शुक्रवार, 29 मार्च 2024

बंदे को अल्लाह के नजदीक लाने का मौका देता है मुकद्दस रमज़ान


 फिर रमजान की दौलत पाने जुटे हुए हैं ख़ुदा के नेक बंदे

Varanasi (dil india live)। बंदे को हर बुराई से दूर रखकर अल्लाह के नजदीक लाने का मौका देने वाला पाक महीना रमजान शुरू हो चुका है। इस मुकद्दस महीने की रूहानी चमक से दुनिया एक बार फिर रोशन हो चुकी है, और फिजा में घुलती अजान और दुआओं में उठते हाथ खुदा से मुहब्बत के जज्बे कि मिसाल पेश कर रहे हैं। दौड़-भाग और खुदगर्जी भरी जिंदगी के बीच इंसान को अपने अंदर झांकने और खुद को अल्लाह की राह पर ले जाने की प्रेरणा देने वाले रमजान माह में भूख-प्यास समेत तमाम शारीरिक इच्छाओं तथा झूठ बोलने, चुगली करने, खुदगर्जी, बुरी नजर जैसी सभी बुराइयों पर लगाम लगाने की मुश्किल कवायद रोजेदार को अल्लाह के बेहद नजदीक पहुंचा देती है।

रमजान की फजीलत

माहे रमजान में रोजेदार अल्लाह के नजदीक आने की कोशिश के लिए भूख-प्यास समेत तमाम इच्छाओं को रोकता है। बदले में अल्लाह अपने उस इबादत गुजार रोजेदार बंदे के बेहद करीब आकर उसे अपनी रहमतों और बरकतों से नवाजता है, इस्लाम की पांच बुनियादों में रोजा भी शामिल है और इस पर अमल के लिए ही अल्लाह ने रमजान का महीना मुकर्रर किया है। खुद अल्लाह ने कुरान शरीफ में इस महीने का जिक्र किया है। रमजान इंसान के अंदर जिस्म और रूह है। आम दिनों में उसका पूरा ध्यान खाना-पीना और दीगर जिस्मानी जरूरतों पर रहता है लेकिन असल चीज उसकी रूह है। इसी की तरबीयत और पाकीजगी के लिए अल्लाह ने रमजान बनाया है रमजान में की गई हर नेकी का सवाब कई गुना बढ़ जाता है। इस महीने में एक रकात नमाज अदा करने का सवाब 70 गुना हो जाता है। साथ ही इस माह में दोजख  के दरवाजे भी बंद कर दिए जाते हैं, जन्नत के दरवाज़े खोल दिये जाते है।

रमज़न के तीन अशरे

अमूमन 30 दिनों के रमजान माह को 10-10 दिन केे तीन अशरों में बांटा गया है। पहला अशरा ‘रहमत’ का है। इसमें अल्लाह अपने बंदों पर रहमत की दौलत लुटाता है। दूसरा अशरा ‘मगफिरत’ का है। इस अशरे में अल्लाह अपने बंदों को गुनाहों से पाक कर देता है। जबकि तीसरा अशरा 'जहन्नुम से आजादी' का है। इस आखिरी अशरे में रब रोज़ा रखने वाले को जहन्नुम से आजाद कर देता है।

रमजान माह  की विशेषताएं

महीने भर के रोज़े  रखना, रात में तरावीह की नमाज़ पढना, क़ुरान की तिलावत करना, एतेकाफ़ में बैठना, अल्लाह से दुआ मांगना, ज़कात देना, अल्लाह का शुक्र अदा करना। इसीलिये इस माह को नेकियों और इबादतों का महीना माना जाता है। तरावीह की नमाज़ में महीना भर कुरान पढना। जिससे क़ुरान पढना न आने वालों को क़ुरान सुनने का सबाब ज़रूर मिलता है।रमजान को नेकियों का मौसम-ए-बहार  कहा गया है। रमजान को नेकियों का मौसम भी कहा जाता है। इस महीने में मुसलमान अल्लाह की इबादत ज्यादा करता है। अपने अल्लाह को खुश करने के लिए रोजो के साथ, कुरआन, दान धर्म करता है यह महीना समाज के गरीब और जरूरतमंद बंदों के साथ हमदर्दी का है, इस महीने के गुज़रने के बाद शव्वाल की पहली तारीख को ईद उल-फ़ित्र मनाते हैं। यानी जिसने माह भार रोज़ा रखा ईद उसी की है। या हर मुुसलमान को रोज़ा रखने कि तौफीक देेे…आमीन।

मो. रिज़वान (वाराणसी के युवा पत्रकार हैं) 

कलवारी में ईसा शहीद हुए धरती का फटा कलेजा


Varanasi (dil india live). Good Friday की विशेष आराधना व प्रार्थना देश दुनिया में आज सुबह से ही चर्जेज़ व गिरजाघरों में शुरु हो गई। इस दौरान जहाँ प्रभु ईसा मसीह को क्रूस पर चढ़ाये जाने की मार्मिक इतिहास का वर्णन हुआ वहीं इसे सुनकर लोगों की आंखों में सहज ही आंसु भर आया। बनारस में प्रोटेंसटेंट मसीही समुदाय के चर्चेज़ में प्रार्थना दोपहर 12 बजे से शुरु होगी तो कैथलिक चर्चेज़ में 3 बजे से क्रूस पर प्रभु यीशु को चढ़ाये जाने की मार्मिक गाथा का मंचन, क्रूस मार्ग की आराधना संग शुरु होगी। सेंट मेरीज़ महागिरजा में बिशप यूज़ीन जोसेफ़ प्रार्थना सभा की अगुवाई करेंगे।

Good Friday जानिए क्यों मनाया जाता है


ये वो दिन है जिस दिन प्रभु यीशु मसीह को गोल्गथा नामक पहाड़ पर, जो कलवारी नमक स्थान पर स्थित है, क्रुस पर चद़ाया गया था। चर्च आफ बनारस के पादरी बीएन जॉन ने बताया कि इस घटना से पूर्व प्रभु यीशु मसीह को रोमी सैनिकों एवं धर्मगुरुओं द्वारा अत्यंत वेदनाओं एवं दुर्व्यवहार का सामना करना पड़ा और अंत में क्रूस पर प्रभु यीशु मसीह ने अपने प्राण त्याग दिए। उनकी पवित्र मौत को सभी हर साल गुड फ्राइडे के रुप में मनाते हैं। सेंट पॉल चर्च के पादरी आदित्य कुमार ने बताया कि यीशु मसीह को घोर यातना दी गई, और क्रूस पर उन्हे चढ़ाया गया। क्रूस पर उनकी पवित्र मौत की खबर से ही, कलवारी में ईसा शहीद हुए धरती का कलेजा फट गया, मगर चमत्कार तीसरे ही दिन हुआ जब ईसा मसीह पुनः जीवित हो उठे।

क्रूस पर दिए प्रभु ने सात वचन

क्रूस पर से यीशु ने सात दिव्य वचन कहे जिनको की आज के दिन प्रार्थना सभाओं में स्मरण किया जाता है। यीशु मसीह के मानने वाले इन वचनों को आत्मसाध कर जीवन मैं अपनाने का संकल्प लेते हैं। मसीहियों का ये विश्वास है की आज के दिन को शुभ शुक्रवार इसलिए कहा जाता है क्यूंकि आज ही के दिन प्रभु यीशु ने समस्त मानव जाति को उनके पापों से बचाने के लिए अपने प्राण दिए और सभी को उद्धार का अवसर प्रदान किया।

गुरुवार, 28 मार्च 2024

अल्लाह की इबादत के लिए खुद को वक्फ कर देने का नाम 'एतेकाफ'

 जानिए कितनी तरह का होता है रमज़ान का रोज़ा 


Varanasi (dil india live )। रमज़ान की नेमतों और रहमतों का क्या कहना। रमज़ान तमाम अच्छाइयां अपने अंदर समेटे है। रमज़ान का रोज़ा रोज़ेदारों के लिए रहमत व बरकत का सबब बनकर आता है। इसमें तमाम परेशानियां और दुश्वारियां बंदे की दूर हो जाती हैं। नेकी का रास्ता ऐसे खुला रहता है कि फर्ज़ और सुन्नत के अलावा नफ्ल इबादत और मुस्तहब इबादतों की भी बंदा कसरत करता है। इस महीने कि यही तो खूबी है कि बंदा रब कि रज़ा के लिए कसरत से इबादत करता है।

रोज़ा कितनी तरह का होता है इसे कम ही लोग जानते हैं। तो रमज़ान के रोज़े को तीन तरह से समझे। मसलन पहला, आम आदमी का रोज़ा: जो खाने पीने और जीमाह से रोकता है। दूसरा खास लोगों का रोज़ा: इसमें खाने पीने और जीमाह के अलावा अज़ा को गुनाहों से रोज़ेदार बचाकर रखता है, मसलन हाथ, पैर, कान, आंख वगैरह से जो गुनाह हो सकते हैं, उनसे बचकर रोज़ेदार रहता है। तीसरा रोज़ा खवासुल ख्वास का होता है जिसे खास में से खास भी कहते हैं। वो रोज़े के दिन जिक्र किये हुए उमूर पर कारबन भी रहते हैं और हकीकतन दुनिया से अपने आपको बिलकुल जुदा करके सिर्फ और सिर्फ रब की ओर मुतवज्जाह रखते हैं। रमज़ान की यह भी खसियत है कि जब दूसरा अशरा पूरा होने वाला रहता है तो, 20 रमज़ान से ईद का चांद होने तक मोमिनीन मस्जिद में खुद को अल्लाह के लिए वक्फ करते है। जिसका नाम एतेकाफ है। एतेकाफ सुन्नते कैफाया है यानि मुहल्ले का कोई एक भी बैठ गया तो पूरा मुहल्ला बरी अगर किसी ने नहीं रखा तो पूरा मुहल्ला गुनाहगार। पूरे मोहल्ले पर अज़ाब नाज़िल होगा। रमज़ान में एतेकाफ रखना जरूरी। एतेकाफ नबी की सुन्नतों में से एक है। एतेकाफ का लफ्ज़ी मायने, अल्लाह की इबादत के लिए वक्फ कर देना। हदीस और कुरान में है कि एतेकाफ अल्लाह रब्बुल इज्ज़त को राज़ी करने के लिए रोज़ेदार बैठते है। एतेकाफ सुन्नते रसूल है। हदीस व कुरान में है कि हजरत मोहम्मद रसूल (स.) ने कहा कि एतेकाफ खुदा की इबादत में रोज़ेदार को मुन्हमिक कर देता है और बंदा तमाम दुनियावी ख्वाहिशात से किनारा कर बस अल्लाह और उसकी इबादतों में मशगूल रहता है। इसलिए जिन्दगी में एक बार सभी को एतेकाफ पर बैठना चाहिए। या अल्लाह ते अपने हबीब के सदके में हम सबको रोज़ा रखने और दीगर इबादतों को पूरा करने की तौफीक दे।..आमीन।

मौलाना अज़हरुल कादरी     
(मदरसा खानमजान, अर्दली बाज़ार, वाराणसी)

चर्चेज में ईसाई पुरोहित अपने शिष्यों का आज धोएंगे पैर




desh duniya में आज मनाया जा रहा है ‘माउंडी थर्सडे’ 




Varanasi (dil India live). desh duniya में आज मसीही समुदाय को मानने वाले ‘माउंडी थर्सडे’ मना रहे हैं। इस दौरान चर्चेज में ईसाई पुरोहित अपने शिष्यों का पैर धोएंगे। ईसा मसीह द्वारा अपने शिष्यों के साथ अंतिम भोज्य और रोटी का टुकड़ा शिष्यों में बांटे जाने की याद में यह पर्व मनाया जाता है। यहां जानिए इस पर्व की ख़ास बातें।

जानिए क्या है ‘माउंडी थर्सडे’

‘माउंडी’ एक लैटिन शब्द ‘मेंडाटम’ से आया है, जिसका अर्थ ‘आदेश’ होता है। बाइबिल समेत ईसाईयों के अन्य ग्रंथों के अनुसार, ईसा मसीह ने अपने शिष्यों को एक-दूसरे से प्रेम करने के लिए आदेश दिया था। ईसाईयों का मानना है कि ईसा मसीह ने गुरुवार के दिन क्रूस मरण से पहले अपने 12 शिष्यों के पैर धोए थे और उनके साथ अंतिम बार भोज्य भी किया था, जिसे ‘लास्ट सपर’ के नाम से जाना जाता है। वहीं, ईसाईयों का मानना है कि उनके इसी आदेश को प्रत्येक वर्ष गुरुवार को ‘माउंडी थर्सडे’ के नाम से मनाया जाता है। बता दें कि हर साल ईसाई कैथोलिक प्रार्थना के लिए चर्च में इकट्ठा होते हैं और आपस में रोटी बांटकर इस त्योहार को मनाते हैं।

कब मनाया जाता है ‘माउंडी थर्सडे’
‘माउंडी थर्सडे’ को पवित्र गुरुवार, वाचा गुरुवार, महान और पवित्र गुरुवार और रहस्यों का गुरुवार के नाम से भी जाना जाता है। ये ईसाई कैलेंडर के पवित्र सप्ताह के पांचवें दिन पड़ता है, जो इस बार आज 28 मार्च को मनाया जा रहा है। भारत के कुछ खास ईसाई आबादी वाले राज्य जैसे केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे अन्य राज्यों में भी यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इसके दूसरे दिन ही ‘गुड फ्राइडे’ मनाया जाएगा। 

बुधवार, 27 मार्च 2024

शिद्द्त की गर्मी के बावजूद ज़ुनेहरा फातेमा ने रखा रोज़ा


Varanasi (dil india live). कहा जाता है कि रब अपने नेक बंदो का इम्तेहान लेता है और जो उसमें पास हो जाता है उसकी ज़िंद्गी में अल्लाह खुशियां ही खुशियां भर देता है। यही वजह है कि शिद्द्त की गर्मी के बावजूद ज़ुनेहरा फातेमा ने अपनी ज़िंदगी का पहला रोज़ा रखा। जामिया रहमानिया गर्ल्स स्कूल में क्लास 1 की तालीम ले रही ज़ुनेहरा फातेमा के वालिद कमालुद्दीन कहते हैं कि मेरी बेटी ने इतनी कम उम्र में रोज़ा रख लेगी हम सबने कभी सोचा भी नही था मगर जब दोपहर तक शिद्द्त की गर्मी के बावजूद ज़ुनेहरा फातेमा ने अपनी ज़िंदगी का पहला रोज़ा रख लिया तो हम लोगो को यकीन हो गया कि वो रोज़ा रख लेगी। माशा अल्लाह उसने रोज़ा मुकम्म्ल भी कर लिया। 

 

ज़कात न देने से होता है माल बर्बाद



Varanasi (dil india live). ज़कात देना हर साहिबे नेसाब पर वाजिब है। साहबे नेसाब वो है जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी में से कोई एक हो, या फिर बैंक, बीमा, पीएफ या घर में इतने के बराबर साल भर से रकम रखी हो तो उस पर मोमिन को ज़कात देना वाजिब है। ज़कात शरीयत में उसे कहते हैं कि अल्लाह के लिए माल के एक हिस्से को जो शरीयत ने मुकर्रर किया है मुसलमान फक़़ीर को मालिक बना दे। ज़कात की नीयत से किसी फक़़ीर को खाना खिला दिया तो ज़कात अदा न होगी, क्योंकि यह मालिक बनाना न हुआ। हां अगर खाना दे दे कि चाहे खाये या ले जाये तो अदा हो गई। यूं ही ज़कात की नियत से कपड़ा दे दिया तो अदा हो गई। ज़कात वाजिब के लिए चंद शर्ते है : मुसलमान होना, बालिग होना, आकि़ल होना, आज़ाद होना, मालिके नेसाब होना, पूरे तौर पर मालिक होना, नेसाब का दैन से फारिग होना, नेसाब का हाजते असलिया से फारिग होना, माल का नामी होना व साल गुज़रना। आदतन दैन महर का मोतालबा नहीं होता लेहाज़ा शौहर के जिम्मे कितना दैन महर हो जब वह मालिके नेसाब है तो ज़कात वाजिब है। ज़कात देने के लिए यह जरूरत नहीं है कि फक़़ीर को कह कर दे बल्कि ज़कात की नीयत ही काफी है।

फलाह पाते हैं जो ज़कात देते है

नबी-ए-करीम ने फरमाया जो माल बर्बाद होता है वह ज़कात न देने से बर्बाद होता है और फरमाया कि ज़कात देकर अपने मालों को मज़बूत किलों में कर लो और अपने बीमारों को इलाज सदक़ा से करो और बला नाज़िल होने पर दुआ करो। रब फरमाता है कि फलाह पाते हैं वो लोग जो ज़कात अदा करते है। जो कुछ रोज़ेदार खर्च करेंगे अल्लाह ताला उसकी जगह और दौलत देगा, अल्लाह बेहतर रोज़ी देने वाला है। आज हम और आप रोज़ी तो मांगते है रब से मगर खाने कि, इफ्तार कि खूब बर्बादी करके गुनाह भी बटौरते है, इससे हम सबको बाज़ आना चाहिए।

उन्हे दर्दनाक अज़ाब की खुशखबरी सुना दो

अल्लाह रब्बुल इज्जत फरमाता है जो लोग सोना, चांदी जमा करते हैं और उसे अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते उन्हें दर्दनाक अज़ाब की खुशखबरी सुना दो। जिस दिन जहन्नुम की आग में वो तपाये जायेंगे और इनसे उनकी पेशानियां, करवटें और पीठें दागी जायेगी और उनसे कहा जायेगा यह वो दौलत हैं जो तुमने अपने नफ्स के लिए जमा किया था। ऐ अल्लाह तू अपने हबीब के सदके में हम सबको रोज़ा रखने और ज़कात देने की तौफीक दे..आमीन

मौलाना शमशुद्दीन साहब
{इमाम, जामा मस्जिद कम्मू खान, डिठोरी महाल, वाराणसी}


मंगलवार, 26 मार्च 2024

आज इमाम हसन की यौमे पैदाइश मना रहा है सारा जहाँ, जगह जगह हो रही है इमाम की फातेहा

Varanasi (dil india live). आज इमाम हसन की यौमे पैदाइश मना रहा है सारा जहाँ ‌‌-जगह जगह हो रही है इमाम की फातेहा वाराणसी। 15 रमज़ान 3 हिजरी को यानी आज से 1442 साल पहले नबी के नवासे हज़रत इमाम ह़सन की पैदाइश मदीना शरीफ़ में हुई थी। जो ह़ज़रते अ़ली के बड़े बेटे, और ह़ज़रते इमाम ह़ुसैन के बड़े भाई हैं। वालिदा का नाम ज़नाबे फ़ातिमा हैं। आज इमाम हसन की यौमे पैदाइश मनाई जा रही है, जगह जगह इमाम हसन की फातेहा हो रही है। हमारे नबी (स.) ह़ज़रत इमाम ह़सन से बहुत ही मोह़ब्बत करते थे। कभी आपको अपने कंधों पर घुमाते थे। तो कभी जब ह़ज़रते ह़सन नमाज़ की ह़ालत में प्यारे नबी के कंधों पर बैठ जाते तो नबी (स.) सज्दे से सर नहीं उठाते थे। कि कहीं आपको चोट ना लग जाए। कभी आपको देखकर फ़रमाते कि जन्नत के नौजवानों का सरदार आ रहा है। ह़ज़रते ह़सन बहुत ही ज़्यादा अदब वाले थे। कभी अपनी मां ह़ज़रते फ़ातिमा के साथ खाना नहीं खाया। इस डर की वजह से कहीं ऐसा ना हो की मां को कोई चीज़ खाते वक़्त पसंद आए और उनसे पहले मेरा लुक़्मा उस चीज़ की तरफ़ बढ़ जाए। आप अपने वालिद के दौरे ख़िलाफ़त में कूफ़ा गए थे और वालिद के इंतक़ाल के बाद बाकी दिन मदीना शरीफ़ आकर गुजा़रे। आप को ज़हर देकर शहीद कर दिया गया था। आपकी उम्र 48 साल हुई। मदीना शरीफ़ के क़ब्रिस्तान जन्नतुल बक़ी में आप को दफ़न किया गया। अल्लाह तआ़ला आपके सदके़ हमें दुनिया और आख़िरत में कामयाबी अता फ़रमाए। (आमीन)

'हमारी फिक्र पर पहरा लगा नहीं सकते, हम इंकलाब है हमको दबा नहीं सकते'

'बेटियां है तो घर निराला है, घर में इनसे ही तो उजाला है....' डीएवी कॉलेज में मुशायरे में शायरों ने दिया मोहब्बत का पैगाम Varanasi (d...