शुक्रवार, 20 अक्तूबर 2023

मि. पूर्वांचल प्रतिस्पर्धा 29 अक्टूबर को



Varanasi (dil India live).20.10.2023. काशी डिस्ट्रिक बॉडी बिल्डिंग एण्ड फिटनेस एसोसिएशन के तत्वावधान में प्रतिष्ठापरक 14 वीं शेर - ए - बनारस एवं दूसरी मिस्टर पूर्वांचल की प्रतिस्पर्धा आगामी 29 अक्टूबर, 2023, रविवार को आयोजित होगी। गुरुवार को भीमनगर, सिकरौल स्थित कैम्प कार्यालय में आयोजित एसोसिएशन की बैठक में उक्त निर्णय लिया गया। बैठक की अध्यक्षता करते हुए एसोसिएशन के अध्यक्ष अहमद फैसल महतो ने बताया कि शेरे बनारस एवं मिस्टर पूर्वांचल की प्रतिस्पर्धा बॉडी बिल्डिंग की 6 एवं फिटनेस फिजिक की एक कैटेगरी में आयोजित होगी जिसमें प्रदेश भर के 250 से अधिक बॉडी बिल्डर भाग लेंगे। टाइटल एवं मसल मैन विजेता को नकद पुरस्कार के अलावा, ट्राफी, सर्टिफिकेट, सप्लीमेन्ट, ट्रैक सूट भी प्रदान किया जायेगा। बेस्ट ऑफ फाइव को ट्रॉफी, सर्टिफिकेट, टीशर्ट एवं सभी प्रतिभागियों को मेडल प्रदान किया जायेगा। उन्होंने बताया कि कार्यक्रम का आयोजन नगवा, लंका स्थित तुलसी विद्या निकेतन के प्रांगण में होगा। खिलाड़ियो का वजन प्रतिस्पर्धा के एक दिन पूर्व भीम नगर, सिकरौल (वरुणा एंक्लेव के सामने) स्थित किंग्स द जिम में होगा। स्पर्धा में 250 से अधिक खिलाड़ी शेर ए बनारस की प्रतिष्ठापरक टाइटल के लिए अपना दमखम दिखायेंगे। बैठक में मुख्य रूप से पवन यादव, विकास चौरसिया, फसरूद्दीन खान, एडवोकेट फिरदौसी, प्रताप बहादुर सिंह, मयंक उपाध्याय, निसार अहमद, रियासुद्दीन, कैस अंसारी, विजय आदि शामिल रहे।

गुरुवार, 19 अक्तूबर 2023

Kashi में Mata स्कन्द बागेश्वरी देवी मंदिर में हैं विराजमान

नवरात्र: पांचवें दिन स्कन्द माता के दर्शन को उमड़े श्रद्धालु


Varanasi (dil India live).19.10.2023. धर्म की नगरी काशी में नवरात्रि की धूम मची हुई है। शारदीय नवरात्र के पांचवें दिन भक्तों का हुजूम देवी मंदिरों में जुटा हुआ है। खासकर जैतपुरा स्थित बागेश्वरी देवी मंदिर में भक्तों ने भोर से ही दर्शन पूजन के लिए लम्बी लाइन लगा रखी थी। मंदिर का पट मंगला आरती के बाद खुला तो पूरा मंदिर परिसर माता के जयकारे से गूंज उठा।

इस प्राचीन मंदिर में स्कन्द माता विराजमान हैं उनकी गोद में भगवान् शंकर के पुत्र कार्तिकेय मौजूद हैं। मंदिर के पुजारी ने बताया कि यहां दर्शन पूजन करने वालों में निसंतान महिलाओं कि भी ज्यादा उपस्थिति रहती है, मान्यता है कि मां के दर्शन मात्र से संतान सुख मिलता है। 

नवरात्रि के चलते कड़ी सुरक्षा व्यवस्था देखने को मिली। माता बागेश्वरी देवी मंदिर जैतपुरा में विराजित स्कंदमाता के दर्शन के लिए आस्थावानों का रेला उमड़ा है ऐसे वाराणसी कमिश्नरेट पुलिस ने सुरक्षा के कड़े इंतजाम किए हैं पूरे परिसर में सीसीटीवी कैमरों से निगरानी की जा रही है। मंदिर के महंत गोपाल मिश्रा ने बताया कि नवरात्र के पांचवें दिन स्कन्द माता के दर्शन का विधान है। मान्यता है कि माता ने तारकासुर के वध के लिए कार्तिकेय को प्रशिक्षित किया था और ज्ञान दिया था जिसके बाद कार्तिकेय ने तारकासुर का वध किया तभी से इनका नाम स्कंदमाता पड़ा।

महंत ने बताया कि जिन लोगों को बोलने या चलने में दिक्कत होती वो लोग यहां दर्शन-पूजन करने साल भर आते हैं माता उनके दुःख हर लेती हैं इसके अलावा जिन महिलाओं को अभी तक संतान सुख नहीं मिला है और वो परेशान हैं उन्हें यहां दर्शन करना चाहिए माता दर्शन मात्र से संतान सुख देती हैं। इसके अलावा उनके दर्शन से मोक्ष प्राप्ति में आसानी होती है।

Varanasi के कलाम ने रौशन किया देश का नाम


Varanasi (dil India live).19.10.2023. उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के अजगरा विधानसभा के चोलापुर निवासी मोहम्मद अब्बास अली के पुत्र मो. कलाम ने नेपाल में अपने देश और जनपद का नाम रौशन किया है। भारत और नेपाल के बीच हुए खेल यूथ गेम्स एजुकेशन फेडरेशन इंडिया (YGEFI) में रेसलिंग में शामिल होकर प्रथम स्थान प्राप्त करने वाले कलाम की जीत पर अजगरा में जश्न का माहौल है। कलाम के चाचा मोहम्मद अली ने बताया की 10 अक्टूबर से 14 अक्टूबर तक हुए इस चैंपियनशिप में कलाम ने भारत का नाम रोशन किया है। इनको बधाई देने वालों का घर पर तांता लगा हुआ है। आसपास के गांव से भी लोग बधाईयां देने उमड़ रहे हैं।

बुधवार, 18 अक्तूबर 2023

Mata दरबार में गम्भीर रोगों से मुक्ति की प्रार्थना को जुटे भक्त

शारदीय नवरात्र के चौथे दिन मां कूष्माष्डा की भक्ति में डूबे भक्त


Varanasi (dil India live).18.10.2023. नवरात्रि के चौथे दिन मां कूष्माण्डा की पूजा करने देवी मंदिरों में भक्तों का हुजूम उमड़ पड़ा। इस दौरान बुधवार को महिलाओं ने चौथा व्रत रख कर मंदिरों का रुख किया। देवी कूष्मांडा की पूजा करने कुमकुम, मौली, अक्षत, पान के पत्ते, केसर और शृंगार आदि श्रद्धा पूर्वक भक्तों ने चढ़ाया। इस दौरान काफी भक्तों ने सफेद कोहड़ा  मातारानी को अर्पित किया, और दुर्गा चालीसा का पाठ किया। अंत में घी के दीपक जलाकर कपूर से मां कूष्मांडा की आरती की गई व मां कूष्मांडा से अपने परिवार के सुख-समृद्धि और संकटों से रक्षा का आशीर्वाद लिया गया। मनचाहे वर की प्राप्ति के लिए देवी कुष्मांडा की पूजा अविवाहित लड़कियों ने भी की। काशी के पंडित नवीन कुमार दुबे बताते हैं कि मां कुष्मांडा का स्वरुप बहुत ही पावन है। मां की आठ भुजाएं हैं, इसलिए मां कूष्माण्डा अष्टभुजा वाली भी कहलाईं। इनके आठ हाथों में कमण्डलु, धनुष, बाण, कमल-पुष्प अमऋतपूर्ण कलश, चक्र, गदा और माला है। मां कूष्माण्डा का वाहन सिंह है। जिनकी साधना करने पर साधक के जीवन से जुड़े सभी कष्ट दूर और कामनाएं पूरी होती हैं। इसलिए कष्टों और बीमारियों से मुक्ति के लिए मंदिरों में महिलाओं-पुरुषों की भारी भीड़ उमड़ी हुई है।वो बताते है कि इनका निवास सूर्य मंडल के भीतर के लोक में स्थित है। सूर्य लोक में निवास कर सकने की क्षमता और शक्ति केवल इन्हीं में है। नवरात्रि के चौथे दिन देवी कुष्मांडा की पूजा करने मंदिरों में अपार भीड़ भोर से ही दिखाई दी। कानपुर, वाराणसी और उत्तराखंड के कुष्मांडा देवी मंदिर देश भर में प्रसिद्ध हैं। इनमें भी वाराणसी में मौजूद मंदिर बहुत पुराना माना जाता है और उसका महत्व भी बहुत है। इसे दुर्गा मंदिर कहा जाता है और इसमें देवी के कुष्मांडा स्वरूप की पूजा की जाती है। देवी भागवत ग्रंथ में भी इसका उल्लेख है। मान्यताओं के अनुसार देवी कुष्मांडा के दर्शन से शत्रुओं का विनाश होता है। सुख शांति और धन एवं वैभव की प्राप्ति होती है। वाराणसी के दक्षिण क्षेत्र के भव्य मंदिर में देवी दुर्गा कुष्मांडा रूप में विराजमान हैं। मंदिर से लगे कुंड का भी महत्व दुर्गाकुंड के रूप में है। देवी भागवत में भी इस मंदिर का उल्लेख है।

ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने वाली मां कूष्मांडा सृष्टि की आदि-स्वरूपा, आदि शक्ति हैं। अपनी मंद, हल्की हंसी द्वारा अण्डा अर्थात ब्रह्माण्ड को उत्पन्न करने के कारण इन्हें कूष्माण्डा देवी के नाम से अभिहित किया गया है। जब सृष्टि का अस्तित्व नहीं था, चारों ओर अन्धकार ही अन्धकार परिव्याप्त था, तब इन्हीं देवी ने अपने 'ईषत' हास्य से ब्रह्माण्ड की रचना की थी। इनके पूर्व ब्रह्माण्ड का अस्तित्व नहीं था।

इनके शरीर की कांति और प्रभा भी सूर्य के समान ही है, इनके तेज की तुलना इन्हीं से की जा सकती है। अन्य कोई भी देवी-देवता इनके तेज़ और प्रभाव की समता नहीं कर सकते। इन्हीं के तेज़ और प्रकाश से दसों दिशाएं प्रकाशित हो रहीं हैं। ब्रह्माण्ड की सभी वस्तुओं और प्राणियों में स्थित तेज़ इन्हीं की छाया है। इनकी आठ भुजाएं हैं,अतः ये अष्टभुजा देवी के नाम से भी जानी जाती हैं। इनके सात हाथों में क्रमशः कमण्डलु, धनुष, बाण, कमलपुष्प, अमृत कलश,चक्र तथा गदा हैं। आठवें हाथ में सभी सिद्धियों और निधियों को देने वाली जपमाला है एवं इनका वाहन सिंह है यह भी कथा है कि शुम्भ-निशुम्भ के वध के बाद थकी देवी ने इस स्थान पर ही शयन किया था। उनके हाथ से उनकी असि जिस स्थान पर खिसकी, वह स्थान असि नदी के रूप में विख्यात हुआ। लिंग पुराण के अनुसार दक्षिण में दुर्गा देवी काशी क्षेत्र की रक्षा करती हैं।

एक मान्‍यता के अनुसार, इस मंदिर में स्‍थापित मूर्ति को मनुष्‍यों द्वारा नहीं बनाया गया है बल्कि यह मूर्ति स्‍वंय प्रकट हुई थी, जो लोगों की बुरी ताकतों से रक्षा करने आई थी। नवरात्रि और अन्‍य त्‍यौहारों के दौरान इस मंदिर में हजारों भक्‍तगण श्रद्धापूर्वक आते है। गैर-हिंदू को मंदिर के आंगन और गर्भगृह में प्रवेश करने की अनुमति नहीं है। इस मंदिर को बंदर मंदिर भी कहा जाता है क्‍यों कि इस मंदिर के परिसर में काफी संख्‍या में बंदर उपस्थित रहते है।

मंगलवार, 17 अक्तूबर 2023

नवरात्रि का तीसरा दिन: मां चंद्रघण्‍टा के मंदिरों में आस्था का सैलाब

चंद्रघंटा ही "काशी" में अपने  भक्तों को दिलाती हैं मोक्ष 

शेरावाली के जयकारे से गूंज उठी चौक की गलियां


Varanasi (dil India live).17.10.2023. शारदीय नवरात्रि का तीसरे दिन देवी मंदिरों में आस्था का सैलाब दिखाई दिया. इस मौके पर मां चंद्रघंटा के दर्शन-पूजा का विधान होने कि वजह से वाराणसी के चौक स्थित लक्खी चौतरा गली में देवी चंद्रघंटा मंदिर शेरावाली के जयकारों से गूंज उठा है. मंदिर परिसर से लेकर गलियों तक में देश भर से आए भक्तों की भारी भीड़ है. मां चंद्रघंटा का गुड़हल और बेले के फूल से श्रृंगार किया गया है.

मंदिर के वैभव योगेश्वर महंत ने बताया कि देवी चंद्रघंटा का स्वरूप स्वर्ण के समान चमकीला है. उनके मष्तक पर अर्ध चन्द्र सुशोभित है. इनके दशों भुजाओं में अस्त्र-शस्त्र एवं हड्डियां हैं. काशी में मान्यता है कि जब किसी व्यक्ति के प्राण निकलते हैं तो भगवती उनके कंठ में जाकर घंटी बजाती हैं, जिससे मृतक को मोक्ष की प्राप्ति होती है. नवरात्र के तीसरे दिन लोग भगवती की पूजा अर्चना करते हैं. जिसकी जैसी मनोकामनाएं होती है भगवती उसे पूरा करती हैं. उन्होंने आगे मां चंद्रघंटा मंदिर के विषय में बताते हुए कहा कि यह मंदिर प्राचीन है और इस मंदिर का उल्लेख काशी खंड में भी मिलता है.

नवरात्रि के तीसरे दिन दुर्गा माता के तीसरे स्‍वरूप चंद्रघण्‍टा देवी की पूजा का विधान है। देवी भागवत पुराण के अनुसार मां दुर्गा का यह रूप शांति और समृद्धि प्रदान करने वाला माना गया है। ऐसी मान्‍यता है कि चंद्रघण्‍टा देवी की पूजा करने से आपके तेज और प्रताप में वृद्धि होती है और समाज में आपका प्रभाव बढ़ता है। देवी का यह रूप आत्‍मविश्‍वास में वृद्धि प्रदान करने वाला माना गया है। आइए नवरात्रि के तीसरे दिन आपको बताते हैं चंद्रघण्‍टा देवी की पूजाविधि, पूजा मंत्र और मां का नाम चंद्रघण्‍टा क्‍यों पड़ा।

ऐसे पड़ा चंद्रघण्‍टा नाम

मां दुर्गा का यह स्‍वरूप अलौकिक तेज वाला और परमशक्तिदायक माना गया है। माता के रूप में उनके मस्‍तक पर अर्द्धचंद्र के आका का घंटा सुशोभित है, इसलिए देवी का नाम चंद्रघण्‍टा पड़ा है। मां के इस रूप की पूजा नवरात्रि के तीसरे दिन सूर्योदय से पहले उठकर करनी चाहिए। मां की पूजा में लाल और पीले फूल का प्रयोग किया जाता है। उनकी पूजा में शंख और घंटों का प्रयोग करने से माता प्रसन्‍न होकर हर मनोकामना पूर्ण करती हैं।

मां चंद्रघण्‍टा का रूप

अष्‍ट भुजाओं वाली मां चंद्रघण्‍टा का स्‍वरूप स्‍वर्ण के समान चमकीला है और उनका वाहन सिंह है। उनकी अष्‍टभुजाओं में कमल, धनुष, बाण, खड्ग, कमंडल, तलवार, त्रिशूल और गदा आदि जैसे अस्त्र और शस्त्र से सुसज्जित हैं। उनके गले में सफेद फूलों की माला और सिर पर रत्‍नजड़ित मुकुट शोभायमान है। मां चंद्रघण्‍टा सदैव युद्ध की मुद्रा में रहती हैं और तंत्र साधना में मणिपुर चक्र को नियंत्रित करती हैं।

मां चंद्रघण्‍टा का भोग

नवरात्रि के तीसरे दिन मां चंद्रघण्‍टा की पूजा में केसर की बनी खीर का भोग लगाना सबसे अच्‍छा माना जाता है। मां के भोग में दूध से बनी मिठाइयों का भोग लगाने की परंपरा है। आप दूध की बर्फी और पेड़े का भी भोग लगा सकते हैं।

लाल रंग का महत्‍व

मां चंद्रघण्‍टा की पूजा में लाल रंग के वस्‍त्र पहनकर पूजा करना सबसे शुभ माना जाता है. लाल रंग शक्ति और वृद्धि का प्रतीक माना जाता है। इस रंग के व‍स्‍त्र धारण करने से आपके धन समृद्धि में वृद्धि होती है और आपके परिवार में संपन्‍नता आती है.

मां चंद्रघण्‍टा का पूजा मंत्र

"पिण्डज प्रवरारूढ़ा चण्डकोपास्त्रकैर्युता।

प्रसादं तनुते महयं चन्द्रघण्टेति विश्रुता।।

वन्दे वांछित लाभाय चन्द्रार्धकृत शेखरम्।

सिंहारूढा चंद्रघंटा यशस्वनीम्॥

मणिपुर स्थितां तृतीय दुर्गा त्रिनेत्राम्।

रंग, गदा, त्रिशूल,चापचर,पदम् कमण्डलु माला वराभीतकराम्॥"

मां चंद्रघण्‍टा की पूजाविधि

नवरात्रि के तीसरे दिन ब्रह्म मुहूर्त में सूर्योदय से पहले उठकर स्‍नान कर लें और फिर पूजा के स्‍थान को गंगाजल छिड़ककर पवित्र कर लें. उसके मां दुर्गा की प्रतिमा को स्‍थापित करके मां के चंद्रघण्‍टा स्‍वरूप का स्‍मरण करें. घी के 5 दीपक जलाएं और फिर मां को लाल रंग के गुलाब और गुड़हल के फूल अर्पित करें. फूल चढ़ाने के बाद रोली, अक्षत और अन्‍य पूजन सामिग्री चढ़ाएं और मां का पूजा मंत्र पढ़ें. उसके बाद कपूर और घी के दीपक से माता की आरती उतारे और पूरे घर में शंख और घंटों की ध्‍वनि करें. पूजा के वक्‍त शंख और घंटी का प्रयोग करने से माहौल में सकारात्‍मकता बढ़ती है और नकारात्‍मक ऊर्जा का नाश होता है. पूजा के बाद मां को केसर की खीर का भोग लगाएं और मां से क्षमा प्रार्थना करके पूजा संपन्‍न करें. पूजा के बाद यदि आप चंद्रघंटा माता की कथा, दुर्गा चालीसा का पाठ करें या फिर दुर्गा सप्‍तशती का पाठ करें तो आपको संपूर्ण फल की प्राप्ति होती है.

सोमवार, 16 अक्तूबर 2023

नवरात्रि के दूसरे दिन देवी मंदिरों में महिलाओं का हुजूम



ब्रह्मचारिणी देवी का दर्शन करने उमड़ा भक्तों का रेला 

Varanasi (dil India live). 16.10.2023. शारदीय नवरात्र के दूसरे दिन वाराणसी समेत पूर्वांचल के देवी मंदिरों में महिलाओं व पुरुषों की भारी भीड़ उमड़ी. पहले दिन जहां मां शैलपुत्री का दर्शन पूजन हुआ था वहीं दूसरी ओर दूसरे दिन मां ब्रह्मचारिणी देवी का दर्शन पूजन हुआ.  ब्रह्मचारिणी देवी का दर्शन पूजन करने के लिए श्रद्धालुओं का जन सैलाब उमड़ा. मां ब्रह्मचारिणी का मंदिर काशी के सप्तसागर (कर्णघंटा) क्षेत्र में लोग भोर से ही जुटे हुए थे. दुर्गा पूजा के क्रम में ब्रह्मचारिणी देवी का दर्शन-पूजन बहुत महत्‍वपूर्ण माना गया है. इसलिए सुबह से ही यहां भीड़ लगी हुई थी. काशी के गंगा किनारे बालाजी घाट पर स्थित मां ब्रह्मचारिणी के मंदिर में सुबह से ही श्रद्धालुओं की भीड़ लगी हुई थी. श्रद्धालु लाइन में लगकर मां का दर्शन प्राप्त करते दिखाई दिए. श्रद्धालु मां के इस रूप का दर्शन करने के लिए नारियल, चुनरी, माला-फूल आदि लेकर श्रद्धा-भक्ति के साथ अपनी बारी आने का इंतजार कर रहे थे.

होती है परब्रह्म की प्राप्ति

ब्रह्मचारिणी देवी का स्वरूप पूर्ण ज्योतिर्मय एवं अत्यन्त भव्य है. इनके दाहिने हाथ में जप की माला एवं बायें हाथ में कमंडल रहता है. जो देवी के इस रूप की आराधना करता है उसे साक्षात परब्रह्म की प्राप्ति होती है. मां के दर्शन मात्र से श्रद्धालु को यश और कीर्ति प्राप्त होती है.

पूरी होगी हर मनोकामना

यहां ना सिर्फ काशी बल्कि अन्य जिलों से भी लोग दर्शन एवं पूजन के लिए आते हैं. नवरात्रि पर तो इस मंदिर में लाखों भक्त मां के दर्शन करने के लिए आते हैं. ऐसी मान्यता है कि मां के इस रूप का दर्शन करने वालों को संतान सुख मिलता है. साथ ही वो भक्तों की हर मनोकामना पूरी करती हैं।

रविवार, 15 अक्तूबर 2023

नवरात्रि : मां शैलपुत्री के मंदिर में उमड़ा जनसैलाब




Varanasi (dil India live). 15.10.2023. रविवार से पवित्र नवरात्रि शुरू हो गया है. इस दौरान पहले ही दिन देवी मंदिरों में भक्तों का हुजूम सुबह से ही उमड़ा हुआ है. पहले दिन ख़ास कर मां शैलपुत्री की पूजा अर्चना होती है. इसे देखते हुए मां शैलपुत्री के मंदिरों में जनसैलाब उमड़ा। जलालीपुरा पुराना पुल स्थित माता शैलपुत्री के दरबार में भोर से दर्शन पूजन शुरू हुआ. समाचार लिखे जाने तक एक लाख भक्तों ने यहां दर्शन पूजन कर लिया था.

नवरात्रि भारत में सबसे शुभ और मनाए जाने वाले हिंदू त्योहारों में से एक है. यह नौ दिनों का त्योहार है जो मां के शक्ति स्वरूप की आराधना करते हुए मनाया जाता है. पूरे भारत में नवरात्रि का पहला दिन बड़े उत्साह और उमंग के साथ मनाया जाता है. शारदीय नवरात्रि या महा नवरात्रि  अश्विन महीने में आती है, जो ग्रेगोरियन कैलेंडर के अनुसार सितंबर या अक्टूबर के दौरान आती है. यह आश्विन माह की प्रतिपदा (पहले दिन) को शुरू होती  है और आश्विन माह की नवमी को समाप्त होती है. इस वर्ष, शारदीय नवरात्रि 15 अक्तूबर, 2023 को शुरू हुई और 24 अक्तूबर को समाप्त होगी। हिंदू पंचांग के अनुसार दिनांक 15 अक्तूबर को शारदीय नवरात्रि के पहले दिन मां दुर्गा के प्रथम स्वरूप मां शैलपुत्री की पूजा-अर्चना की जाती है. इस दौरान सर्वप्रथम घटस्थापना की जाती है और फिर  मां दुर्गा का आह्वान, स्थापन और प्राण प्रतिष्ठा की जाती है. तदोपरांत मां शैलपुत्री की पूजा की जाती है. आइए जानते हैं पहले दिन मां शैलपुत्री की पूजा विधि, मंत्र और भोग के बारे में-

पूजा विधि

सबसे पहले मां शैलपुत्री की तस्वीर स्थापित करें और उसके नीचे लकड़ी की चौकी पर लाल वस्त्र बिछाएं। इसके ऊपर केशर से 'शं' लिखें और उसके ऊपर मनोकामना पूर्ति गुटिका रखें। तत्पश्चात् हाथ में लाल पुष्प लेकर शैलपुत्री देवी का ध्यान करें.

मंत्र इस प्रकार है

ॐ ऐं ह्रीं क्लीं चामुण्डाय विच्चे ॐ शैलपुत्री देव्यै नम:.

मंत्र के साथ ही हाथ के पुष्प मनोकामना गुटिका एवं मां के तस्वीर के ऊपर छोड़ दें. इसके बाद प्रसाद अर्पित करें तथा मां शैलपुत्री के मंत्र का जाप करें. इस मंत्र का जप कम से कम 108 करें.

मां शैलपुत्री का स्वरूप 

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार मां शैलपुत्री हिमालय की पुत्री हैं। इनका जन्म शैल अर्थात पत्थर से हुआ था जिसके कारण इन्हें शैलपुत्री के नाम से जाना जाता है. मां अपनी भक्तों की प्रार्थना सुनने बैल पर सवार होकर आती हैं और एक हाथ में कमल का पुष्प व दूसरे में त्रिशूल धारण करती हैं.

काशी में है मां शैलपुत्री का मंदिर, दर्शन मात्र से ही कष्टों से मिलती है मुक्ति

शारदीय नवरात्रि की शुरुआत के पहला दिन होने के चलते आज के दिन माता शैलपुत्री की पूजा की जाती है. शिव नगरी 'काशी' के  जलालीपुरा क्षेत्र में माता शैलपुत्री का मंदिर स्थित है. नवरात्रि के दिनों में माता के दरबार में भक्तों की काफी भीड़ देखी जाती है. कहा जाता है कि नवरात्रि में पहले दिन माता के दर्शन करने से भक्तों को विवाह संबंधी परेशानियों से भी मुक्ति मिलती है और भक्तों की मन्नतें भी पूरी हो जाती है. 

मां शैलपुत्री का इतिहास

इस मंदिर को लेकर कहा जाता है कि जब माता पार्वती ने हिमवान की पुत्री के रुप में जन्म लिया था तो वे शैलपुत्री कहलाई थीं। मंदिर को लेकर एक और किवदंती है कि एक बार माता भगवान शिव से नाराज होकर कैलाश से काशी आ गई थीं और जब भगवान भोलेनाथ उन्हें मनाने के लिए काशी आए तब माता ने कहा कि उन्हें यह स्थान काफी अच्छा लग रहा है और यह कहकर माता यही रूक गई, जो आज तक अपने भक्तों को दर्शन देती आ रही हैं और मुरादें भी पूरी करती आ रही हैं.

माता शैलपुत्री मंदिर का आकर्षण

इस मंदिर में प्रवेश करते ही आपको एक अलग ही अनुभूति होगी, जो शायद आपने कभी ना की हो. माता का मंदिर भी काफी सुंदर है. इस मंदिर में माता की दिन बार आरती की जाती है। इसके साथ ही माता को चढ़ावे के रूप में चुनरी और नारियल चढ़ाया जाता है. माता का वाहन वृषभ होने के कारण मां वृषारूढ़ा के नाम से भी जानी जाती हैं.

कौन हैं मां शैलपुत्री?

दुर्गाजी पहले स्वरूप में ‘शैलपुत्री’ के नाम से जानी जाती हैं. येे नवदुर्गाओं में प्रथम दुर्गा हैं. पर्वतराज हिमालय की पुत्री होने के कारण माता पार्वती को शैलपुत्री भी कहा जाता है. पर्वतराज हिमालय के घर पुत्री रूप में उत्पन्न होने के कारण इनका नाम ‘शैलपुत्री’ पड़ा. नवरात्रि के प्रथम दिन योगी अपने मन को ‘मूलाधार’ चक्र में स्थित करते हैं और यहीं से उनकी योग साधना का प्रारंभ होता है.

माता शैलपुत्री की कथा

राजा प्रजापति दक्ष ने एक बहुत बड़ा यज्ञ किया, जिसमें शंकरजी को निमंत्रित नहीं किया गया था. इस बात की जानकारी सती को हुई, तो उनका मन विकल हो उठा. उन्होंने भगवान शिव को इस बारे में बताया. तब शंकर जी ने कहा कि प्रजापति दक्ष उनसे किसी कारण से नाराज हैं, इसलिए यज्ञ में नहीं बुलाए हैं. बिना निमंत्रण वहां जाना ठीक नहीं है.

सती नहीं मानीं और उस यज्ञ में चली गईं. वहां जाने पर उनको अपनी गलती का एहसास हुआ क्योंकि सभी लोग उनको अनदेखा कर रहे थे, कोई ठीक से बात भी नहीं कर रहा था. मां ने बस प्रेम से उनको गले लगाया. लोगों के इस व्यवहार से सती और दुखी हो गईं.

वहां पर उनका और उनके पति भगवान शंकर का तिरस्कार हो रहा था. दक्ष ने उनको कटु वचन भी बोले. तब सती का मन क्रोध से भर गया. शिव जी के रोकने के बाद भी वह अपने पिता के यज्ञ में शामिल होने आई थीं. क्रोध और ग्लानि के वशीभूत उन्होंने स्वयं को उस यज्ञ की अग्नि में जलाकर भस्म कर दिया.

इससे शंकर जी भी उद्वेलित हो गए और उन्होंने उस यज्ञ को भी तहस नहस कर दिया. फिर वही सती अगले जन्म में शैलराज हिमालय की पुत्री के रूप में जन्म लीं. वही ‘शैलपुत्री’ नाम से विख्यात हुईं. उनको पार्वती और हैमवती नाम से भी जाना जाता है.

मां शैलपुत्री की पूजा का महत्व

नवरात्रि की प्रथम देवी मां शैलपुत्री हैं. आज पूरे दिन मां शैलपुत्री का ध्‍यान करने से अनंत फल की प्राप्ति होती है. उनकी कृपा से भय दूर होता है, शांति और उत्साह मिलता है. वे अपने भक्तों का यश, ज्ञान, मोक्ष, सुख, समृद्धि आदि प्रदान करती हैं. उनकी आराधना करने से इच्छाशक्ति प्रबल होती है.

मां शैत्रपुत्री पूजन मंत्र

वन्दे वांच्छितलाभाय चंद्रार्धकृतशेखराम्‌॥वृषारूढ़ां शूलधरां शैलपुत्रीं यशस्विनीम्‌॥

याशिवरूपा वृष वहिनी हिमकन्या शुभंगिनी।पद्म त्रिशूल हस्त धारिणी रत्नयुक्त कल्याणकारीनी.

मां शैलपुत्री पूजा विधि

आज सबसे पहले घटस्थापना और पूजन संकल्प के बाद मां शैलपुत्री की पूजा करें. उनको अक्षत्, सफेद फूल, सिंदूर, धूप, दीप, गंध, फल, मिठाई आदि अर्पित करें. इस दौरान उनके पूजन मंत्र का उच्चारण करें और माता शैत्रपुत्री की कथा पढ़ें. माता शैल.पुत्री को दूध से बनी मिठाई का भोग लगाएं या फिर गाय के घी का भी भोग लगा सकते हैं. इसके बाद घी के दीपक से मां शैत्रपुत्री का आरती करें. पूजा का समापन क्षमा प्रार्थना मंत्र से करें. मां से पूजा में कमियों और गलतियों के लिए माफी मांग लें. उसके बाद मनोकामना पूर्ति के लिए प्रार्थना करें.

38000 Students को राहत देने की टीचर्स एसोसिएशन मदारिसे अरबिया की मांग

कामिल व फाज़िल मदरसा छात्रों को ख्वाजा मोइनुद्दीन चिश्ती विश्वविद्यालय से सम्बद्ध किया जाए-हाजी दीवान साहेब ज़मा - मदरसा नियमावली से अगे बढ...