सोमवार, 11 अप्रैल 2022

रमज़ान की रहमत का सफर होगा कल मुकम्मल

रहमत का अशरा पूरा होते शुरू होगा मगफिरत का अशरा


वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। मुकद्दस रमज़ान का नौ रोज़ा आज मुकम्मल हो गया। कल रमज़ान की रहमत का अशरा पूरा हो जाएगा। रमजान का रहमत का सफर पूरा होने के साथ ही इस माहे मुबारक का दूसरा अशरा मगफिरत शुरू हो जाएगा।

दरअसल रब ने रमजान को तीन अशरो में बांटा है। पहला अशरा रहमत का, दूसरा आशरा मगफिरत और तीसरा अशरा जहन्नुम से आजादी का होता है। अशरा दस दिन को कहते हैं। कहा जाता है कि रहमत के पहले दस दिन रोज़ादारो पर रब अपनी रहमत बरसाता है। फिर दस दिन मगफिरत का होता है जिसमें अल्लाह रोज़ेदारों की गुनाह माफ कर देता है यानी मगफिरत फरमाता है। इसके बाद रमज़ान के आखिरी अशरे में अल्लाह रोज़ेदारों को जहन्नुम से आज़ाद कर देता है।

जो रमजान का पूरा रोजा रखेगा, तीसो दिन रोजा रखने में कामयाब रहेगा। उसे जहन्नम की आग नहीं खा पाएगी और उसे जन्नत में दाखिल किया जाएगा। रोजेदारों के लिए जन्नत में एक खास दरवाजा बाबे रययान होगा, जिसमें से केवल रोजेदार ही जन्नत में दाखिल होंगे। रमजान के तीन अशरो को जिसने भी कामयाबी से पूरा किया, जैसा कि रब चाहता है तो वो रोज़ेदार जन्नत का हकदार होगा। रब उसे जहन्नुम से आजाद कर देगा।

बैसाखी पर हुई थी खालसा पंथ की स्थापना

१३ अप्रैल (बैसाखी) पर खास

धर्म रक्षक गुरु गोविंद सिंह ने किया था खालसा पंथ की स्थापना


-हरजिंदर सिंह राजपूत

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। उस दौर में भारत की जनता हर तरफ से शोषित हो रही थी। तब भारत भूमि ने काल की मांग के अनुरूप एक महापुरुष को जन्म दिया। जिसने ने शिष्यों और अनुयायियों को समाज और राष्ट्र की बलिवेदी पर अपने को चढ़ा देने के लिए आह्वान ही नहीं किया वरना स्वयं एवं अपने पूरे परिवार को इस बलिवेदी पर चढ़ा दिया। यह महापुरुष थे सिखों के दसवें पातशाह गुरु गोविंद सिंह। इनके दो छोटे पुत्र फतेह सिंह एवं जोरावर सिंह को उस दौर के बादशाह ने धर्म परिवर्तन न करने पर जिंदा सरहिन्द की दीवारों में चुनवा दिया और इनके दो बड़े पुत्र अजीत सिंह और जुआर सिंह युद्ध में जूझते-जूझते वीरगति को प्राप्त हुये। जब गुरु गोविंद सिंह युद्ध से लौटे तो उनकी पत्नी ने अपने ४ बेटों के बारे में पूछा। इस पर गुरु गोविंद सिंह ने कहा था कि- 

इन पुत्रों के कारणे वार दिये सूत चार 

चार मुये तो क्या हुआ जीवित कई हजार।

इस महापुरुष का जन्म 22 दिसंबर सन, 1666, ईस्वी को पटना बिहार प्रांत के नगर में हुआ था। गुरु गोविंद सिंह ने देखा कि किस तरह उनके पिता गुरु तेगबहादुर को चांदनी चौक दिल्ली में इस्लाम धर्म न कबूल करने के आरोप में सरेआम कत्ल किये जाने पर उनका शीश और धड़ उठाने में लोग झिझक रहे थे और चोरी-छिपे उसे उचित जगह पर ले जाया गया था। यह बस इसलिए हुआ कि वह पहचान लिया जाएगा कि वह हिंदू है और उसका भी कत्ल कर दिया जाएगा। प्राणो के लिए इतना मोह की हिंदू के लिए हिंदू कहना भी मानो मौत को बुलाने के समान हो। यह सब गुरुजी से देखा न गया। इस पर उन्होंने प्रण किया कि मैं एक ऐसी बहादुर, लड़ाकू, विवेकशील और भारतीयता और मानवता के नाम पर मर मिटने को हमेशा तैयार रहने वाली कौम पैदा करूंगा जो वीरता में तो आदि्तीयत होगी ही साथ ही साथ उसके बाहरी चेहरे के स्वरूप के कारण उसका सदस्य लाखों में बड़ा पहचाना जाएगा कि वह भारतीय है।

इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए उन्होंने पंजाब के आन्नदपुर नामक स्थान पर 13 अप्रैल 1699 को बैसाखी वाले दिन एक बड़ी विशाल आमसभा का आयोजन किया गया, सभा की कार्रवाई शुरू करते ही उन्होंने कहा कि मुझे देश धर्म और समाज की रक्षा के लिए शीश (सिर) की आवश्यकता है। उनका यह क्रांतिकारी ऐलान सुनकर जनता में खलबली सी मच गई परन्तु कुछ समय उपरांत एक वीर उठा उसने कहा गुरु जी धर्म रक्षा के लिए मेरा शीश अर्पित है। गुरुजी उसके पास वाले खेमे में ले गए और उसका सिर धड़ विच्छेद कर दिया और पुनः बाहर आकर शीश की मांग दोहराई इसी प्रकार पांच वीरों की शीश धड़ से अलग कर पुनः उन्हें जीवित करके बाहर लाये और कहा यह हमारे प्रेरणा स्रोत पांच प्यारे हैं। उनको खंण्डे का अमृत पिलाया और कच्छ, कड़ा, कंघा, केश और कृपाण देकर सिंह नामक अलंकार से विभूषित किया। और उनसे बूंद अमृत पान करके "आपे गुरु चेला" का एक प्रेरणाप्रद मिसाल दुनिया के समक्ष रखी ऐसा दूसरा उदाहरण इस संसार में मिलना कठिन है।

खालसा पंथ का निर्माण कर के गुरु गोविंद सिंह जी ने अपना प्रण पूरा कर दिखाया इसका इतिहास और वर्तमान साक्षी है। वास्तव में गुरु गोविंद सिंह जी एवं सिख धर्म गुरुओं का उद्देश्य कोई नया धर्म कायम करने का ना था। उन्होंने सभी धर्म में समानता कायम करने और मिथ्या धार्मिक आय अम्बारो से बचकर ईश्वर को मानने के प्रेरणा दी।

विभिन्न धर्मानुयायी अभी तक जिन कमजोरियों के शिकार होते आये हैं और उनके तथाकथित गुरु या धर्माचार्य उन्हें भ्रमित करते आ रहे हैं। उससे बचने के लिए गुरु गोविंद सिंह जी ने शब्द ब्रह्म की उपासना करने की प्रेरणा दी उस समय विश्व की जो भी प्रांतीय सीमाएं थी और उनकी उपासना करने वाले जितने भी संत महात्मा और कवि थे उन सभी की उत्कृष्ट रचनाओं को एक जगह संग्रहित करके उन्होंने गुरु ग्रंथ साहिब को ही परमेश्वर मारने की शिक्षा दी और इस संदर्भ में कहा-

सब सीखन को हुकम है,

 गुरु मान्यो ग्रंथ गुरु ग्रंथ!

गुरु ग्रन्थ जी मानयो,

  प्रगट गुरु की देह!

 जाका हृदय शुद्ध है, 

खोज शब्द में लेह!

गुरु ग्रंथ साहिब में हर प्रांत ही नहीं हर जाति के ब्राह्मण से लेकर शुद्ध और सूफी, संतों, हिंदू मुसलमान रचनाकारों की रचनाओं कौन संग्रहित कर के धर्म क्षेत्र में एक क्रांतिकारी मिसाल पेश की।

रविवार, 10 अप्रैल 2022

रमज़ान गुनाहों की माफी का महीना है: नबील हैदर


Varanasi (dil India live )। रमज़ान तमाम मुसलमानो के लिए मगफिरत के साथ ही बेहतरीन इबादतों का महीना है। उक्त बातें जोहर की नमाज के बाद अर्दली बाज़ार में एक जलसे में तकरीर करते हुए सैय्यद नबील हैदर ने कहीं। उन्होंने कहा कि रमजान मुसलमानों के लिए बहुत ही मुबारक महीना है। इस महीने मुसलमानो की सबसे पवित्र किताब कुरान नाजिल हुई थी। नबील ने कहा कि रमज़ान के 30 दिनो को तीन भागों में बाटा गया है, जिसे अरबी में अशरा कहा गया है दस दस दिन के तीन अशरे होते है। पहला अशरे को रहमत का अशरा कहा जाता है। इस दौरान जितने भी नेक काम किए जाते है अल्लाह बंदे को अपनी रहमत बरसाता है। दूसरा अशरा मगफिरत यानी माफी का अशरा कहा जाता हैं। इसमें इबादत करने वाले बंदे की गुनाहों को अल्लाह माफ कर देता है। तीसरा अशरा बेहद खास माना गया है ये जहन्नम से आजादी का। जो बंदा रमज़ान का पूरा रोज़ा मुकम्मल करता है रब उसे जहन्नुम की आग से आज़ाद कर देता है।

गर्भवती की करें खास देखभाल ताकि जच्चा-बच्चा बनें खुशहाल

राष्ट्रीय सुरक्षित मातृत्व दिवस (11 अप्रैल) पर विशेष

प्रसव पूर्व जरूरी जांच कराएं, खुद के साथ गर्भस्थ को सुरक्षित बनाएं 

० पहली बार गर्भवती होने पर प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के तहत तीन किश्तों में 5000 रुपये पाएँ 

० जननी सुरक्षा योजना व मुफ्त एम्बुलेंस की सुविधा का भी लाभ उठाएं 

 वाराणसी 10 अप्रैल (dil India live ) मातृत्व स्वास्थ्य को सुदृढ़ बनाने पर सरकार व स्वास्थ्य विभाग का पूरा जोर है। इसके तहत हर जरूरी बिन्दुओं का खास ख्याल रखते हुए जच्चा-बच्चा को सुरक्षित बनाने की हरसंभव कोशिश की जा रही है ताकि मातृ एवं शिशु मृत्यु दर को न्यूनतम स्तर पर लाया जा सके। समुदाय में इस बारे में पर्याप्त जागरूकता लाने और इसके लिए मौजूद हर सुविधाओं का लाभ उठाने के बारे में जागरूकता के लिए ही हर साल 11 अप्रैल को सुरक्षित मातृत्व दिवस मनाया जाता है। यह जानकारी *मुख्य चिकित्सा अधिकारी डॉ संदीप चौधरी ने दी। 

    डॉ संदीप चौधरी का कहना है कि गर्भवती की प्रसव पूर्व मुफ्त जांच के लिए प्रधानमंत्री सुरक्षित मातृत्व अभियान के तहत हर माह की नौ तारीख को स्वास्थ्य केन्द्रों पर विशेष आयोजन होता है। जहाँ एमबीबीएस चिकित्सक द्वारा गर्भवती की सम्पूर्ण जांच नि:शुल्क की जाती है और कोई जटिलता नजर आती है तो उन महिलाओं को चिन्हित कर उन पर खास नजर रखी जाती है, ताकि जच्चा-बच्चा को सुरक्षित बनाया जा सके। 

अपर मुख्य चिकित्सा अधिकारी (आरसीएच) डॉ एके मौर्य ने बताया कि पहली बार गर्भवती होने पर प्रधानमंत्री मातृ वंदना योजना के तहत सही पोषण और उचित स्वास्थ्य देखभाल के लिए तीन किश्तों में 5000 रूपये दिए जाते हैं । इसके अलावा संस्थागत प्रसव को बढ़ावा देने के लिए जननी सुरक्षा योजना है, जिसके तहत सरकारी अस्पतालों में प्रसव कराने पर ग्रामीण महिलाओं को 1400 रूपये और शहरी क्षेत्र की महिलाओं को 1000 रूपये दिए जाते हैं । प्रसव के तुरंत बाद बच्चे की उचित देखभाल के लिए जननी शिशु सुरक्षा कार्यक्रम है तो यदि किसी कारणवश मां की प्रसव के दौरान मृत्यु हो जाती है तो मातृ मृत्यु की समीक्षा भी होती है । सुरक्षित प्रसव के लिए समय से घर से अस्पताल पहुँचाने और अस्पताल से घर पहुंचाने के लिए एम्बुलेंस की सेवा भी उपलब्ध है । 

० जटिलता वाली गर्भवती (एचआरपी) की पहचान 

० दो या उससे अधिक बार बच्चा गिर गया हो या एबार्शन हुआ हो 

० बच्चे की पेट में मृत्यु हो गयी हो या पैदा होते ही मृत्यु हो गयी हो 

० कोई विकृति वाला बच्चा पैदा हुआ हो 

० प्रसव के दौरान या बाद में अत्यधिक रक्तस्राव हुआ हो 

पहला प्रसव बड़े आपरेशन से हुआ हो।

 गर्भवती को पहले से कोई बीमारी हो 

० हाई ब्लड प्रेशर (उच्च रक्तचाप) या मधुमेह (डायबीटीज) 

० दिल या गुर्दे की बीमारी , टीबी या मिर्गी की बीमारी 

पीलिया, लीवर की बीमारी या हाईपोथायराइड 

वर्तमान गर्भावस्था में यह दिक्कत तो नहीं

० गंभीर एनीमिया- सात ग्राम से कम हीमोग्लोबिन 

० ब्लड प्रेशर 140/90 से अधिक 

० गर्भ में आड़ा/तिरछा या उल्टा बच्चा 

० चौथे महीने के बाद खून जाना 

० गर्भावस्था में डायबिटीज का पता चलना 

० एचआईवी या किसी अन्य बीमारी से ग्रसित होना  

क्या कहते हैं विशेषज्ञ 

स्त्री एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ डॉ. सारिका राय* का कहना है कि जच्चा-बच्चा को सुरक्षित बनाने के लिए सरकार द्वारा कई योजनायें चल रहीं हैं । इनका प्रचार-प्रसार भी किया जा रहा है ताकि ज्यादा से ज्यादा को बेहतर स्वास्थ्य सेवाएं प्रदान की जा सकें । आशा कार्यकर्ता इसमें अहम् भूमिका निभा रहीं हैं । उनका कहना है कि मां-बच्चे को सुरक्षित करने का पहला कदम यही होना चाहिए कि गर्भावस्था के तीसरे-चौथे महीने में प्रशिक्षित चिकित्सक से जांच अवश्य करानी चाहिए ताकि किसी भी जटिलता का पता चलते ही उसके समाधान का प्रयास किया जा सके । इसके साथ ही गर्भवती खानपान का खास ख्याल रखे और खाने में हरी साग-सब्जी, फल आदि का ज्यादा इस्तेमाल करे, आयरन और कैल्शियम की गोलियों का सेवन चिकित्सक के बताये अनुसार करे । प्रसव का समय नजदीक आने पर सुरक्षित प्रसव के लिए पहले से ही निकटतम अस्पताल का चयन कर लेना चाहिए और मातृ-शिशु सुरक्षा कार्ड, जरूरी कपड़े और एम्बुलेंस का नम्बर याद रखना चाहिए । समय का प्रबन्धन भी अहम् होता है क्योंकि  एम्बुलेंस को सूचित करने में विलम्ब करने और अस्पताल पहुँचने में देरी से खतरा बढ़ सकता  है।  

गर्भावस्था की सच्ची सहेली बनीं आशा

  आशा कार्यकर्ता गर्भ का पता चलते ही गर्भवती का स्वास्थ्य केंद्र पर पंजीकरण कराने के साथ ही इस दौरान बरती जाने वाली जरूरी सावधानियों के बारे में जागरूक करने में सच्ची सहेली की भूमिका अदा करती हैं । इसके साथ ही प्रसव पूर्व जरूरी जांच कराने में मदद करती हैं । संस्थागत प्रसव के लिए प्रेरित करतीं हैं और प्रसव के लिए साथ में अस्पताल तक महिला का साथ निभाती हैं ।

खजूर की डालियों संग मसीही समुदाय ने निकाला जुलूस

महागिरजा समेत चर्चेज में येरुसलम की घटना का हुआ जिक्र

वाराणसी १० अप्रैल (दिल इंडिया लाइव)। ईसाई समाज ने प्रभु यीशु के यरुसलम में आने की खुशी में रविवार को खजूर इतवार मनाया। इस मौके पर गिरजाघरों को खजूर की पत्तियों से सजाया गया था। साथ ही विशेष प्रार्थना सभा का भी आयोजन किया गया। इसमें बड़ी संख्या में मसीही समुदाय के लोगो ने शिरकत की। आयोजन के दौरान महागिरजा समेत चर्चेज में येरुसलम की उस घटना का जिक्र जब प्रभु यीशु यरुशलम में राजाओं की तरह प्रवेश किया था।

इस दौरान सेंट मेरीज महागिरजा में बिशप यूजीन जोसेफ की अगुवाई में जुलूस निकाला गया तो फादर विजय शांति राज के संयोजन में प्रार्थना सभा हुई। ऐसे ही लाल गिरजा से पादरी संजय दान, चर्च आफ बनारस में पादरी बेन जान, राम कटोरा चर्च में पादरी आदित्य कुमार, ईसीआई चर्च में पादरी दशरथ पवार, पादरी नवीन ज्वाय, सेंट पाल चर्च में पादरी सैम जोशुआ, सेंट थॉमस चर्च में पादरी न्यूटन स्टीवन्स व विजेता प्रेयर मिनीस्ट्रीज में पादरी ने अजय कुमार पास्टर एसपी सिंह ने आराधना कराया। ऐसे ही बनारस और आसपास के तमाम गिरजाघरों में खजूर की डालियों संग जुलूस निकाला गया। मसीही विश्वासी खजूर की डालियां लेकर चर्च जायें और धार्मिक अनुष्ठान में शामिल हुए। संडे को जुलूस सम्पन्न होने के साथ ही सोमवार से दुःख भोग सप्ताह की शुरुआत होगी। कोविड काल के बाद पहली बार यह पर्व जोश और उत्साह से मनाया गया।

दरअसल खजूर इतवार प्रभु यीशु के यरुशलम में प्रवेश करने की खुशी में मनाया जाता है। उस दौर में येरुशलम के लोगों ने उनका स्वागत खजूर की डालियां लहरा कर राजा की तरह किया था। उनकी इसी याद के रूप में पाम संडे मनाया जाता है। अब 14 अप्रैल को पवित्र गुरुवार होगा तो 15 अप्रैल को गुड फ्रायडे मनाया जाएगा। 17 को प्रभु यीशु मसीह के जी उठने की खुशी में ईस्टर मनेगा।


हज़रत अली के घर रमज़ान


हजरत अली के घर में सबने रोजा रखा। हजरत फातिमा ने भी रोजा रखा, दो बच्चे है उनके अभी छोटे है पर रोजा रखा हुआ है। मगरिब का वक़्त होने वाला है, इफ्तारी का वक़्त होने वाला है, सबके सब मुसल्ला बिछा कर रो-रोकर दुआ मांगते हैं। हजरत फातिमा दुआ खत्म करके घर में गयी और चार (4) रोटी बनाई, इससे ज्यादा उनके घर में अनाज नही है। हजरत फातिमा चार रोटी लाती है। पहली रोटी अपने शौहर अली के सामने रख दी! दूसरी रोटी अपने बड़े बेटे हसन के सामने! तीसरी रोटी छोटे बेटे हुसैन के सामने रख दी! ओर एक रोटी खुद रख ली। 

मस्जिद-ए-नबवी में आजान हो गयी, सबने रोजा खोला, सबने रोटी खाई। मगर दोस्तो...अल्लाह की कसम वो फातिमा थी जिसने आधी रोटी खाई ओर आधी रोटी को दुपट्टे से बांधना शुरू कर दिया। ये मामला हजरत अली ने देखा और कहा के फातिमा तुझे भूख नही लगी, एक ही तो रोटी है उसमे से आधी रोटी दुपट्टे में बांध रही हो? फातिमा ने कहा!! ऐ अली हो सकता है मेरे बाबा जान(नबी पाक)को इफ्तारी में कुछ ना मिला हो, वो बेटी कैसे खायगी जिसके बाप ने कुछ खाया नही होगा?

फातिमा दुपट्टे में रोटी बांध कर चल पड़ी है उधर हमारे नबी मगरिब की नमाज़ पढ़ा कर आ रहे हैं हजरत फातिमा दरवाजे पर है देखकर हुजूर कहते हैं ऐ फातिमा तुम दरवाजे पर कैसे, फातिमा ने कहा ए अल्लाह के रसूल मुझे अंदर तो लेके चले। हजरत फातिमा की आंखों में आंसू थे, कहा जब इफ्तार की रोटी खाई तो आपकी याद आ गयी कि शायद आपने खाया नही होगा इसलिए आधी रोटी दुपट्टे से बांध कर लाई हूँ।

रोटी देखकर हमारे नबी की आंखों में आंसू आ गए और कहा, ए फातिमा अच्छा किया जो रोटी ले आई वरना चौथी रात भी तेरे बाबा की इसी हालात में निकल जाती। दोनों एक दूसरे को देखकर रोने लगते हैं। अल्लाह के रसूल ने रोटी मांगी, फातिमा ने कहा बाबा जान आज अपने हाथों से रोटी खिलाऊंगी ओर चौडे चोड़े टुकड़े किये और हुजूर को खिलाने लगी। रोटी खत्म हो गयी और हजरत फातिमा रोने लगती है। हुजूर पाक ने देखा और कहा के फातिमा अब क्यों रोती हो?कहा अब्बा जान कल क्या होगा? कल कोन खिलाने आयगा? कल क्या मेरे घर मे चुहला जलेगा ? कल क्या आपके घर में चुहला जलेगा? नबी ने अपना प्यारा हाथ फातिमा के सर पर रखा और कहा कि फातिमा तू भी सब्र करले ओर मैं भी सब्र करता हूँ। हमारे सब्र से अल्लाह उम्मत के गुनाहगारों के गुनाह माफ करेगा! अल्लाहु अकबर ये होती है मोहब्बत जो नबी को हमसे थी, उम्मत से थी। ये गुनाहगार उम्मती हम ही है जिनके लिए हमारे नबी भूखे रहे, नबी की बेटी भूखी रही! और आज हमलोग क्या कर रहे हैं, उनके लिए। कल कयामत के दिन मैं ओर आप क्या जवाब देंगे?

सोशल मीडिया 

होम्योपैथी सबसे लोकप्रिय चिकित्सा प्रणालियों में से एक

 विश्व होम्योपैथी दिवस (10 अप्रैल) पर विशेष

भारत होम्योपैथी के क्षेत्र में विश्व का अग्रणी देश

इस वर्ष की थीम - "पीपुल्स चॉइस ऑफ वेलनेस"

रोगों को जड़ से दूर करती है, दवाओं का कोई साइड इफेक्ट भी नहीं


वाराणसी १० अप्रैल (दिल इंडिया लाइव)। होम्योपैथी के बारे में जागरूकता बढ़ाने और इसकी पहुंच में सुधार लाने के उद्देश्य से हर साल 10 अप्रैल को विश्व होम्योपैथी दिवस मनाया जाता है। यह दिवस होम्योपैथी के संस्थापक डॉ. क्रिश्चियन फ्रेडरिक सैमुअल हैनीमैन के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।

*जिला होम्योपैथिक अधिकारी डॉ रचना श्रीवास्तव* ने बताया कि होम्योपैथी के संस्थापक डॉ. हैनीमैन के 267वें जन्मदिवस पर विश्व होम्योपैथी दिवस 2022 की थीम "पीपुल्स चॉइस ऑफ वेलनेस" निर्धारित की गई है। होम्योपैथी चिकित्सा प्रणाली का मानना है कि शरीर अपने आप ठीक हो सकता है। होम्योपैथी दवा पौधों और खनिजों जैसे प्राकृतिक पदार्थों से बनी होती है, क्योंकि इसमें हीलिंग गुण होते हैं। इस दिवस पर, विभिन्न प्रकार के सम्मेलन आयोजित किए जाते हैं जिसमें होम्योपैथी के बारे में बेहतर जागरूकता पैदा करना, इसकी पहुंच में सुधार करना और चिकित्सा प्रणाली को आधुनिक बनाना है।

*डॉ श्रीवास्तव* ने बताया कि होम्योपैथी यूनानी शब्द होमो से आया है जिसका अर्थ है समान और पैथोस जिसका अर्थ है दुःख या बीमारी। होम्योपैथी आज दुनिया में सबसे लोकप्रिय वैकल्पिक उपचारों में से एक है। भारत में होम्योपैथी सबसे लोकप्रिय चिकित्सा प्रणालियों में से एक है। भारत विश्व स्तर पर सबसे बड़े होम्योपैथिक दवा निर्माताओं और व्यापारियों में से एक है। होम्योपैथी चिंतित और उदास रोगी को ठीक कर सकती है लेकिन रोगी आक्रामक हो जाता है, क्योंकि इसमें धीरे-धीरे सुधार होता है। व्यक्ति को विभिन्न खाद्य विकल्पों का पालन करना चाहिए और दवा लेने के लिए मानसिक स्थिरता होनी चाहिए। होम्योपैथिक दवा लेने से व्यक्ति की रोग प्रतिरोधक क्षमता में सुधार होता है। इस दिवस को मनाने का एक और लाभ यह है कि बीमारियों को ठीक करने के लिए होम्योपैथिक दवा के लाभों के बारे में अधिक से अधिक लोगों को जागरूक किया जा रहा है। 

होम्योपैथी विभाग के वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी डॉ मनीष त्रिपाठी ने बताया कि एलोपैथ, आयुर्वेद तथा प्राकृतिक चिकित्सा पद्धतियों की भांति होम्योपैथी की भी कुछ अलग विशेषताएं हैं और इन्हीं विशेषताओं के कारण आज होम्योपैथी विश्वभर में सौ से भी अधिक देशों में अपनाई जा रही है। भारत होम्योपैथी के क्षेत्र में विश्व का अग्रणी देश है। होम्योपैथी दवाओं को विभिन्न संक्रमित और गैर संक्रमित बीमारियों के अलावा बच्चों और महिलाओं की बीमारियों में भी विशेष रूप से प्रभावी माना जाता है। हालांकि होम्योपैथिक दवाओं के बारे में धारणा है कि इन दवाओं का असर रोगी पर धीरे-धीरे होता है लेकिन इस चिकित्सा प्रणाली की सबसे बड़ी विशेषता यही है कि यह रोगों को जड़ से दूर करती है और इन दवाओं के साइड इफेक्ट भी नहीं के बराबर होते हैं। इसके साथ ही यह चिकित्सा प्रणाली बेहद सरल, सस्ती व सुलभ है जिसको सरकार भी निरंतर बढ़ावा दे रही है। 

डॉ त्रिपाठी ने बताया कि होम्योपैथी दवाएं प्रत्येक व्यक्ति पर अलग तरीके से काम करती है और अलग-अलग व्यक्तियों पर इनका असर भी अलग ही होता है। होम्योपैथी चिकित्सकों की मानें तो डायरिया, सर्दी-जुकाम, बुखार जैसी बीमारियों में होम्योपैथी दवाएं एलोपैथी दवाओं की ही भांति तीव्रता से काम करती हैं लेकिन अस्थमा, गठिया, त्वचा रोगों इत्यादि को ठीक करने में ये दवाएं काफी समय तो लेती हैं लेकिन इन रोगों को जड़ से खत्म कर देती हैं। विभिन्न शोधों के अनुसार कार्डियोवैस्कुलर बीमारी की रोकथाम, मैमोरी पावर बढ़ाने, उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करने तथा ऐसी ही कुछ अन्य बीमारियों में होम्योपैथी दवाएं अन्य दवाओं की तुलना में ज्यादा कारगर होती हैं। 

यहाँ होंगे जन जागरूकता कार्यक्रम - जिला होम्योपैथिक अधिकारी डॉ रचना श्रीवास्तव ने बताया कि रविवार (10 अप्रैल) को जिला होम्योपैथिक अधिकारी कार्यालय, शिवपुर सीएचसी कैंपस में जन जागरूकता कार्यक्रम किया जाएगा । वरिष्ठ चिकित्सा अधिकारी व आरोग्य भारती, काशी प्रांत के संगठन सचीव डॉ मनीष त्रिपाठी ने बताया कि आरोग्य भारती, काशी प्रांत द्वारा विश्व होम्योपैथिक दिवस का कार्यक्रम द्रव्यगुण विभाग सभागार, आयुर्वेद संकाय, आईएमएस, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी में किया जाएगा। दोनों ही कार्यक्रमों में मुख्य अतिथि के रूप में आयुष राज्यमंत्री डॉ दयाशंकर मिश्र ‘दयालु’ होंगे ।

लखनऊ में नई सियासी पैतरेबाजी

भाजपा कार्यालय पर सपा संस्थापक मुलायम सिंह यादव की तस्वीर  Lucknow (dil India live)। लखनऊ से नई सियासी पैतरेबाजी की खबर है। दरअसल भाजपा कार्...