गुरुवार, 28 मार्च 2024

अल्लाह की इबादत के लिए खुद को वक्फ कर देने का नाम 'एतेकाफ'

 जानिए कितनी तरह का होता है रमज़ान का रोज़ा 


Varanasi (dil india live )। रमज़ान की नेमतों और रहमतों का क्या कहना। रमज़ान तमाम अच्छाइयां अपने अंदर समेटे है। रमज़ान का रोज़ा रोज़ेदारों के लिए रहमत व बरकत का सबब बनकर आता है। इसमें तमाम परेशानियां और दुश्वारियां बंदे की दूर हो जाती हैं। नेकी का रास्ता ऐसे खुला रहता है कि फर्ज़ और सुन्नत के अलावा नफ्ल इबादत और मुस्तहब इबादतों की भी बंदा कसरत करता है। इस महीने कि यही तो खूबी है कि बंदा रब कि रज़ा के लिए कसरत से इबादत करता है।

रोज़ा कितनी तरह का होता है इसे कम ही लोग जानते हैं। तो रमज़ान के रोज़े को तीन तरह से समझे। मसलन पहला, आम आदमी का रोज़ा: जो खाने पीने और जीमाह से रोकता है। दूसरा खास लोगों का रोज़ा: इसमें खाने पीने और जीमाह के अलावा अज़ा को गुनाहों से रोज़ेदार बचाकर रखता है, मसलन हाथ, पैर, कान, आंख वगैरह से जो गुनाह हो सकते हैं, उनसे बचकर रोज़ेदार रहता है। तीसरा रोज़ा खवासुल ख्वास का होता है जिसे खास में से खास भी कहते हैं। वो रोज़े के दिन जिक्र किये हुए उमूर पर कारबन भी रहते हैं और हकीकतन दुनिया से अपने आपको बिलकुल जुदा करके सिर्फ और सिर्फ रब की ओर मुतवज्जाह रखते हैं। रमज़ान की यह भी खसियत है कि जब दूसरा अशरा पूरा होने वाला रहता है तो, 20 रमज़ान से ईद का चांद होने तक मोमिनीन मस्जिद में खुद को अल्लाह के लिए वक्फ करते है। जिसका नाम एतेकाफ है। एतेकाफ सुन्नते कैफाया है यानि मुहल्ले का कोई एक भी बैठ गया तो पूरा मुहल्ला बरी अगर किसी ने नहीं रखा तो पूरा मुहल्ला गुनाहगार। पूरे मोहल्ले पर अज़ाब नाज़िल होगा। रमज़ान में एतेकाफ रखना जरूरी। एतेकाफ नबी की सुन्नतों में से एक है। एतेकाफ का लफ्ज़ी मायने, अल्लाह की इबादत के लिए वक्फ कर देना। हदीस और कुरान में है कि एतेकाफ अल्लाह रब्बुल इज्ज़त को राज़ी करने के लिए रोज़ेदार बैठते है। एतेकाफ सुन्नते रसूल है। हदीस व कुरान में है कि हजरत मोहम्मद रसूल (स.) ने कहा कि एतेकाफ खुदा की इबादत में रोज़ेदार को मुन्हमिक कर देता है और बंदा तमाम दुनियावी ख्वाहिशात से किनारा कर बस अल्लाह और उसकी इबादतों में मशगूल रहता है। इसलिए जिन्दगी में एक बार सभी को एतेकाफ पर बैठना चाहिए। या अल्लाह ते अपने हबीब के सदके में हम सबको रोज़ा रखने और दीगर इबादतों को पूरा करने की तौफीक दे।..आमीन।

मौलाना अज़हरुल कादरी     
(मदरसा खानमजान, अर्दली बाज़ार, वाराणसी)

चर्चेज में ईसाई पुरोहित अपने शिष्यों का आज धोएंगे पैर




desh duniya में आज मनाया जा रहा है ‘माउंडी थर्सडे’ 




Varanasi (dil India live). desh duniya में आज मसीही समुदाय को मानने वाले ‘माउंडी थर्सडे’ मना रहे हैं। इस दौरान चर्चेज में ईसाई पुरोहित अपने शिष्यों का पैर धोएंगे। ईसा मसीह द्वारा अपने शिष्यों के साथ अंतिम भोज्य और रोटी का टुकड़ा शिष्यों में बांटे जाने की याद में यह पर्व मनाया जाता है। यहां जानिए इस पर्व की ख़ास बातें।

जानिए क्या है ‘माउंडी थर्सडे’

‘माउंडी’ एक लैटिन शब्द ‘मेंडाटम’ से आया है, जिसका अर्थ ‘आदेश’ होता है। बाइबिल समेत ईसाईयों के अन्य ग्रंथों के अनुसार, ईसा मसीह ने अपने शिष्यों को एक-दूसरे से प्रेम करने के लिए आदेश दिया था। ईसाईयों का मानना है कि ईसा मसीह ने गुरुवार के दिन क्रूस मरण से पहले अपने 12 शिष्यों के पैर धोए थे और उनके साथ अंतिम बार भोज्य भी किया था, जिसे ‘लास्ट सपर’ के नाम से जाना जाता है। वहीं, ईसाईयों का मानना है कि उनके इसी आदेश को प्रत्येक वर्ष गुरुवार को ‘माउंडी थर्सडे’ के नाम से मनाया जाता है। बता दें कि हर साल ईसाई कैथोलिक प्रार्थना के लिए चर्च में इकट्ठा होते हैं और आपस में रोटी बांटकर इस त्योहार को मनाते हैं।

कब मनाया जाता है ‘माउंडी थर्सडे’
‘माउंडी थर्सडे’ को पवित्र गुरुवार, वाचा गुरुवार, महान और पवित्र गुरुवार और रहस्यों का गुरुवार के नाम से भी जाना जाता है। ये ईसाई कैलेंडर के पवित्र सप्ताह के पांचवें दिन पड़ता है, जो इस बार आज 28 मार्च को मनाया जा रहा है। भारत के कुछ खास ईसाई आबादी वाले राज्य जैसे केरल, तमिलनाडु और कर्नाटक जैसे अन्य राज्यों में भी यह पर्व धूमधाम से मनाया जाता है। इसके दूसरे दिन ही ‘गुड फ्राइडे’ मनाया जाएगा। 

बुधवार, 27 मार्च 2024

शिद्द्त की गर्मी के बावजूद ज़ुनेहरा फातेमा ने रखा रोज़ा


Varanasi (dil india live). कहा जाता है कि रब अपने नेक बंदो का इम्तेहान लेता है और जो उसमें पास हो जाता है उसकी ज़िंद्गी में अल्लाह खुशियां ही खुशियां भर देता है। यही वजह है कि शिद्द्त की गर्मी के बावजूद ज़ुनेहरा फातेमा ने अपनी ज़िंदगी का पहला रोज़ा रखा। जामिया रहमानिया गर्ल्स स्कूल में क्लास 1 की तालीम ले रही ज़ुनेहरा फातेमा के वालिद कमालुद्दीन कहते हैं कि मेरी बेटी ने इतनी कम उम्र में रोज़ा रख लेगी हम सबने कभी सोचा भी नही था मगर जब दोपहर तक शिद्द्त की गर्मी के बावजूद ज़ुनेहरा फातेमा ने अपनी ज़िंदगी का पहला रोज़ा रख लिया तो हम लोगो को यकीन हो गया कि वो रोज़ा रख लेगी। माशा अल्लाह उसने रोज़ा मुकम्म्ल भी कर लिया। 

 

ज़कात न देने से होता है माल बर्बाद



Varanasi (dil india live). ज़कात देना हर साहिबे नेसाब पर वाजिब है। साहबे नेसाब वो है जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी में से कोई एक हो, या फिर बैंक, बीमा, पीएफ या घर में इतने के बराबर साल भर से रकम रखी हो तो उस पर मोमिन को ज़कात देना वाजिब है। ज़कात शरीयत में उसे कहते हैं कि अल्लाह के लिए माल के एक हिस्से को जो शरीयत ने मुकर्रर किया है मुसलमान फक़़ीर को मालिक बना दे। ज़कात की नीयत से किसी फक़़ीर को खाना खिला दिया तो ज़कात अदा न होगी, क्योंकि यह मालिक बनाना न हुआ। हां अगर खाना दे दे कि चाहे खाये या ले जाये तो अदा हो गई। यूं ही ज़कात की नियत से कपड़ा दे दिया तो अदा हो गई। ज़कात वाजिब के लिए चंद शर्ते है : मुसलमान होना, बालिग होना, आकि़ल होना, आज़ाद होना, मालिके नेसाब होना, पूरे तौर पर मालिक होना, नेसाब का दैन से फारिग होना, नेसाब का हाजते असलिया से फारिग होना, माल का नामी होना व साल गुज़रना। आदतन दैन महर का मोतालबा नहीं होता लेहाज़ा शौहर के जिम्मे कितना दैन महर हो जब वह मालिके नेसाब है तो ज़कात वाजिब है। ज़कात देने के लिए यह जरूरत नहीं है कि फक़़ीर को कह कर दे बल्कि ज़कात की नीयत ही काफी है।

फलाह पाते हैं जो ज़कात देते है

नबी-ए-करीम ने फरमाया जो माल बर्बाद होता है वह ज़कात न देने से बर्बाद होता है और फरमाया कि ज़कात देकर अपने मालों को मज़बूत किलों में कर लो और अपने बीमारों को इलाज सदक़ा से करो और बला नाज़िल होने पर दुआ करो। रब फरमाता है कि फलाह पाते हैं वो लोग जो ज़कात अदा करते है। जो कुछ रोज़ेदार खर्च करेंगे अल्लाह ताला उसकी जगह और दौलत देगा, अल्लाह बेहतर रोज़ी देने वाला है। आज हम और आप रोज़ी तो मांगते है रब से मगर खाने कि, इफ्तार कि खूब बर्बादी करके गुनाह भी बटौरते है, इससे हम सबको बाज़ आना चाहिए।

उन्हे दर्दनाक अज़ाब की खुशखबरी सुना दो

अल्लाह रब्बुल इज्जत फरमाता है जो लोग सोना, चांदी जमा करते हैं और उसे अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते उन्हें दर्दनाक अज़ाब की खुशखबरी सुना दो। जिस दिन जहन्नुम की आग में वो तपाये जायेंगे और इनसे उनकी पेशानियां, करवटें और पीठें दागी जायेगी और उनसे कहा जायेगा यह वो दौलत हैं जो तुमने अपने नफ्स के लिए जमा किया था। ऐ अल्लाह तू अपने हबीब के सदके में हम सबको रोज़ा रखने और ज़कात देने की तौफीक दे..आमीन

मौलाना शमशुद्दीन साहब
{इमाम, जामा मस्जिद कम्मू खान, डिठोरी महाल, वाराणसी}


मंगलवार, 26 मार्च 2024

आज इमाम हसन की यौमे पैदाइश मना रहा है सारा जहाँ, जगह जगह हो रही है इमाम की फातेहा

Varanasi (dil india live). आज इमाम हसन की यौमे पैदाइश मना रहा है सारा जहाँ ‌‌-जगह जगह हो रही है इमाम की फातेहा वाराणसी। 15 रमज़ान 3 हिजरी को यानी आज से 1442 साल पहले नबी के नवासे हज़रत इमाम ह़सन की पैदाइश मदीना शरीफ़ में हुई थी। जो ह़ज़रते अ़ली के बड़े बेटे, और ह़ज़रते इमाम ह़ुसैन के बड़े भाई हैं। वालिदा का नाम ज़नाबे फ़ातिमा हैं। आज इमाम हसन की यौमे पैदाइश मनाई जा रही है, जगह जगह इमाम हसन की फातेहा हो रही है। हमारे नबी (स.) ह़ज़रत इमाम ह़सन से बहुत ही मोह़ब्बत करते थे। कभी आपको अपने कंधों पर घुमाते थे। तो कभी जब ह़ज़रते ह़सन नमाज़ की ह़ालत में प्यारे नबी के कंधों पर बैठ जाते तो नबी (स.) सज्दे से सर नहीं उठाते थे। कि कहीं आपको चोट ना लग जाए। कभी आपको देखकर फ़रमाते कि जन्नत के नौजवानों का सरदार आ रहा है। ह़ज़रते ह़सन बहुत ही ज़्यादा अदब वाले थे। कभी अपनी मां ह़ज़रते फ़ातिमा के साथ खाना नहीं खाया। इस डर की वजह से कहीं ऐसा ना हो की मां को कोई चीज़ खाते वक़्त पसंद आए और उनसे पहले मेरा लुक़्मा उस चीज़ की तरफ़ बढ़ जाए। आप अपने वालिद के दौरे ख़िलाफ़त में कूफ़ा गए थे और वालिद के इंतक़ाल के बाद बाकी दिन मदीना शरीफ़ आकर गुजा़रे। आप को ज़हर देकर शहीद कर दिया गया था। आपकी उम्र 48 साल हुई। मदीना शरीफ़ के क़ब्रिस्तान जन्नतुल बक़ी में आप को दफ़न किया गया। अल्लाह तआ़ला आपके सदके़ हमें दुनिया और आख़िरत में कामयाबी अता फ़रमाए। (आमीन)

जानिए रमज़ान में किस बातों का रखा जाता है खास ख्याल



Varanasi (dil india live).
 रमजान हिजरी कलैंडर का 9 वां महीना है। रमजान वो महीना है जिसके आते ही फिज़ा में नूर छा जाता है। चोर चोरी से दूर होता है, बेहया अपनी बेहयाई से रिश्ता तोड़ लेता है, मस्जिदें नमाज़ियों से भर जाती हैं। लोगों के दिलों दिमाग में बस एक ही बात रहती है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा इबादत की जाये। फर्ज़ नमाज़ों के साथ ही नफ्ल और तहज्जुद पर भी लोगों का ज़ोर रहता है। अमीर गरीबों का हक़ अदा करते हैं, पास वाले अपने पड़ोसियों का, कोई भूखा न रहे, कोई नंगा न रहे, इस महीने में इस बात का खास ख्याल रखा जाता है। पता ये चला कि हक़ की जिन्दगी जीने की रमज़ान हमे जहां तौफीक देता है। वहीं गरीबो, मिसकीनों, लाचारों, बेवा, और बेसहरा वगैरह की ईद कैसे हो, कैसे उन्हें उनका हक़ और अधिकार मिले यह रमज़ान ने पूरी दुनिया को दिखा दिया, सिखा दिया। यही वजह है कि रमज़ान का आखिरी अशरा आते आते हर साहिबे निसाब अपनी आमदनी की बचत का ढ़ाई फीसदी जक़ात निकालता है। और दो किलों 45 ग्राम वो गेंहू जो वो खाता है उसका फितरा देता है।

सदका-ए-फित्र ईद की नमाज़ से पहले हर हाल में मोमिनीन अदा कर देता है ताकि उसका रोज़ा रब की बारगाह में कुबुल हो जाये, अगर नहीं दिया तो तब तक उसका रोज़ा ज़मीन और आसमान के दरमियान लटका रहेगा जब तक सदका-ए-फित्र अदा नहीं कर देता। रब कहता है कि 11 महीना बंदा अपने तरीक़े से तो गुज़ारता ही हैतो एक महीना माहे रमज़ान को वो मेरे लिए वक्फ कर दे। परवरदिगारे आलम इरशाद फरमाते है कि माहे रमज़ान कितना अज़ीम बरकतों और रहमतो का महीना है इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि इस पाक महीने में कुरान नाज़िल हुआ।इस महीने में बंदा दुनिया की तमाम ख्वाहिशात को मिटा कर अपने रब के लिए पूरे दिन भूखा-प्यासा रहकर रोज़ा रखता है। नमाज़े अदा करता है। के अलावा तहज्जुद, चाश्त, नफ्ल अदा करता है इस महीने में वो मज़हबी टैक्स ज़कात और फितरा देकर गरीबों-मिसकीनों की ईद कराता है।अल्लाह ने हदीस में फरमया है कि सिवाए रोज़े के कि रोज़ा मेरे लिये है इसकी जज़ा मैं खुद दूंगा। बंदा अपनी ख्वाहिश और खाने को सिर्फ मेरी वजह से तर्क करता है। यह महीना नेकी का महीना है इस महीने से इंसान नेकी करके अपनी बुनियाद मजबूत करता है। ऐ मेरे पाक परवर दिगारे आलम, तू अपने हबीब के सदके में हम सबको रोज़ा रखने कि तौफीक अता कर... आमीन।


                 मौलाना हसीन अहमद हबीबी 

( इमाम, शाही मुगलिया मस्जिद, बादशाह बाग, वाराणसी)

बनारस की फिजां में घुली होली की मस्ती, गलियों से लेकर गंगा घाट तक फागुन का उल्लास




Varanasi (dil india live). होलिका दहन के साथ ही बनारस की फिजां में होली की मस्ती घुली हुई नज़र आयी। गलियों से लेकर गंगा घाट तक फागुन का उल्लास हर किसी के सिर चढ़कर बोलता दिखाई दिया। सुबह से ही होली खेलने की शुरुआत हो गई जो दोपहर तक जारी रही उसके बाद शाम में अबीर और गुलाल की होली परमपरानुसार जो शुरु हुई वो लगातार जारी है। भद्रा की समाप्ति के बाद रविवार की मध्य रात्रि के उपरांत मुहूर्त काल में ढोल नगाड़ों की थाप, हर-हर महादेव के जयघोष के बीच होलिका दहन किया गया। घाट पर हुलियारों की टोली और काशीवासियों ने जमकर अबीर-गुलाल उड़ाए। किशोर-युवाओं का हुजुम ‘जोगीरा, सारारारा... गाते- हुए शरारती मूड में आ गया। सुबह से कहीं होरियारों की टोली तो कहीं डीजे की धुन पर थिरकते युवा काशिका जोश के साथ मस्ती में डूबते-उतराते रहे। घरों से शुरू हुआ उत्सव का आनंद दिन चढ़ने के साथ ही सड़कों पर बिखरने लगा। घरों की रसोई पकवान की सुगंध से निहाल हो उठे, तो बच्चों ने भी धमाल मचाने की तैयारियां शुरू कर दीं। किसी ने पिचकारियों में रंग भरे तो किसी ने गुब्बारों में।होली के रंगों में डूबे युवा और बच्चे मस्ती की तरंग में जगह-जगह डीजे की धुन पर पारंपरिक और भोजपुरी होली गीतों पर थिरक रहे थे। जन-जन के मन के बांध तोड़कर होली का उल्लास और उमंग का रंग दिन चढ़ने के साथ और चटख होता गया। घर से गलियों तक फाग के रंग बरसे तो नख से शिख तक रंगों से सराबोर हो उठे। क्या बुजुर्ग क्या बच्चे हर किसी पर होली का रंग ऐसा चढ़ा कि चेहरा तक पहचानना मुश्किल हो गया। बनारस का कोना-कोना रंगों में भीग गया। घरों होली की शुरूआत हुई तो बच्चों ने छत, बॉलकनी और बरामदों से हर आने-जाने वालों पर रंगों की बौछार की। किसी को रंग भरे गुब्बारे से मारा तो किसी पर अबीर उड़ाए। जो भी मिला उसको रंगों से सराबोर किए बिना नहीं छोड़ा। गोदौलिया, सोनारपुरा, गौरीगंज, शिवाला, अस्सी, भदैनी, भेलूपुरा, लंका, सामनेघाट, नरिया, डीरेका, मंडुवाडीह, कमच्छा से लेकर वरुणा पार इलाके में होली के रंग-गुलाल जमकर उड़े। सड़कों और गलियों में डीजे की धुन पर नाचते-गाते युवाओं ने खूब धमाल मचाया। गंगा किनारे रहने वालों ने गंगा किनारे घाट पर होली खेली। हालांकि नावों पर प्रतिबंध के कारण गंगा उस पार नहीं जा सके।होली का रंग बनारसियो ने सुबह से गंगा घाटों पर जमी भीड़ धीरे-धीरे कम होने लगी। डीजे सॉन्ग पर नाच रहे लोगों को भी पुलिस ने हटाना शुरू कर दिया। शाम को होने वाली गंगा आरती के पूर्व दशाश्वमेध सहित विभिन्न घाटों की सफाई के चलते भीड़ को कम कराया गया। लोगों की सुविधा को देखते हुए दोपहर बाद कुछ क्षेत्रों में पेट्रोल पंप भी खोल दिए गए। सोमवार की सुबह से ही बनारसस की विश्व प्रसिद्ध होली खेलने के लिए यहां के लोग तैयार हो गए थे। जैसे-जैसे सूरज आसमान में चढ़ता गया वैसे-वैसे गंगा घाटों पर भीड़ भी बढ़ती गई। सबसे ज्यादा युवाओं की उपस्थिति रही। रंगोत्सव में देसी-विदेशी पर्यटकों ने भी बढ़-चढ़कर हिस्सा लिया। होली पर हर साल विदेशी पर्यटकों के साथ सेल्फी लेने की होढ़ मची रहती है। इसमें पर्यटकों को भी काफी खुशी मिलती है। अस्सी से लेकर दशाश्वमेध सहित उसके आगे के घाटों पर हर्षोल्लास के साथ होली का त्योहार मनाया गया। डीजे की धुन पर लोगों ने जमकर डांस किया। दोपहर करीब दो बजे के बाद पुलिस भी लोगों को हटाने लगी। घाटों पर भीड़ का दबाव देखते हुए प्रशासन भी दुरुस्त दिखा। जल पुलिस माइक के माध्यम से लोगों को अगाह कर रही थी। गंगा में ज्यादा दूर तक नहीं जाने का निर्देश दिया जा रहा था।

गंगा आरती से पहले घाटों की सफाई

नगर निगम की ओर से घाटों की सफाई के लिए हर बार की तरह उचित व्यवस्था की गई है। देर शाम होने वाली गंगा आरती के लिए दोपहर बाद घाटों की सफाई होने लगी। इससे पूर्व पर्यटकों ने खूब होली खेली। दूसरी तरफ, दशाश्वमेध सहित विभिन्न घाटों पर लोगों ने गंगा स्नान कर दान-पुण्य किया। वाराणसी घूमने आए पर्यटक गंगा आरती के आकर्षण को भी निहारेंगे।

शेख़ अली हजी को दिखता था बनारस का हर बच्चा राम और लक्ष्मण

बरसी पर याद किए गए ईरानी विद्वान शेख़ अली हजी  Varanasi (dil India live)। ईरानी विद्वान व दरगाहे फातमान के संस्थापक शेख मोहम्मद अली हजी ईरान...