शुक्रवार, 15 जुलाई 2022

जानिए भारतीय सेना के इस जांबाज ब्रिगेडियर की कहानी

'नौशेरा के शेर' मोहम्मद उस्मान की आज है यौमे पैदाइश

(15 जुलाई जयंती पर खास ) 




Shahin ansari

Varanasi (dil india live)। ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान जंग के मैदान में शहीद होने वाले बड़ी रैंक के पहले अफसर थे। बहादुरी ऐसी कि पाकिस्तानी सेना खौफ खाती थी। इंडियन आर्मी के इस अफसर को "नौशेरा का शेर" भी कहा जाता है। उस्मान ने वतन परस्ती की ऐसी मिसाल पेश की कि बंटवारे के दौरान पाकिस्तानी सेना का चीफ बनने का मोहम्मद अली जिन्ना का प्रस्ताव ठुकरा दिया। ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान पहले ऐसे अफसर थे,जिस जांबाज़ पर पाकिस्तान ने इनाम रखा था।

  भारतीय सेना के महान अफसर  ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का जन्म 15 जुलाई, 1912 को  आजमगढ़ में हुआ था। उनके पिता मोहम्मद फारूख पुलिस में आला अधिकारी थे जबकि मां जमीलन बीबी घरेलू महिला थीं। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा स्थानीय मरदसे में हुई और आगे की पढ़ाई वाराणसी के हरश्चिंद्र स्कूल तथा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में हुई। वह न सिर्फ अच्छे खिलाड़ी थे बल्कि ज़बरदस्त वक्ता भी थे। वीरता उनमें कूट-कूट कर भरी थी। तभी तो महज़ 12 साल की उम्र में वह अपने एक मित्र को बचाने के लिए कुएं में कूद पड़े थे और उसे बचा भी लिया था।

 देश के बंटवारे के समय जिन्ना और लियाकत खान ने मुसलमान होने का वास्ता देकर उनसे पाकिस्तान आने का आग्रह किया। साथ ही पाकिस्तान की सेना का प्रमुख बनाने का न्यौता भी दिया। मगर उन्होंने उस न्यौते को ठुकरा दिया और 1947-48 में पाकिस्तान के साथ पहले युद्ध में वे शहीद हो गए। साल 1932 में मोहम्मद उस्मान की उम्र महज 20 वर्ष थी। उस्मान जिस दौर में पल रहे थे, वो आजादी से काफी पहले का दौर था। उस्मान ने तभी सेना में जाकर देश के लिए कुछ करने का जज्बा दिल में पाल लिया था। यह वो दौर था जब भारत में ब्रिटिश हुकूमत थी। उस्मान के पिता चाहते थे कि बेटा सिविल सर्विस में जाकर खानदान का नाम ऊंचा करे। लेकिन उस्मान के ख़्वाब उनके पिता की सोच से अलग थे।

 20  वर्ष की उम्र में उस्मान को आर एम, रॉयल मिलिट्री एकेडमी में दाखिला मिल गया। उस वक्त पूरे भारत में केवल 10 लड़कों को इस मिलिट्री संस्थान में दाखिला मिला था। उस्मान उनमें से एक थे। तब भारत की अपनी मिलिट्री एकेडमी नहीं थी, इसलिए सेना में जाने वाले युवाओं को ब्रिटिश सरकार इंग्लैंड में रॉयल मिलिट्री एकेडमी भेजकर ट्रेनिंग करवाती थी। हालांकि इंग्लैंड की इस एकेडमी का यह आखिरी बैच था। उसी साल भारत में उत्तराखंड के देहरादून में पहली इंडियन मिलिट्री एकेडमी की स्थापना हो गई। उस्मान अपने पिता फारूख की उम्मीदों से उलट आर्मी अफसर बनने के लिए इंग्लैंड रवाना हो गए। वहां उन्होंने 3 साल तक मिलिट्री की कड़ी ट्रेनिंग ली। इंग्लैंड की रॉयल मिलिट्री एकेडमी में प्रशिक्षण पूरा करने के बाद एक साल उस्मान ने रॉयल मिलिट्री फोर्स में भी अपनी सेवाएं दीं।

 जिसके बाद वो भारत लौट आए। साल 1935 में उस्मान को 10वीं बलूच रेजिमेंट की 5वीं बटालियन में पहली तैनाती मिली। वर्ल्ड वॉर के दौरान मोहम्मद उस्मान को अफगानिस्तान और बर्मा में भी तैनात किया गया। 30 अप्रैल, 1936 को उनको लेफ्टिनेंट की रैंक पर प्रमोशन मिला और 31 अगस्त, 1941 को कैप्टन की रैंक पर। अप्रैल 1944 में उन्होंने बर्मा में अपनी सेवा दी और 27 सितंबर, 1945 को लंदन गैजेट में कार्यवाहक मेजर के तौर पर उनके नाम का उल्लेख किया गया। बंटवारे से पहले साल 1945 से लेकर साल 1946 तक मोहम्म्द उस्मान ने 10वीं बलूच रेजिमेंट की 14वीं बटालियन का नेतृत्व किया। बलूच रेजीमेंट में तैनाती के दौरान वह युद्ध की हर बारीकी को सीख रहे थे। उस्मान शायद अपने जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई के लिए तैयार हो रहे थे। जो उन्हें बंटवारे के बाद पाकिस्तानी फौज से लड़नी थी। अपनी काबिलियत के दम पर उन्हें लागातार प्रमोशन मिलता रहा और कम उम्र में ही वो ब्रिगेडियर के पद पर क़ाबिज़ हो गए।

 साल 1947 में भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ। जिसके बाद दोनों देशों से हजारों लोग इस तरफ से उस तरफ गए और वहां से यहां आए। भारत-पाक बंटवारे के बाद हर चीज का बंटवारा हो रहा था। जमीन के टुकड़े के साथ ही विभागों और सेना की कुछ रेजिमेंट का बंटवारा किया गया। बलूचिस्तान पाकिस्तान का हिस्सा बना। बंटवारे के बाद मोहम्मद उस्मान बड़ी मुश्किल में आ गए। क्योंकि बलूच रेजिमेंट बंटवारे के बाद पाकिस्तानी सेना का हिस्सा बन गई। उस दौर में सेना में बहुत ही कम मुसलमान थे। जब बंटवारा हुआ तो मोहम्मद अली जिन्ना मुसलमान होने की वजह से ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को पाकिस्तान ले जाना चाहते थे।

 जिन्ना जानते थे कि उस्मान एक काबिल और दिलेर अफसर हैं, जो पाकिस्तानी सेना के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बावजूद इसके उस्मान ने पाकिस्तान जाने से साफ मना कर दिया। उसके बाद उस्मान को तोड़ने के लिए पाकिस्तानियों की ओर से काफी प्रलोभन दिए गए। इतना ही नहीं, मोहम्मद अली जिन्ना ने मोहम्मद उस्मान को पाकिस्तानी सेना का चीफ ऑफ आर्मी बनाने तक का लालच दिया था। मगर जिन्ना का ये लालच भी उस्मान के ईमान को हिला नहीं पाया। उस्मान ने भारतीय सेना में ही रहने का फैसला किया। जिसके बाद उन्हें डोगरा रेजिमेंट में शिफ्ट कर दिया गया। साल 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद कश्मीर आजाद रहना चाहता था। लेकिन पाकिस्तान ने बेहद चालाकी से वहां घुसपैठ की । पाकिस्तान की मंशा कश्मीर पर क़ब्ज़ा करने की थी।

 उस दौरान कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद की गुहार लगाई। इसके बाद कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया। भारतीय सेना ने कश्मीर को बचाने के लिए अपने सैनिकों को श्रीनगर भेज दिया। भारतीय सेना का पहला लक्ष्य पाकिस्तानियों से कश्मीर घाटी को बचाना था। भारतीय सेना ने कश्मीर के आम इलाकों को अपने कब्जे में लेना शुरू कर दिया। वहीं, पाकिस्तानी घुसपैठ करते हुए नौशेरा तक पहुंच गए थे। पाकिस्तानी फौज कश्मीर के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर चुकी थी। पुंछ में हजारों लोग फंसे हुए थे। जिन्हें निकालने का काम भारतीय सेना कर रही थी। उस समय ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान 77वें पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभाल रहे थे। वहां से उनको 50वें पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभालने के लिए भेजा गया। इस रेजिमेंट को दिसंबर, 1947 में झांगर में तैनात किया गया था।

 25 दिसंबर, 1947 को पाकिस्तानी सेना ने झांगर पर भी कब्जा कर लिया था। झांगर का पाक के लिए सामरिक महत्व था। मीरपुर और कोटली से सड़कें आकर यहीं मिलती थीं। लेफ्टिनेंट जनरल के. एम. करिअप्पा तब वेस्टर्न आर्मी कमांडर थे। उन्होंने जम्मू को अपनी कमान का हेडक्वार्टर बनाया। लक्ष्य था – झांगर और पुंछ पर कब्जा करना। कई अन्य अधिकारियों के साथ ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान भी कश्मीर में अपनी बटालियन का नेतृत्व कर रहे थे। उस्मान के लिए सब कुछ इतना आसान नहीं था। दुश्मन गुफाओं में छिपकर भारतीय सेना पर हमला कर रहे थे। उस्मान ने झांगर क्षेत्र को पाकिस्तानियों के कब्जे से आज़ाद कराने की क़सम खाई थी। जो उन्होंने पूरी भी की।

 ब्रिगेडियर उस्मान ने एक तो पाकिस्तान की सेना में सेनाध्यक्ष बनने की जिन्ना की पेशकश को ठुकरा दिया था। उसके बाद ऐसी बहादुरी दिखाई कि एक के बाद एक इलाके दुश्मन सेना के कब्जे से छुड़ा लाए। झांगर हासिल करने के बाद ब्रिगेडियर उस्मान ने नौशेरा को भी फतह कर लिया था। जिसके बाद से उन्हें ‘नौशेरा का शेर’ कहा जाने लगा। उस्मान की बहादुरी के आगे पाकिस्तानी सेना चारों खाने चित्त हो गई थी। ब्रिगेडियर उस्मान की क़ाबलियतऔर कुशल रणनीति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके नेतृत्व में भारतीय सेना को काफ़ी कम नुकसान हुआ था। जहां इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना के 1000 सैनिक मारे गए, तो वहीं भारतीय सेना के सिर्फ 33 सैनिक शहीद हुए थे। ब्रिगेडियर  उस्मान अपनी बहादुरी के कारण पाकिस्तानी सेना की आंखों की किरकिरी बन चुके थे। पाकिस्तान इतना बौखला गया था कि उसने उस्मान के सिर पर 50 हजार रुपए का इनाम भी रख दिया।

 पाक सेना घात लगाकर बैठी थी। 3 जुलाई, 1948 की शाम, पौने 6 बजे होंगे। उस्मान जैसे ही अपने टेंट से बाहर निकले कि उन पर 25 पाउंड का गोला पाक सेना ने दाग दिया। उनके अंतिम शब्द थे – हम तो जा रहे हैं, पर जमीन के एक भी टुकड़े पर दुश्मन का कब्जा न होने पाए। ब्रिगेडियर उस्मान 36वें जन्मदिन से 12 दिन पहले शहीद हो गए। ब्रिगेडियर के पद पर रहते हुए देश के लिए शहीद होने वाले उस्मान इकलौते भारतीय थे। उन्हीं की कुर्बानी का नतीजा है कि आज भी जम्मू-कश्मीर की घाटियां भारत का अभिन्न अंग हैं। 

 शहादत के बाद राजकीय सम्मान के साथ उन्हें जामिया मिल्लिया इस्लामिया क़ब्रगाह, नयी दिल्ली में दफनाया गया। उनकी अंतिम यात्रा में तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, केंद्रीय मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और शेख अब्दुल्ला शामिल थे। किसी फौजी के लिए आज़ाद भारत का यह सबसे बड़ा सम्मान था। यह सम्मान उनके बाद किसी भारतीय फौजी को नहीं मिला। मरणोपरांत उन्हें ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

 उस्मान अलग ही मिट्टी के बने थे। अपने फौजी जीवन में बेहद कड़क माने जाने वाले उस्मान अपने व्यक्तिगत जीवन में बेहद मानवीय और उदार थे। अपने वेतन का अधिकाँश हिस्सा गरीब बच्चों की पढ़ाई और जरूरतमंदों पर खर्च करते थे। वे नौशेरा में अनाथ पाए गए 158 बच्चों को उनको पढ़ाते-लिखाते और उनकी देखभाल करते थे। जब-जब भारतीय फौज की वतनपरस्ती और पराक्रम का जिक्र होगा, भारत माँ के सपूत ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का नाम बड़े अदब के साथ याद लिया जाएगा।

"लाई हयात आये , क़ज़ा ले चली , चले।

अपनी ख़ुशी से आये ना, अपनी ख़ुशी चले।।"

(लेखक सेन्टर फ़ॉर हार्मोनी एंड पीस से जुड़ी हुई हैं।)

गुरुवार, 14 जुलाई 2022

आमिर बने वैज्ञानिक अधिकारी


Varanasi (dil india live). मदरसा जामिया मतलउल उलूम कमनगढा के वरिष्ठ अध्यापक मुहम्मद अकील अंसारी के पुत्र मुहम्मद आमिर का भाभा आटॉमिक रिसर्च सेंटर (बीएआरसी) मुंबई में वैज्ञानिक अधिकारी के पद पर चयन होने पर मदरसा परिवार और बुनकर समाज गौरवान्वित महसूस कर रहा है। सभी खुश हैं कि आमिर ने बुनकर समाज का नाम रौशन किया है। आमिर का वैज्ञानिक अधिकारी बनने पर सामाजिक संस्था "सुल्तान क्लब" वाराणसी के अध्यक्ष डॉक्टर एहतेशामुल हक और सभी सदस्यों ने मुबारकबाद पेशकर उज्ज्वल भविष्य की कामना की है। मूलतः गाजीपुर जनपद के रहने वाले मुहम्मद आमिर ने पिछले दिनों आल इंडिया परीक्षा गेट में 45 वीं रैंक प्राप्त किया था। आमिर ने वाराणसी में रहकर अपनी पढ़ाई मुकम्मल की।

बुधवार, 13 जुलाई 2022

इनरव्हील मित्रम की नई टीम



Varanasi (dil india live). इनरव्हील क्लब वाराणसी मित्रम द्वारा द्वारिका होटल लंका, BHU ट्रॉमा सेंटर के सामने नवगठित टीम का शपथ ग्रहण समारोह मनाया गया। इसमें मुख्य अतिथि PAT अंजलि अग्रवाल गेस्ट ओफ़ ऑनर एसोसीएशन ट्रेज़रर अर्चना बाजपेई, ESO आशा अग्रवाल, कोऑर्डिनेटर रेणु कैला एवं अन्य क्लब की अतिथि मौजूद रहीं। मित्रम की सभी सदस्य इस समारोह में हर्षोल्लास से उपास्थित हुई। नवगठित टीम में नूतन रंजन ने अध्यक्ष पद की शपथ लिया, सेक्रेटेरी- चंद्रा शर्मा, वाइस प्रेसिडेंट- ममता तिवारी, ट्रेज़रर- सरोज राय, ISO- रीता कश्यप , एडिटर - उमा केशरी ने भी अपना पद ग्रहण का शपथ लिया। अध्यक्ष नूतन रंजन ने आए हुए अतिथियों का स्वागत करते हुए उन्हें बाधाइयाँ दीं। कार्यक्रम का संचालन शीला अग्रवाल एवं धन्यवाद ज्ञापन वाइस प्रेसिडेंट ममता तिवारी ने किया। इस अवसर पर क्लब की सभी सदस्य - रीता भट्ट, रानी केशरी, अमृता शर्मा, पल्लवी केशरी, सतरूपा केशरी, मंजु  केशरी , सुनीता अग्रवाल, रेखा अग्रवाल, निशा अग्रवाल, सुषमा अग्रवाल, अमृता रानी, पारुल, सरिता, संगीता अग्रवाल आदि मौजूद थीं।

एएमयू का बजट घटाये जाने से अल्पसंख्यक कांग्रेस में रोष

Varanasi (dil india live). अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का बजट घटाए जाने से कांग्रेसियों में रोष व्यक्त किया है। उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश महासचिव हसन मेंहदी कब्बन ने एक विज्ञप्ति में कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का बजट 62 करोड़ से घटाकर 9 करोड़ करने को लेकर अल्पसंख्यक कांग्रेस में रोष है।

कब्बन ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में छात्रसंघ चुनाव भी नहीं हो रहा हैं जिससे छात्रों की जायज मांग विश्वविद्यालय प्रशासन के समक्ष नहीं उठ पा रही हैं। यूपीए सरकार द्वारा प्रस्तावित एएमयू के चार बड़ केंद्रों को जल्द से जल्द शुरू करने की भी मांग की है अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का बजट 100 करोड़ करने की कांग्रेस जनों ने मांग की है। उन्होंने अपने बयान में आगे कहा कि सरकार बजट में कटौती कर अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय को बंद करने की साजिश रच रहा है। जल्द ही उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश अध्यक्ष शाहनवाज आलम के नेतृत्व में एक जन आंदोलन चलाया जाएगा जिसकी शुरुआत पहले मानव संसाधन मंत्रालय को ज्ञापन देकर की जाएगी।

पं. दीनदयाल चिकित्सालय में फिर से शुरु हुई दंत चिकित्सा सेवा

नये संसाधनों, उपकरणों के साथ दंत रोगियों का हो रहा निःशुल्क उपचार


Varanasi (dil india live). दंत रोगियों को अब इधर-उधर भटकने की जरूरत नहीं है। पं. दीन दयाल उपाध्याय चिकित्सालय में दंत चिकित्सा सेवा फिर से शुरू कर दी गयी है। नये संसाधनों के साथ शुरू की गयी इस सेवा का दंत रोगी लाभ उठा सकते हैं।

पं. दीनदयाल चिकित्सालय दंत विभाग की प्रभारी डा. निहारिका मौर्या ने बताया कि ओपीडी में हर रोज औसतन 40 से 50 मरीज देखे जा रहे हैं। जरूरत के अनुसार उनकी सर्जरी भी की जा रही है। उन्होंने बताया कि फिलहाल दंत चिकित्सा की सभी जरूरी सुविधाएं यहां उपलब्ध हैं। मसलन खराब दांत को निकालना, उनकी सफाई, फीलिंग आदि उपचार किये जा रहे हैं।

दांतोंके प्रति न बरतें लापरवाही


डा. निहारिका कहती हैं दांत हमारे शरीर के महत्वपूर्ण अंगों में से एक है। इसके प्रति बरती गयी लापरवाही न केवल हमारे स्वास्थ्य बल्कि व्यक्तित्व पर भी प्रभाव डालता है। शरीर के अंदर होने वाली कई बीमारियों का कारण खराब दांत और खराब मसूढ़े होते हैं। लिहाजा इनके प्रति सभी को संवेदनशील होना चाहिए। आम तौर पर दांत की बीमारियों की लोग अनदेखी करते हैं। चिकित्सक के पास तब जाते है जब उन्हें दांत या मसूढ़े में तेज दर्द होने लगता है, जबकि थोड़ी सी सावधानियों से हम दंत रोगों से बच सकते हैं। डा. निहारिका ने कहा कि दांतों को स्वस्थ बनाए रखने के लिए खाने के बाद उसे अच्छी तरह साफ करना जरूरी होता है। ऐसा न करने पर खुराक दांतों में फंस जाता है और कुछ समय बाद उसमें सड़ांध शुरू होजाती है। वह कहती हैं कि एक ही ब्रश कई महीनों तक इस्तेमाल नहीं किया जाना चाहिए। उसे समय-समय पर बदलते रहना चाहिए ताकि खराब ब्रश दांतों व मसूढ़ों को नुकसान न पहुंचा सकें।

 यहां करें सम्पर्क

डा. निहारिका का कहना है कि दंत रोग होने पर उसका तुरंत उपचार कराना चाहिए। पं. दीन दयाल उपाध्याय चिकित्सालय के कक्ष संख्या 313 में किसी भी कार्यदिवस में सुबह आठ बजे से दोपहर दो बजे तक दंत चिकित्सा सेवा निःशुल्क उपलब्ध है। दंत रोगी इसका लाभ उठा सकते हैं।

अत्याधुनिक नंदघरों का लोकार्पण

ब्लाक प्रमुख ने किया लोकार्पण 

25 को सौंपी गई चाभियाँ 

आराजी लाईन के 14 नंद घर की आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों को मिला आईएसओ प्रमाण पत्र



Varanasi (dil india live). वाराणसी के आराजीलाईन ब्लॉक के ग्राम सभा रखौना स्थित नंदघर में अवार्ड रिवार्ड कार्यक्रम का अयोजन वेदांता की सहयोगी संस्था हुमाँना पीपल टू पीपल इंडिया के द्वारा किया गया। कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि आराजीलाईन ब्लाक प्रमुख प्रतिनिधि डा. महेंद्र सिंह पटेल विशिष्ट अतिथि सीडीपीओ अंजू चौरसिया ने रखौना गाँव सहित चयनित 14 नंद घर की आंगनवाड़ी कार्यकत्रियों को आईएसओ प्रमाण पत्र और उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रशस्ति पत्र सम्मानित किया। इस दौरान सराहनीय कार्य के लिए कार्यकत्री को उपहार देकर सम्मानित किया गया, इसके पहले अतिथियों ने रखौना गाँव के कायाकल्प हुए अत्याधुनिक नंदघर का दीप प्रज्वलन कर लोकार्पण किया, अंत में संस्था के पदाधिकारियों ने चयनित कायाकल्पित 25 नंद घरों की चाभियाँ अतिथियों के हाथों कार्यकत्रियो को सौंपा यानी उक्त नंदघरो को हैंडओवर किया। कार्यक्रम में जिला समन्वयक भानू सिंह, वेदांता से रोहित कुमार, उप जिला समन्वयक अर्जुन कुमार, आजाद सिंह, प्रमोद कुमार, संगीता देवी, श्रृंखला श्रीवास्तव, चांदनी राय उपस्थित रहे। जिला समन्वयक भानू सिंह के द्वारा नंद घर के बारे मे विस्तार से बताया गया और साथ ही ब्लाक प्रमुख प्रतिनिधि डा. महेंद्र सिंह पटेल ने भी नंद घर कार्यक्रम की सराहना की कार्यक्रम में सामाजिक कार्यकर्ता राजकुमार गुप्ता, अनिल पटेल, शोभनाथ पटेल, विक्रमा पटेल, कमल, राहुल सहित बड़ी संख्या में ग्रामीण उपस्थित रहे। संचालन रामसिंह वर्मा ने किया तो वही आभार अर्जुन कुमार ने किया।

भारतीय सांस्कृतिक पर्व गुरुपूर्णिमा


Dr. Sanjay Kumar   

MP (dil india live). भारतीय संस्कृति में गुरु का विशेष महत्व माना गया है। गुरु ही मनुष्य में ज्ञान का आधान करता है। इसलिए आषाढ पूर्णिमा के दिन गुरु पूर्णिमा का पर्व मनाया जाता है। यद्यपि भारत देश ऋषि प्रधान देश रहा है, हर युग में ऋषियों के प्रति आदर - सम्मान का भाव देखने को मिलता है।काश्यप, आंगिरा, भृगु, वशिष्ठ, अगस्त्य, भारद्वाज, जमदग्नि, विश्वामित्र, याज्ञवल्क्य, जैमिनी, बाल्मीकि, दुर्वाषा आदि  की  एक वृहद ऋषि परंपरा देखने को मिलती है। इन सभी के प्रति शिष्यों द्वारा अपार श्रद्धा का भाव भी दृष्टिगोचर होता है। यह देश ज्ञान वैभव का देश है। यहाँ अपरा और परा विद्याओं का संगम है। आत्मा तथा शारीर के साथ ही आदिभौतिक , आदिदैविक और आध्यात्मिक चिन्तन परम्परा का विकास ऋषियों के मनीषा से ही व्यक्त होती है। भारत में ज्ञान के मूलभूमि ऋषि ही हैं। क्योंकि सभी शास्त्र उन्ही के द्वारा श्रुत परंपरा से संरक्षित रहे हैं। इसलिए ऋषि परंपरा को ही गुरुपरंपरा के रूप वन्दना की जाती है। लेकिन एक मान्यता के अनुसार महर्षि वेदव्यास का जन्म आषाढ़ पूर्णिमा के दिन हुआ था। उन्हीं के सम्मान में आषाढ़ शुक्ल पूर्णिमा के दिन ही  गुरु पूर्णिमा पर्व का आयोजन होता है। ऐसा भी बताया जाता है कि इसी दिन महर्षि वेदव्यास ने अपने शिष्यों व मुनियों को सर्वप्रथम श्रीमाद्भागवद्पुरण का उपदेश दिया था। श्रीमाद्भागवद्पुरण उनके अट्ठारह पुराणों में इसलिए श्रेष्ठ है क्योंकि इसमें भगवत- भक्ति के द्वारा मोक्ष का मार्ग  बतलाया  गया है। कुछ लोगों का यह भी  मानना है कि महर्षि वेदव्यास ने ब्रह्मसूत्र को लिखना  इसी दिन प्रारंभ किया था। इसलिए वेदांत दर्शन के प्रारंभिक दिन को गुरुपूर्णिमा के रूप में मनाया जाता है| ब्रह्मसूत्र वेदान्त दर्शन का वह ग्रन्थ है  जो जीव–व्रह्म की एकता की घोषणा करता है। यहाँ  यह भी बताना उचित होगा कि भक्ति काल के संत श्रीघासीदास का जन्म भी  आषाढ़ पूर्णिमा के दिन ही  हुआ था। जो कबीर दास के शिष्य थे|पूर्णिमा के दिन का भौगोलिक रूप से भी अत्यधिक  महत्व माना जाता है। इस दिन चंद्रमा का पृथ्वी के जल से सीधा संबंध होता है| फलत: समुद्र में ज्वार- भाटा उत्पन्न हो जाता है। चंद्रमा समुद्र के जल को अपनी ओर खींचता है। यह क्रिया मनुष्य को भी प्रभावित करती है क्योंकि मनुष्य के शरीर में भी अधिकांश भाग जल का ही है |इसलिए मनुष्य के शरीर की  जल की गति बदल जाती है |गुण में भी परिवर्तन हो जाता है। आत्म- विस्तार की स्थिति बनने लगती है जिससे  एक अपूर्व आनंद की अनुभूति है।

      महर्षि वेदव्यास संस्कृत के प्रकांड विद्वान थे।उन्हें कृष्ण द्वैपायन भी कहा जाता है | वे आदि  गुरु हैं| इसलिए उनके जन्मदिन आषाढ़पूर्णिमा को गुरुपूर्णिमा के नाम से जाना जाता है। वेदांत दर्शन व अद्वैत वाद  के संस्थापक वेदव्यास ऋषि पाराशर के पुत्र थे तथा उनकी माता का नाम सत्यवती था। पत्नी  आरुणि से उत्पन्न महान बाल योगी सुखदेव  इनके पुत्र  हैं| एक परंपरा के अनुसार पांडू, धृतराष्ट्र और विदुर भी महर्षि वेदव्यास  के संतान माने जाते हैं | वेदव्यास ने महाभारत, ब्रह्मसूत्र ,18 पुराण ,18 उपपुराण की रचना किए हैं |इसके अतिरिक्त इन्होंने वेदों को उनके विषय के अनुसार ऋग्वेद, यजुर्वेद ,सामवेद, अथर्ववेद के रूप में चार भागों में विभाजित किया है| महर्षि वेदव्यास की शिष्य परंपरा में  पैल ,जैमिनी, वैशंपायन, समन्तु मुनि , रोमहर्षण आदि का नाम महत्वपूर्ण रूप से सामने आता है| यह आषाढ़ पूर्णिमा गुरु महात्मा का पर्व है| इस दिन गुरु की पूजा का विधान शास्त्रों में मिलता है |गुरुपूर्णिमा वर्षा ऋतु में पङती है। इस दिन से 4 महीने तक परिव्राजक साधु-संत एक ही स्थान पर रहकर ज्ञान का प्रकाश चारों ओर बिखेरते हैं। यह 4 माह प्राकृतिक रूप से बहुत रमणीय  होता  है|  ना अधिक गर्मी पड़ती है ना सर्दी का भान होता है| इसलिए चाहे ज्ञान क्षेत्र हो या अध्ययन क्षेत्र हो दोनों दृष्टि से यह समय बड़ा ही उपयुक्त माना जाता है। ऐसे समय में साधक  द्वारा की गई साधना फलीभूत होती है। ठीक वैसे ही जैसे  सूर्य के ताप से तप्त  भूमि को वर्षा की शीतलता एवं पौधे उत्पन्न करने की शक्ति मिलती है वैसे ही गुरु के सानिध्य में उपस्थित होकर साधकों की  ज्ञानशक्ति, भक्ति, शांति और योग की प्राप्ति होती है।

 यद्यपि भारतीय संस्कृति  ऋषियों का आचरण –व्यावहार द्वारा परिष्कृत संस्कृति है | यहाँ पर ऋषियों –मुनियों के प्रति जीवन के प्रारम्भिक काल से ही श्रद्धा का भाव देखने को मिलता है | ऋषि अपने आचरण मात्र  से  शिष्यों के अन्त: करण में ज्ञान का प्रकाश प्रज्वलित कर देता है |ऋषि ज्ञान का  प्रकाश अत्यंत गंभीर ,गुरु  व भारी होता है | इसी लिए उपदेशक ऋषियों को गुरु की संज्ञा से विभूषित किया गया है |गुरु शब्द दो वर्णों के योग से बना है –गु और रु | गु का अर्थ होता है–अंधकार या अज्ञान तथा रु का अर्थ होता है– हटाने वाला या अवरोधक। इसलिए गुरु शब्द का अर्थ अज्ञान को हटाने वाला या अंधकार को दूर करने वाला होता है। गुरु का ज्ञान भारी है, गुरु का कार्य भारी है और गुरु की सेवा भी भारी ही है | इसलिए वह गुरु कहलाता है | गुरु ही अज्ञान तिमिर का अपने ज्ञानांजन शलाका से हरण कर देता है |यानि अंधकार को हटाकर प्रकाश की ओर ले जाने का कार्य गुरु ही करता है | जिसके सम्बन्ध में ठीक ही कहा गया है –

                   अज्ञान तिमिरंध्श्च  ज्ञानांजन शलाकया |

                   चक्षुन्मिलितं   येन तस्मै श्री गुरुवे नम: ||

 एक  बात और ध्यान देने योग्य है कि गुरु का महत्व सभी धर्मों व सम्प्रदायों में है | जैन, बौद्ध , सिक्ख ,इसाई,पारसी,इस्लाम  आदि सभी किसी न किसी रूप में गुरु की सत्ता में विश्वास रखते है  | सभी गुरु का आदर करते हैं |क्योंकि गुरु ही सबके ज्ञान का आधार है | मैं ऐसा धर्म ,संप्रदाय ,जाति नहीं देखता हूँ जो विना गुरु का हो , सबके  अपने –अपने गुरु हैं |गुरु के महात्म्य के सम्बन्ध में आदिकवि वाल्मीकीय भी कहते हैं –

              स्वर्गोधनं वा धान्यं वा विद्या पुत्रा: सुखानि च |

                गुरुवृत्यनुरोधेन न किंचिदपि  दुर्लभम्   || (१/३०/३६)

अर्थात् गुरुजनों की सेवा का अनुसरण करने से स्वर्ग ,धन ,धान्य,विद्या ,पुत्र ,और सुख कुछ भी दुर्लभ नहीं होता है | यहाँ सेवा से अभिप्राय  गुरु का अनुशासन है, उसका निर्देश ही सेवा है | भारतीय परंपरा में गुरु को व्रह्म , विष्णु  और महेश के समकक्ष मानते हुए का गया है _

                   गुरुर्वह्मा  गुरुर्विष्णु  गुरुर्देवो महेश्वर:|

                 गुरु साक्षात् परव्रह्म तस्मै श्री गुरवे नाम ||

हिंदी के भक्तकवि तुलसीदास  भी गुरु -गौरव के विषय में कहा है –

                 श्रीगुरुचरन  सरोज रज निज मनु मुकुर सुधारी |

                 वरनऊँ रघुबर विमल  जसु जो दायक फल चारी ||

इस प्रकार भारतीय संस्कृति  में गुरु का स्थान बहुत श्रेष्ठ है। सभी मनुष्य के जीवन में  ज्ञानी गुरु की महती आवश्यकता होती है। गुरु ही जीवन लक्ष्य का प्रकाशक होता है। मनुष्य जीवन तो एक हाड.–मास के  पुतले  के समान है| उस पुतले को  ज्ञान संपन्न ,गुण सम्पन्न और विवेक संपन्न गुरु ही बनता है।  उसके विना देवता भी अधूरे हैं। राम और  कृष्ण भी विना गुरु के ज्ञानी नहीं बन सके। गुरु शास्त्र और शस्त्र से  शिष्य का मार्ग प्रशस्त करता है। वही जीवन में परम ज्योति जलाता है। इतिहास साक्षी बिना गुरु के ज्ञान से कोई भी संवृद्ध नहीं हुआ है। यह गुरुपूर्णिमा पर्व समस्त ऋषि व  गुरुपरंपरा का प्रतीक शुभ दिवस है।

(लेखक संस्कृत विभाग, डाक्टर हरीसिंह गौर विश्वविद्यालय, सागर ( म.प्र.) में सहायक आचार्य हैं।

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Hazrat Imam Zainul abedin इस्लाम की पहचान, इबादतों की शान

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