गुरुवार, 6 मई 2021

अलविदा अलविदा माहे रमजान अलविदा.....


...तेरे आने से दिल खुश हुआ था

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)

 कल्बे आशिक है अब पारा पारा,

अलविदा अलविदा माहे रमजान।

तेरे आने से दिल खुश हुआ था,

और ज़ोके इबादत बडा था,

आह,अब दिल पे है गम का गलबा,

अलविदा अलविदा माहे रमजान।

नेकिया कुछ न हम कर सके हे,

अह इस्सियाहे में दिन कटे है,

हाय गफलत में तुझको गुज़ारा,

अलविदा अलविदा माहे रमजान।

कोई हुस्न अमल न कर सका हूँ,

चाँद आसू नज़र कर रहा हूँ

यही है मेरा कुल असासा,

अलविदा अलविदा माहे रमजान।

जब गुज़र जायेंगे माह ग्यारा,

तेरी आमद का फिर शोर होगा,

है कहा ज़िन्दगी का भरोसा,

अलविदा अलविदा माहे रमजान।

बज्मे इफ्तार सजती थी कैसी,

खूब सहेरी कि रोनक भी होती,

सब समां हो गया सुना सुना,

अलविदा अलविदा माहे रमज़ा।

याद रमजान की तड़पा रही है

आंसू की जरहे लग गयी है,

कह रहा है हर एक कतरा,

अलविदा अलविदा माहे रमज़ा।

तेरे दीवाने सब के सब रो रहे है,

मुज़्तरिब सब के सब रो रहे है,

कौन देगा इन्हें अब दिलासा,

अलविदा अलविदा माहे रमज़ा।

में बदकार हूँ मैं हूँ काहिल,

रह गया हूँ इबादत में गाफिल,

मुझसे खुश होके होना रवाना,

हमसे खुश होके होना रवाना,

अलविदा अलविदा माहे रमज़ा।

वास्ता तुझको प्यारे नबी (स.अ.व.) का,

हशर में मुझे मत भूल जाना,

हशर में हमें मत भूल जाना,

रोज़े महशर मुझे बकशवाना,

रोज़े महशर हमें बकशवाना,

अलविदा अलविदा माहे रमज़ा।

तुमपे लाखो सलाम माहे रमज़ा।

तुमपे लाखो सलाम माहे गुफरान।

जाओ हाफिज खुदा अब तुम्हारा,

अलविदा अलविदा माहे रमज़ा।

अलविदा अलविदा माहे रमज़ा।

अलविदा अलविदा माहे रमज़ा....।

अलविदा जुमा कल

कल रमज़ान का आखिरी जुमा यानी अलविदा जुमा है। कोविड 19 के चलते पिछली बार की तरह इस साल भी मसजिदो में सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करते हुए केवल मसजिदों में रहने वालों को ही नमाज अदा करने की इजाज़त दी गई है। आम मुसलमान के लिए घर ही मसजिद होगी वो घर पर ही अलविदा के दिन ज़ोहर की नमाज़ अदा करेगा। मसजिदो में इमाम साहब खुतबे में, यह कलाम पढ़ेगे, अलविदा अलविदा माहे रमज़ा...। इसी के साथ कोरोना महामारी के खात्मे की दुआ भी होगी।

कोविड ने छीन लिया काम तो नाडर ने जाने क्या किया

4 दशक से थे ट्रैवल एजेंट अब बन गये किसान 

गाड़िया बेच खरीदी जमीन, खेती को बनाया पेशा

वाराणसी(दिल इंडिया लाइव)। कोविड-19 महामारी में बहुत लोग आपदा को अवसर में बदलने में जहां लगे हैं वही कुछ ऐसे भी लोग हैं जो कारोबार में नुकसान होने या कारोबार टूटने के बाद नये विकल्प तलाश कर खुद को स्थापित करने में लगे है। इसी फेहरिस्त में शामिल हैं वाराणसी के प्रमुख ट्रैवल एजेंट जो अब किसान बन गये हैं। हम बात कर रहे हैं ट्रैवल एजेंट के रूप में चार दशक से स्थापित रोनाल्ड बेंजामिन नाडर की। नाडर अब किसान बन गये हैं।

वो बताते हैं कि कोविड-19 के चलते मार्च 2020 में लाक डाउन घोषित किए जाने के बाद बनारस ही नही देश दुनिया का पर्यटन उद्योग चौपट हो गया, ऐसे में 5 महीने के इंतजार और कोई काम नहीं करने के बाद, मैंने रामनगर और चुनार में गंगा नदी के किनारे कृषि भूमि के लिए 5 साल के पट्टे समझौते पर हस्ताक्षर करने का फैसला किया। आज मैं हरी मटर, सरसों, दलहन यानी अरहर, उड़द, चना, सब्जियों और गेहूं की फसल की जैविक खेती कर रहा हूं। ईश्वर की कृपा से मुझे अच्छी नकदी फसल की प्राप्ति हुई है। नाडर बताते हैं कि मैं अपने पुराने टैक्सी वाहनों को बेचकर खुद को वित्त पोषित करता हूं, बिना काम किए खड़े रहने की अपनी मूल्यह्रास लागत के कारण।

कोई शक नहीं कि लेबर एक समस्या है, लेकिन मशीनों को लिए जाने से मुझे राहत मिली है और इसके अलावा मेरे दोस्त राजन तिवारी को एक बड़ा समर्थन मिला है, जो आउटबाउंड ट्रैवल इंडस्ट्री से भी हैं। नाडर कहते हैं कि मुझे अब खेती और कृषि पसंद आने लगी है और मैं इसे अपना मुख्य व्यवसाय बना चुका हूं। पर्यटन को अपने दूसरे विकल्प के रूप में मैं रख चुका हूँ। 

बहरहाल नाडर का कृषि की ओर लौटना एक नई उम्मीद है उनके लिए भी जो अपनी खेती और गांव की माटी छोड़ कर सुदूर शहरो में जा बसे हैं जीविका के लिए। नाडर ऐसे लोगों के लिए रोल माडल भी हो सकते हैं जो गांव की ओर खासकर कृषि को फिर से आपनाना चाहते हैं।





गरीबो, किसानों के मसीही अजीत सिंह का जाना




लोकदल के अगुवा चौधरी अजित सिंह पंचतत्व में विलिन

गुरुग्राम (दिल इंडिया लाइव)। राष्ट्रीय लोकदल के अगुवा व पूर्व केन्द्रीय मंत्री चौधरी अजित सिंह का अंतिम संस्कार कोविड-19 प्रोटोकॉल की गाइडलाइन के चलते गुरुग्राम में गुरूवार को किया गया। मदनपुरी स्थित रामबाग श्मशान घाट में हुए अंतिम संस्कार में बेटे जयंत चौधरी ने उन्हे मुखाग्नि दी। चौधरी अजीत सिंह गरीबो और किसानों के नेता के तौर पर जाने जाते थे। एक समय उन्होने भारतीय किसान कामगार पार्टी भी बनायी थी, जो लोकदल बनने के बाद स्वतः खत्म हो गयी।

22अप्रैल से थे अस्पताल में भर्ती

हम बता दे कि रालोद अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह को 22 अप्रैल को  कोरोना के कारण गुरुग्राम के आर्टिमिस अस्पताल में भर्ती कराया गया था। उनकी तबीयत कई दिन से खराब चल रही थी। फेफड़ों में संक्रमण बढ़ने के कारण पिछले तीन दिन से वे वेंटिलेटर पर थे। आज गुरुवार सुबह ही उनका निधन गया। 

कोविड प्रोटोकॉल के कारण उनका अंतिम संस्कार गुरुग्राम में करने का फैसला किया गया। उनके पुत्र रालोद उपाध्यक्ष जयंत चौधरी ने मुखाग्नि दी। दुख के इस क्षण में चौधरी अजीत सिंह की पुत्रवधू चारु चौधरी, दामाद विक्रम आदित्य सिंह और शैलेंद्र अग्रवाल मौजूद रहे। चौधरी अजित  सिंह के निधन पर हर तरफ शोक की लहर है।

सभी ने जताया अफसोस

राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद, पीएम मोदी, कांग्रेस नेता सोनिया गांधी, राहुल गांधी, सपा प्रमुख अखिलेश यादव, सीएम योगी आदित्य नाथ समेत तमाम दलों के नेताओं ने श्रद्धांजलि अर्पित की है। सोशल मीडिया पर लोग उन्हें श्रद्धांजलि दे रहे हैं। देश के पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह के बेटे चौधरी अजित सिंह उत्तर प्रदेश के बागपत से सात बार सांसद रहे और केंद्रीय नागरिक उड्डयन मंत्री भी रह चुके हैं। उत्तर प्रदेश ही नहीं देश की राजनीत में उनका दुनिया से जाना बड़ी क्षति है। लोकदल वाराणसी के पूर्व महानगर अध्यक्ष व एआईआईएम के प्रदेश सचिव परवेज़ कादिर खां ने अजीत सिंह के निधन पर ग़हरा अफसोस जताया है। उन्होंने कहा कि अजीत सिंह गरीबो और मजलूमो के नेता थे, उनके जाने से गरीब बेसहारा और किसानो को झटका लगा है।

बुधवार, 5 मई 2021

सदका-ए-फित्र नहीं अदा किया तो जाने क्या होगा?

                 रमज़ान का पैग़ाम (05-05-2021)

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। सदका-ए-फित्र ईद की नमाज़ से पहले हर हाल में मोमिनीन अदा कर दे ताकि उसका रोज़ा रब की बारगाह में कुबुल हो जायेअगर नहीं दिया तो तब तक उसका रोज़ा ज़मीन और आसमान के दरमियान लटका रहेगा जब तक सदका-ए-फित्र अदा नहीं कर देता।

हिजरी कलैंडर का वां महीना रमज़ान वो महीना जिसके आते ही जन्नत के दरवाज़े खोल दिये जाते हैं और रब जहन्नुम के दरवाजे बंद कर देता हैं। फिज़ा में चारों ओर नूर छा जाता हैमस्जिदें नमाज़ियों से भर जाती हैं। लोगों के दिलों दिमाग में बस एक ही बात रहती है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा इबादत की जाये। फर्ज़ नमाज़ों के साथ ही नफ्ल और तहज्जुद पर ज़ोर रहता हैअमीर गरीबों का हक़ अदा करते हैं पता ये चला कि रमज़ान हमे जहां नेकी की राह दिखाता है वही यह मुकद्दस महीना गरीबोमिसकीनोंलाचारोंबेवाऔर बेसहरा वगैरह को उनका अधिकार भी देता है। यही वजह है कि रमज़ान का आखिरी अशरा आते आते हर साहिबे निसाब अपनी आमदनी की बचत का ढ़ाई फीसद जक़ात निकालता है तो दो किलों 45 ग्राम वो गेंहू जो वो खाता है उसका फितरा।

रब कहता है कि 11 महीना बंदा अपने तरीक़े से तो गुज़ारता ही हैतो एक महीना माहे रमज़ान को वो मेरे लिए वक्फ कर दे। परवरदिगारे आलम इरशाद फरमाते है कि माहे रमज़ान कितना अज़ीम बरकतों और रहमतो का महीना है इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि इस पाक महीने में कुरान नाज़िल हुआ।इस महीने में बंदा दुनिया की तमाम ख्वाहिशात को मिटा कर अपने रब के लिए पूरे दिन भूखा-प्यासा रहकर रोज़ा रखता है। नमाज़े अदा करता है। के अलावा तहज्जुदचाश्तनफ्ल अदा करता है इस महीने में वो मज़हबी टैक्स ज़कात और फितरा देकर गरीबों-मिसकीनों की ईद कराता है।अल्लाह ने हदीस में फरमया है कि सिवाए रोज़े के कि रोज़ा मेरे लिये है इसकी जज़ा मैं खुद दूंगा। बंदा अपनी ख्वाहिश और खाने को सिर्फ मेरी वजह से तर्क करता है। यह महीना नेकी का महीना है इस महीने से इंसान नेकी करके अपनी बुनियाद मजबूत करता है। ऐ मेरे पाक परवर दिगारे आलमतू अपने हबीब के सदके में हम सबको रोज़ा रखनेदीगर इबादत करनेऔर हक की जिंदगी जीने की तौफीक दे ..आमीन।

      मौलाना साक़ीबुल क़ादरी
निदेशक, मदरसातुन नूर, वाराणसी।

मंगलवार, 4 मई 2021

रमज़ान जा रहा, रुखसती पर तड़प रहे खुदा के नेक बंदे

रमज़ान का पैग़ाम (04-05-2021)

काश रमज़ान कुछ दिन और होता तो इबादत का और मौका मिलता

वाराणसी (अमन/दिल इंडिया लाइव)। मुकद्द्स रमज़ान जैसे-जैसे रुखसत होने लगता है। रातों की इबादतें बढ़ जाती है। खुदा के नेक बंदे उन इबादतों में तड़प उठते हैं। कि काश रमज़ान कुछ दिन और होता तो इबादत का और मौका मिल जाता। पता नहीं अगले रमज़ान में इसका मौका मिले या न मिले। एक तरफ ईद की तैयारियां चल रही होती है। लोग बाज़ारों का रुख करते हैं मगर खुदा के नेक बंदे रब से यही दुआ करते हैं कि काश मेरे रब जिंदगी में रमज़ान की नेयमत और मिल जाती तो इबादत का और मौका मिलता। दुआ करते-करते वो बेज़ार होकर रो पड़ते हैं। दिल इण्डिया कि एक रिपोर्ट..।

रमज़ान जैसे-जैसे रुखसत होने लगता है। रातों की इबादतें बढ़ जाती है। खुदा के नेक बंदे उन इबादतों में तड़प उठते हैं। कि काश रमज़ान कुछ दिन और रुक जाता तो थोड़ा और इबादत का मौका मिल जाता। पता नहीं अगले रमज़ान में इबादत का मौका मिले या न मिले। हम हयात में हों न हो। एक तरफ ईद की तैयारियां चल रही है। लोग बाज़ारों का रुख कर रहे हैं। बंदा पूरे महीने कामयाबी से रोज़ा रखने के बाद अपनी कामयाबी की उनमें खुशी तलाश रहा हैवहीं कुछ ऐसे भी खुदा के नेक बंदे हैं जो इन दुनियावी मरहले से दूर होकर अपने रब से रमज़ान के आखिरी वक्त तक दुआएं मांगता है। लोगों की मगफिरत के लिए पूरी-पूरी रात जागकर इबादत करता है। इस्लामी मामलों के जानकार मौलाना अमरुलहुदा कहते हैं रमज़ान का आखिरी अशरा रोज़ेदारों के लिए खासी अहमीयत रखता है। इसमें ताक रातों में खूब इबादत मोमिनीन करते है ताकि उनकी मगफिरत तो हो ही साथ ही जो लोग दीन से भटक गये हैंजो रोज़े और नमाज़ की अहमीयत नहीं समझ सके वो नादान भी सही राह पर आ जायें।

रोने-गिड़गिड़ाने वाला खुदा को बेहद पसंद 

छोटी मस्ज़िद औरंगाबाद के इमाम मौलाना निज़ामुद्दीन चतुर्वेदी कहते हैं कि खूब इबादत के बाद भी खुदा के नेक बंदे सिर सजदे में और हाथ इबादत में उठाये खुदा से यही दुआ करते हैं कि इस बार इबादत ज्यादा नहीं कर पाया ऐ मेरे रब जिंदगी में रमज़ान की नेयमत और मिल जाये ताकि और इबादत का मौका मिले। वो बताते हैं कि दुआओं के दौरान ज़ार-ज़ार रोने और गिड़गिड़ाने वाला खुदा के नज़दीक बेहद पसंद किया जाता है। इसलिए खुदा के नेक बंदे रमज़ान की रुखसती पर दुआ के वक्त रो पड़ते हैं।

रोज़ा न रखने वाले पर अज़ाब नाज़िल होगा

मदरसा फारुकिया के कारी शाहबुददीन कहते हैं हममें से कई ऐसे भी बंदे हैं जो रमज़ान महीने की अहमीयत नहीं समझ पायेरात की इबादत तो दूर दिन में ही वो चाय खाने और पान की दुकानों को आबाद किये रहते हैं। हदीस और कुरान में आया है कि ऐसे लोगों पर खुदा का अज़ाब नाज़िल होगा। 

हाफिज तहसीन रज़ा ग़ालिब कहते है कि जिन लोगों ने रब के महीने की अहमीयत नहीं समझी। जो दिन रोज़े व रात इबादत में गुज़रनी चाहिए उसे ज़ाया किया। शर्म आती है ऐसे लोगों पर जो खुद को मुसलमान तो कहते हैं मगर उनमें मोमिन की कोई 

पहचान नहीं नज़र आती। रमज़ान में मोमिनीन ऐसे लोगों के लिए भी दुआएं करते हैं। उधर शिया जामा मस्ज़िद के प्रवक्ता सैयद फरमान हैदर रोज़दारों को सुझाव देते हैं कि जो कुछ भी नेकिया रमज़ान में कमाया है उसे ईद में लूटा न देंक्यों कि रमज़ान की नेकियां ही साल भर इंसान को बुरे कामों और बुराईयों से बचाती हैं। रमज़ान में कमाई नेकियों को संजो कर रखे।

सोमवार, 3 मई 2021

इमाम जाग रहा है ज़माना सोता है…

हज़रत अली की शहादत पर हुई मजलिसें

वाराणसी(दिल इंडिया लाइव)। खुदा के सजदे में साजिद शहीद होता हैइमाम जाग रहा है ज़माना सोता हैकुछ ऐसे ही मिसरे फिज़ा में बुलंद हुए। मौका था शेरे खुदा मुश्किलकुशा हज़रत अली की शहादत की याद में शहर भर में हुई मजलिस का। कोविड के चलते विभिन्न इलाकों से उठने वाला ताबूतअलम का जुलूस इस बार नहीं निकाला गया, मगर सोश्ल डिस्टेंसिंग के साथ लोगों ने घरों में मजलिस का एहतमाम किया। शाम में अंजुमन ज़ाफरियाअंजुमन अज़ादारे हुसैनी, दोषीपुराअंजुमन नसीरुल मोमीनीनअंजुमन आबिदिया चौहट्टालाल खां की ज़ेरे निगरानी इस बार जुलूस नहीं निकला। हर बार यह जुलूस तेलियानालामुकीमगंजजलालीपुरा आदि इलाकों से होकर सदर इमामबाड़ा लाट सरैया पहुंचता था तो शिवाला स्थित मस्जिद डिप्टी जाफर बख्त से ताबूत का जुलूस उठाया जाता था जो शिवाला घाट पहुंच कर सम्पन्न होता था। जुलूस की ज़ियारत करने के लिए जगह-जगह लोगों का मजमा जुटता था।

दर्द भरे नौहों के बोल पर हुआ मातम

मजलिस में शामिल लोगों ने दर्द भरे नौहों के बोल पर मातम का नज़राना पेश किया। मजलिस में उलेमा ने कहा कि मौला अली वो शक्सीयत थे जिन्होंने अपनी शहादत के वक्त भी कहा कि मैं कामयाब हो गया। क्यों कि वो काबा में पैदा हुए और मस्जिद में शहीद हुए।

काली महाल मस्जिद में मजलिस को खेताब करते हुए शिया जामा मस्जिद के प्रवक्ता सैयद फरमान हैदर ने कहा कि अली बहादुरीशुजातइबादतशहादतसब्रइल्म और खुद्दारी का नाम है। हज़रत अली कहा करते थे कि दुश्मन को उतनी ही सजा दो जिसका वो हक़दार है। यही वजह है कि जब उन पर हमला करने वाला कातिल उनके सामने लाया गया तो उन्होंने हजरत इमाम हसन से कहा कि हसन इसकी रस्सी खोल दो और जो शर्बत उनके लिये लाया गया था उसे उन्होंने अपने दुश्मन को दे दिया।

शबे कद्र की है रात, जाग रहे रोज़ेदार

पूरी रात होगी इबादत, मांगी जायेगी खुसूसी दुआएं

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। आज शबे कद्र की रात है, आज पूरी रात इबादत होगी, रोज़ेदार पूरी रात जागकर इबादत में मशगूल रहेंगे। दरअसल माहे रमजान के आखिरी दस दिनों की पांच रातों में से कोई एक रात शबे कद्र की रात होती है। इस रात में लोग जागकर रब की इबादत करते हैं। इस्लाम में इस रात को हजार रातों से अफजल बताया गया है। इसलिए रोजेदार ही नहीं बल्कि हर कोई इस रात में इबादत कर अल्लाह से खुसूसी दुआ मांगता है।

हज़ार रातों से अफज़ल है शबे कद्र की रात

रमज़ान महीने के आखरी अशरे के दस दिनों में पांच रातें ऐसी होती हैं जिन्हें ताक रातें कहा जाता है। ये हैं रमज़ान की 21, 23, 25, 27, 29 शब। इममें से कोई एक शबेकद्र की रात होती है। यह रात हजार महीनों से बेहतर मानी जाती है। इस रात में मुस्लिम मस्जिदों व घरों में अल्लाह की कसरत से इबादत करते हैं। इसमें महिलाएं और बच्चे भी घरों में इबादत करते दिखाई देते हैं। मौलाना निज़ामुददीन चतुर्वेदी कहते हैं कि कुरान में बताया गया है कि तुम्हारे लिए एक महीना रमजान का है, जिसमें एक रात है जो हजार महीनों से अफजल है। कहा कि जो शख्स इस रात से महरूम रह गया वो भलाई और खैर से दूर रह गया। जो शख्स इस रात में जागकर ईमान और सवाब की नीयत से इबादत करता है तो उसके पिछले सभी गुनाह माफ कर दिए जाते हैं। उन्होंने कहा कि यह रात बड़ी बरकतों वाली रात होती है। यह रात बड़ी ही चमकदार होती है व सुबह सूरज बिना किरणों के ही निकलता है। इस रात को मांगी गई दुआ हर हाल में कुबूल होती है।

दो अशरा हुआ पूरा

रमज़ान महीने को तीन अशरों में बांटा गया है। पहले अशरा रहमत, दूसरे को मगफिरत व तीसरे अशरे को जहन्नुम से आजादी का अशरा कहा जाता है। प्रत्येक अशरा दस दिन का होता है। आज 20 रोज़ा पूरा होने के साथ ही दूसरा अशरा मगफ़िरत का भी मुकम्मल हो गया और तीसरा अशरा जहन्नुम से आज़ादी का शुरु हो गया।



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