

गुरुवार, 29 अप्रैल 2021

रमज़ान बना मिसाल

रोजेदारों ने किया हिन्दू बहन का अंतिम संस्कार

मेरठ (दिल इंडिया लाइव)। कोई हिन्दू, न मुसलमां, न ईसाई है, गुलशने हिंद में मिलजुल कर बहार आयी है...। 

कोरोना महामारी से पैदा हुए हालात में ग़म और खौफ के बीच


सौहार्द का मंज़र भी दिखाई दिया। घर से शमशान तक हिन्दुस्तानी तहज़ीब तब देखने को मिली जब एक हिन्दू बहन की अर्थी लिये मुसिलम रोज़ेदार सड़क पर नज़र आये।

 दरअसल कोविडा संकट काल में अपनों ने भी मुंह मोड़ लिया है। सुख-दुख की क्या पूछना, जो अपना होने का दम भरते नहीं थकते थे, आज के हालात में वो अपनों को कंधा देने तक नहीं आ रहे हैं। एक ओर जहां अपने दूरी बना रहे हैं, वहीं मुस्लिम समाज के लोगों ने हिंदू बहन का अंतिम संस्कार कराकर सौहार्द की मिसाल भी पेश की है।

हापुड़ रोड रामनगर निवासी सुषमा अग्रवाल कई दिनों से बुखार से ग्रस्त थीं। वह घर में रहकर इलाज करा रही थीं। बुधवार सुबह उनकी मृत्यु हो गई है। जब अपने नहीं पहुँचे तो उनकी शव यात्रा में मुस्लिम समाज के लोग बड़ी संख्या में एकत्रित हुए। उन्होंने सूरजकुंड पहुंचकर अंतिम संस्कार कराया। शव यात्रा में शामिल परवेज ने बताया कि हम सब पड़ोसी हैं और परिवार के साथ रहते हैं।

एक-दूसरे का सुख दु:ख में पूर्ण सहयोग करते हैं। आज इस मुश्किल घड़ी में अपने पड़ोसियों को सहयोग के लिए उनके साथ आए हैं। इस दौरान शकील, अहमद अंसारी, तसलीम, जावेद सिद्दीकी आदि ने कहा कि हमने कोई एहसान नहीं किया है बाल्कि इस्लाम में पड़ोसी के जो अधिकार है बस उसे ही अदा किया है।


मुफ्ती साहब एतेकाफ फर्ज़ है या वाजिब

रमज़ान हेल्प लाइन: आपके सवालों का जवाब दे रहे हैं मुफ्ती साहब

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। रमज़ान हेल्प लाइन में शफीक ने फोन किया अर्दली बाज़ार से, मुफ्ती साहब एतेकाफ रखना फर्ज़ है या वाजिब? उलेमा ने कहा कि एतेकाफ न फर्ज है और न ही वाजिब, बाल्कि एतेकाफ सुन्नते कैफाया है। इब्राहिम ने सरैया से फोन किया, एतेकाफ का मायने क्या हैं? उलेमा ने कहा कि एतेकाफ का लफ्ज़ी मायनेअल्लाह की इबादत में बैठना या खुद को अल्लाह की इबादत के लिए वक्फ कर देना है। 20 रमज़ान से ईद का चांद होने तक मोमिनीन मस्जिद में खुद को अल्लाह के लिए वक्फ कर देते है जिसका नाम एतेकाफ है। एतेकाफ सुन्नते कैफाया है यानी मुहल्ले का कोई एक भी बैठ गया तो पूरा मुहल्ला बरी अगर किसी ने नहीं रखा तो पूरा मुहल्ला गुनाहगार होगा और पूरे मोहल्ले पर अज़ाब नाज़िल होगा। 

रमज़ान हेल्प लाइन में आये इन सवालों का जवाब मुफ्ती बोर्ड के सदर मुफ्ती मौलाना अब्दुल हादी खां हबीबीसेक्रेटरी मौलाना हसीन अहमद हबीबी व मदरसा खानमजान के उस्ताद मौलाना अज़हरुल कादरी ने दिया।

इन नम्बरों पर होगी रहनुमाई

9415996307, 9450349400, 9026118428, 9554107483

बुधवार, 28 अप्रैल 2021

दुनिया जिसे भूख कहती है, इस्लाम ने उसे इबादत बना दिया


रमज़ान का पैग़ाम-15 

(28-04-2021)

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। दुनिया जिस भूख से परेशान होती है उसी भूख को इस्लाम ने इबादत बना दिया। इस्लाम भूखे प्यासे रहकर अल्लाह की इबादत के ज़रिये रोज़ेदारों को यह दिखाना चाहता है कि भूखे और प्यासे रहने का क्या दर्द है। जो गरीब है जिनके पास खाने को खाना नहीं पीने के लिए पानी नहीं हैमुफलिसी में जिन्दगी गुज़ार रहे हैं वो किस तरह अपनी जिन्दगी काट रहे हैं मोमिन इस बात को रोज़ा रखकर समझता है और रमज़ान में उन भूखे प्यासे जिन्दगी गुज़ारने वालेगरीबों मिसकीनों के लिए इस्लामी टैक्स ज़कात और फितरा निकालता है ताकि उनकी भूख और प्यास तो मिटे ही साथ ही उन गरीबों की ईद भी मन जाये। उलेमा कहते हैं कि तमाम इबादतों में तो इंसान दिखावा कर सकता है मगर रोजा ही सिर्फ एक ऐसी इबादत है जिसमें किसी तरह का कोई दिखावा नहीं कर सकता। यही वजह है कि रब को राज़ी करने के लिए तमाम छोटे-छोटे बच्चे भी लाख मना करने के बावजूद रोज़ा रखते हैं। सिर्फ खाने-पीने से बाज रहने का नाम ही रोज़ा नहीं हैबल्कि रोज़ा रखने वाला तमाम बुराइयों से भी दूर हो जाता है। अल्लाह और उसके रसूल के बताए रास्तों पर अमल करते हुए पूरा महीना कठोर इबादतों में गुज़ारता है। रोज़ादार को चाहिये कि वो रोज़े में जैसे खाना-पीना छोड़ता है वैसे ही झूठगीबतचुगलीबदग़्ाुमानीइल्ज़ाम तराशी और बद ज़ुबानी भी छोड़ दे। पैगम्बरे इस्लाम नबी-ए-करीम हजरत मोहम्मद मुस्तफा (स.) ने फरमाया कि अगर कोई लड़ाई करने पर तुमसे अमादा रहे तो तुम उससे कह दो कि में रोज़े से हूं। मैं लड़ाई-झगड़ा नहीं चाहता। इस्लामी किताबों में आया है कि जो रमज़ान का रोज़ा रखेगाउसे पहचानेगा और जिन गुनाहों से बचना चाहिये उससे बचाआज़ा का रोज़ा रखा तो उसकी वो गुनाह जो उसने पहले की है उसे खुदा माफ कर देगा। इसलिए रोज़ेदार का रोज़ा ढाल का काम करता है। तभी तो हदीस में है किजो बुरी बात को कहना और उस पर अमल करना न छोड़े तो उसके भूखा-प्यासा रहने की रब को कोई ज़रूरत नहीं है। बल्कि रब तो बंदे को भूखा प्यासा रोज़ा रखने के लिए बतौर इम्तेहान यह देखना चाहता है कि मेरा बंदा मुझ से कितनी मोहब्बत करता है जो रब और उसके रसूल से मोहब्बत करता है रब उससे मोहब्बत करता है। ऐ अल्लाह तू अपने हबीब के सदके में हम सब रोज़ेदारों को इबादत करनेरोज़ा रखने की तौफीक दे..आमीन।

 

           डा. शाह मेराज

{सदरइस्लामिक हैंडवाराणसी}

मझवा से पहले SP मुखिया अखिलेश यादव का बनारस में जोरदार स्वागत

Varanasi (dil India live). सपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अखिलेश यादव रविवार को बनारस पहुंचे। बनारस के लाल बहादुर शास्त्री अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट ...