गुरुवार, 1 जुलाई 2021

वीर अब्दुल हमीद के खून में थी पहलवानी


आज हम मना रहे हैं परमवीर चक्र विजेता  वीर अब्दुल हमीद की जयंती




वाराणसी 1 जुलाई (शाहीन अंसारी/दिल इंडिया लाइव)। अब्दुल हमीद का नाम लेते ही आज भी  भारतवासियोँ का सीना गर्व से ऊंचा हो जाता है। उनकी वीरता की कहानियां लोगों की ज़ुबान पर आ जाती है। कम्पनी क्वार्टर मास्टर हवलदार शहीद 1965 में हुए भारत-पाक युद्ध में अपनी अद्भुत साहस और वीरता को दिखाते हुए  दुशमनो के कई शक्तिशाली अमेरिकन पैटन टैंकों को धवस्त  कर दुशमनो को मुहतोड़ जवाब देते हुए वीर गति को प्राप्त हो गए। अब्दुल हमीद के जन्म दिवस पर उनका हम सब नमन करते हैं।

अब्दुल हमीद भारतीय सेना के प्रसिद्ध सिपाही थे, जिनको अपने सेवा काल में सैन्य सेवा मेडल, समर सेवा मेडल, रक्षा मेडल 1965 में भारत-पाकिस्तान युद्ध में असाधारण बहादुरी के लिए महावीर चक्र और परमवीर चक्र से सम्मानित किया गया था।

 अब्दुल हमीद का जन्म 1 जुलाई, 1933 को उत्तर प्रदेश के ग़ाज़ीपुर ज़िले में स्थित धामूपुर नाम के छोटे से  गांव में एक ऐसे परिवार में हुआ, जो आर्थिक रुप से ज्यादा मजबूत न था। हालांकि उनके पिता सेना में लॉस नायक पद पर तैनात थे बावजूद इसके उनकी माता को परिवार की आजीविका चलाने के लिए  सिलाई करनी पड़ती थी ताकि परिवार का पालन-पोषण हो सके। मां अब्दुल हमीद के भविष्य के लिए चिंतित रहती थी इसलिए चाहती थी कि वह सिलाई का काम सीख लें। लेकिन अब्दुल हमीद का दिल इस सिलाई के काम में बिलकुल नहीं लगता था, उनका मन तो बस कुश्ती दंगल के दांव पेंचों में लगता था। क्योंकि पहलवानी उनके खून में थी जो विरासत के रूप में उनको मिली। उनके पिता और नाना दोनों ही पहलवान थे। उनके सिर पर कुश्ती का भूत सवार था। कुश्ती को लेकर उनकी दीवानगी कुछ ऐसी थी कि जब पूरा गांव सोता था, तो वह कुश्ती के हुनर सीखते थे। उनकी कद-काठी भी पेशेवर पहलवानों जैसी ही थी। इसके अलावा लाठी चलाना, बाढ़ में नदी को तैर कर पार करना, सोते समय फौज और जंग के सपने देखना तथा अपनी गुलेल से पक्का निशाना लगाना भी उनकी खूबियों में था। अब्दुल हमीद थोड़े बड़े हुए तो उनका दाखिला गांव के एक स्कूल में कराया गया। वह सिर्फ चौथी कक्षा तक ही स्कूल गये।

अब्दुल हमीद का व्यवहार गांव के लोगों के लिए बहुत विनम्र था। वह अक्सर लोगों की मदद करते रहते थे। इसी कड़ी में एक दिन कुछ यूं हुआ कि वह गांव के एक चबूतरे पर बैठे थे, तभी गांव का एक युवक दौड़ते हुए उनके पास आया। उसकी सांसे फूल रही थी। जैसे-तैसे उसने हमीद को बताया कि जमींदारों के दबंग लगभग 50 की संख्या में जबरदस्ती उसकी फसल काटने की कोशिश कर रहे हैं। युवक को परेशानी में देखकर हमीद आग बबूला हो गए। उन्होंने न आव देखा न ताव और तेजी से खेतों की तरफ दौड़ पड़े। उन्होंने दबंगों को ललकारते हुए कहा, अपनी ख़ैर चाहते हो तो भाग जाओ। शुरुआत में तो दंबगों ने सोचा कि एक अकेला व्यक्ति हमारा क्या कर लेगा। पर जब उन्होंने हमीद के रौद्र रुप को देखा तो वह अपनी जान बचाकर भागने पर मजबूर हो गये।

अब्दुल हमीद का  धरमापुर गांव मगई नदी के किनारे बसा हुआ था। इस कारण अक्सर बाढ़ का खतरा बना रहता था। एक बार इस नदी का पानी अचानक बढ़ गया। पानी का बहाव इतना ज्यादा था कि नदी को पार करते समय नजदीक के गांव की दो महिलाएं उसमें डूबने लगी। लोग चीखने लगे। डूबने वाली महिलाएं बचाओ-बचाओ कहकर मदद के लिए लोगों को बुला रहीं थीं,  मगर अफसोस लोग तमाशबीन बने देख रहे थे, लेकिन मदद के लिए कोई आगे न बढ़ सका। तभी अब्दुल हमीद का वहां से गुज़रना हुआ। भीड़ देखकर वह नदी के किनारे पर पहुंचे तो उनसे महिलाओं को डूबते हुए न देखा गया। उन्होंने झट से बिना कुछ  सोचे -समझे नदी में झलांग लगा दी। जल्द ही वह महिलाओं को नदी से निकालने में कामयाब  हो गए । हमीद के इस कारनामे ने उन्हें देखते-ही-देखते सभी का दुलारा बना दिया।

धीरे धीरे उनकी उम्र बढती गयी और वो 21 साल के हो गए। वह अपने जीवन यापन के लिए रेलवे में भर्ती होने  के लिए गए। लेकिन उनका मन तो बस देश-प्रेम के प्रति लगा था, वह सेना में भर्ती हो  कर  सच्चे मन से देश की सेवा करना चाहते थे । आख़िरकार उनका  सपना पूरा हुआ सन 1954 में सेना में भर्ती  हो गये और वहां अपना कार्यभार संभाला।

1962 में चीन का हमला भारत पर हुआ तब अब्दुल हमीद को मौका  मिला अपने  देश के लिए कुछ कर दिखाने का। उस युद्ध में भारतीय सेना का एक जत्था चीनी सैनिको के घेरे में आ गया जिसमे हमीद भी थे। यह उनकी परीक्षा की घड़ी थी। वह लगातार मौत को चकमा देकर मुकाबले के लिए मोर्चे पर डंटे रहे,  लेकिन उनका  शरीर लगातार खून से भीगता जा रहा था,उनके साथी एक-एक कर के कम होते जा रहे थे, लेकिन इसके विपरीत अब्दुल हमीद की मशीन गन दुशमनों पर मौत के गोले बरसा रही थी, लेकिन एक समय आया जब धीरे-धीरे  उनके पास उपलब्ध गोले और गोलिया ख़त्म हो गए।  अब हमीद करे तो क्या करे  जैसी स्थिति में आ गए। और खाली हो चुकी मशीन गन  दुशमनो के हाथ ना लगे इस लिए अपनी मशीनगन को तोड़ डाला और अपनी वीरता के साथ समझदारी दिखाते हुए बर्फ से घिरी पहाड़ियों से रेंगते हुए वहां से निकल पड़े। 

चीन के युद्ध में वीरता और समझदारी का परिचय देने वाले  जवान अब्दुल हमीद को 12 मार्च 1962 में सेना ने  'लॉसनायक अब्दुल हमीद ' बना दिया। वो इसी तरह अपनी बहादुरी का परिचय देते रहे और दो से तीन वर्षों  के अन्दर हमीद को नायक हवलदारी और कम्पनी क्वार्टर मास्टरी भी प्राप्त हो गयी। 

 8 सितम्बर 1965 की रात के समय पाकिस्तान ने भारत पर हमला बोल दिया और दोनों देशों के बीच जंग शुरू हो गयी तब एक बार फिर अब्दुल हमीद को अपनी जन्म भूमि के लिए कुछ करने का मौका मिल गया।

इस मोर्चे पर जाने से पहले अब्दुल हमीद ने अपने भाई के नाम एक ख़त लिखा और उस ख़त में उन्होंने लिखा कि,  'पल्टन में उनकी बहुत इज़्ज़त होती है जिन के पास कोई चक्र होता है। देखना झुन्नन हम जंग में लड़कर कोई न कोई चक्र जरूर लेकर लौटेंगे.. '

अब्दुल हमीद पंजाब के तरन तारन जिले के खेमकरण सेक्टर पंहुचे जहां युद्ध हो रहा था। पकिस्तान के पास उस समय सबसे घातक  हथियार के रूप में  “अमेरिकन पैटन टैंक”  थे जिसे लोहे का शैतान भी कहा जा सकता हैं और इन पैटन टैंकों पर पकिस्तान को बहुत नाज था। पाकिस्तान ने उन्ही टैंको के साथ “असल उताड़” गाँव पर ताबड़तोड़ हमला कर दिया।

उधर पकिस्तान के पास अमेरिकन पैटन टैंकों का ज़खीरा था  इधर भारतीय सैनिको के पास उन तोपों से मुकाबला करने के लिए कोई बड़े हथियार ना थे। था तो बस भारत माता की दुशमनो से रक्षा करते हुए रणभूमि में शहीद हो जाने का हौसला और हथियार के नाम पर  साधारण “थ्री नॉट थ्री रायफल” और एल.एम्.जी । इन्ही हथियारों के साथ हमारे सभी वीर सैनिक दुश्मनों के छक्के छुड़ाने लगे।

इधर वीर अब्दुल हमीद के पास अमेरिकन पैटन टैंकों के सामने खिलौने सी लगने वाली “गन माउनटेड जीप” थी। पर दुशमनो को यह नहीं पता था उस पर सवार वीर नहीं परमवीर अब्दुल हमीद हैं। जिनका निशाना महाभारत के अर्जुन की तरह हैं। 

जीप पर सवार दुशमनो से मुकाबला करते हुए हमीद पैटन टैंकों के उन कमजोर हिस्सों पर अपनी बंदूक से इतना सटीक निशाना लगाते थे जिससे लोह रूपी दैत्य धवस्त हो जाता। अब्दुल हमीद ने अपनी बंदूक से एक-एक कर टैंको को नष्ट करना शुरू कर दिया। उनका यह पराक्रम देख दुश्मन भी चकित से रह गए।  जिन टैंको पर पकिस्तान को बहुत नाज़ था. वह साधारण सी बंदूक से  धवस्त हो रहे थे। अब्दुल हमीद को देख भारतीय सैनिको में और जोश बढ़ गया और वो पाकिस्तानी सेना को खदेड़ने में लग गए। अब्दुल हमीद ने एक के बाद एक कर सात पाकिस्तानी पैटन टैंकों को नष्ट कर दिया ।

असल उताड़ गाँव पाकिस्तानी टैंको की कब्रगाह में बदलता चला गया। पाकिस्तानी सैनिक अपनी जान बचा कर भागने लगे लेकिन वीर हमीद मौत बन कर उनके पीछे लगे थे, और भागते हुए सैनिको का पीछा जीप से करते हुए उन्हें मौत की नींद सुला रहे थे, तभी अचानक एक गोला हमीद के जीप पर आ गिरा जिससे वह बुरी तरह ज़ख़्मी हो गए। और 9 सितम्बर 1965 को  देश का यह जांबाज़ सिपाही वीरता और अदम्य साहस से अपने देश की आन, बान और शान की ख़ातिर दुश्मनों से लड़ते हुए हम सब को छोड़ वीरगति को प्राप्त हो गया। इसकी अधिकारिक घोषणा 10 सितम्बर 1965 को की गई। 

इस युद्ध में वीरता पूर्वक अदुभुत पराक्रम का परिचय देने वाले वीर अब्दुल हमीद को पहले 'महावीर चक्र ' और फिर सेना के सर्वोच्च सम्मान 'परमवीर चक्र' से अलंकृत किया गया।

उसके बाद भारतीय डाक विभाग ने 28 जनवरी 2000 को वीर अब्दुल हमीदके सम्मान में पांच डाक टिकटों के सेट में 3 रुपये का एक सचित्र डाक टिकट जारी किया, इस डाक टिकट पर  रिकाईललेस राइफल से गोली चलाते हुए जीप पर सवार वीर अब्दुल हामिद का एक रेखा चित्र बना हुआ है। शहीद वीर अब्दुल हमीद की स्मृति में उनकी क़ब्र पर एक समाधि का निर्माण किया गया। हर साल उनकी शहादत पर उनकी समाधि पर एक विशेष मेले का आयोजन किया जाता है।

"शहीदों की चिताओं पर लगेंगे हर बरस मेले।

वतन पर मिटने वालों का ये ही बाक़ी निशाँ होगा।

पांचों में भी अब दो सरदार

ज़ियाउल हसन के सिर पांचों के सरदार की दस्तार




वाराणसी 30 जून (दिल इंडिया लाइव) बुनकर बिरादराना तंज़ीम पांचों में भी दो फाड़ हो गया है। एक दिन पहले बुनकर बिरादराना तंज़ीम पांचों के सरदार की दस्तारबंदी हुई थी, मगर 24 घंटा भी नहीं गुज़रा था कि दूसरे पछ ने उनसे खुद को अलग करते हुए पांचों का अपना न सिर्फ दूसरा सरदार चुन लिया बाल्कि उसकी दस्तारबंदी भी कर दी। खास यह था कि शहर उत्तरी के पूर्व विधायक हाजी अब्दुल समद अंसारी कल वाले आयोजन में भी दिखाई दिये और आज भी। 

ज़ियाउल हसन के सिर सजा ताज

कुशवाहा लान गंगा नगर कालोनी में बुनकर बिरादराना तन्ज़ीम पांचों पंचायत के नए सरदार हाजी ज़ियाउल हसन अंसारी पुत्र हाफीज़ हाजी मो. मुस्तफ़ा अंसारी की दस्तार बंदी हुई!  इस प्रोग्राम का आगाज़ तिलावते कलाम पाक से जनाब हाफ़िज़ नूरुददीन ने किया निज़ामत जनाब रेयाज़ अहमद नोमानी और सदारत सरदार अब्दुल गनी पठानी टोला ने किया 

सरदार मुर्तुजा के इंतकाल के बाद से पद खाली

बुनकर बिरादराना तन्ज़ीम पांचों पंचायत के सरदार मोहम्मद मुर्तुज़ा अंसारी के इन्तेक़ाल के बाद काफ़ी अर्से से ये पद खाली था जिसका चुनाव तन्ज़ीम पांचों पंचायत के सारे सरदार और तमाम अराकीन कमेटी के सभी ज़िम्मेदारान की सर्वसम्मति से होना था मगर ऐसा हो न सका, बाल्कि दो सरदार पांचों में भी हो गये जैसे चौदहों में हैं। आज हाजी ज़ियाउल हसन अंसारी को तन्ज़ीम पांचों पंचायत का नया सरदार चुना गया। मौजूद खास लोगों ने कहा कि हम सबको उम्मीद है कि नए सरदार क़ौम की खिदमत खुशदिली और पूरी ईमानदारी से करेंगे। इंशा अल्लाह।इस मौक़े पर तन्ज़ीम बाईसी के सरदार जनाब इकरामुददीन साहब और उनके काबीना के तमाम अराकीन। तन्ज़ीम चौदहों के सरदार जनाब हाजी मक़बुल हसन साहब और उनके काबीना के तमाम अराकीन और तन्ज़ीम पांचों के सरदार जनाब हाजी हाफ़िज़ अली अहमद और उनके काबीना के तमाम अराकीन ने शिरकत की और नए सरदार को सभी तन्ज़ीमो के मेमबरान ने मुबारकबाद पेश की और उन्हें दुआओ से नवाज़ा और उनका खैरमखदम किया। इस दस्तार बंदी में तन्ज़ीम पांचों पंचायत के सभी सरदार दुलहीपुर चन्दौली और बनारस के सभी सरदार मौजूद थे 

इस मौक़े पर पूर्व विधायक जनाब हाजी अब्दुल समद अंसारी, पार्षद मुमताज़ खाँ, पार्षद रोहित जायसवाल, पार्षद तुफ़ैल अंसारी,नागरिक सुरक्षा प्रखन्ड कोतवाली के डिप्टी डिवीज़नल वार्डेन शैलेन्द्र सिंह, और तन्ज़ीम पांचों पंचायत के तमाम अराकीने कमेटी के सदस्यगण मुनाऊ सरदार, मोहम्मद सरदार हाजी ज़ैनुल आब्दीन, हनीफ़ महतो, बाऊ हाजी, हाजी अनवार लूम वाले, एखलाक़ अहमद महतो, हाजी अनवार हसनपुरा, रमज़ान अली, रेयाज़ अहमद, हाजी ज़ैनुल फ़ुलवरिया, बाबुल मोक़ादम, जमालुददीन दुलहीपुर,अब्दुल अज़ीज़ दुलहीपुर एवं मोहल्ले के सभी लोग मौजूद थे। 

बुधवार, 30 जून 2021

'नेशनल पोस्टल वर्कर्स डे' : चिट्ठी-पत्री बाँटने वाला डाकिया हुआ स्मार्ट

डाककर्मियों की भूमिका में हुए तमाम बदलाव, निभा रहे 'कोरोना योद्धा' की भूमिका

हाथ में स्मार्ट फोन व बैग में डिजिटल डिवाइस

वाराणसी 30 जून (दिल इंडिया लाइव)। कभी आपने सोचा है कि आपके क्षेत्र का डाकिया कितनी मुश्किलों के बीच आपके दरवाजे तक डाक पहुँचाता है। कभी आपने अपने डाकिया बाबू को इसके लिए धन्यवाद कहा है ! यदि नहीं तो 1 जुलाई को आप 'नेशनल पोस्टल वर्कर्स डे' के दिन उसका आभार व्यक्त कर सकते हैं। 'नेशनल पोस्टल वर्कर डे' की अवधारणा अमेरिका से आई, जहाँ वाशिंगटन राज्य के सीऐटल शहर में वर्ष 1997 में  कर्मचारियों के सम्मान में इस विशेष दिवस की शुरुआत की गई । धीरे-धीरे इसे भारत सहित अन्य देशों में भी मनाया जाने लगा। यह दिन दुनिया भर में डाक कर्मियों द्वारा की जाने वाली सेवा के सम्मान में मनाया जाता है।

वाराणसी क्षेत्र के पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि डाक सेवाओं ने संचार के क्षेत्र में पूरी दुनिया में अपनी अहम भूमिका निभाई है।  जब संचार के अन्य साधन नहीं थे, तो डाक सेवाएँ ही दुनिया भर में लोगों के बीच संवाद का अहम जरिया थीं। आज भी डाककर्मी उतनी ही तन्मयता से लोगों तक पत्रों, पार्सल और मनीऑर्डर के रूप में जरूरी चीजें पहुँचाने का कार्य कर रहे हैं। जाड़ा, गर्मी, बरसात की परवाह किये बिना सुदूर क्षेत्रों, पहाड़ी, मरुस्थली और दुर्गम क्षेत्रों में डाक सेवाएँ प्रदान करने के साथ-साथ दरवाजे पर जाकर डाक वितरण कर रहे हैं। नियुक्ति पत्र, पासपोर्ट, ड्राइविंग लाइसेंस, आधार, चेक बुक, एटीएम जैसे महत्वपूर्ण दस्तावेजों के साथ-साथ विभिन्न मंदिरों के प्रसाद और टीबी बलगम तक डाकियों द्वारा पहुँचाये  जा रहे हैं। कोरोना संक्रमण के दौर में दवाओं, मास्क, पीपीई किट्स, कोरोना किट्स के वितरण से लेकर घर-घर बैंकिंग सेवा पहुँचाने वाले डाककर्मी अब  'कोरोना योद्धा' बन गए हैं, जो कोविड-19  के खिलाफ लड़ाई में सक्रिय भूमिका निभा रहे हैं। प्रधानमंत्री श्री नरेंद्र मोदी जी भी इसके लिए डाककर्मियों की सराहना कर चुके हैं। 

पोस्टमास्टर जनरल श्री कृष्ण कुमार यादव ने बताया कि डाक विभाग का सबसे मुखर चेहरा डाकिया है। डाकिया की पहचान चिट्ठी-पत्री और मनीऑर्डर बाँटने वाली रही है, पर अब डाकिए के हाथ में स्मार्ट फोन है और बैग में एक डिजिटल डिवाइस भी है। इण्डिया पोस्ट पेमेंट्स  बैंक के शुभारम्भ के बाद आर्थिक और सामाजिक समावेशन के तहत पोस्टमैन चलते-फिरते  एटीएम  के रूप में नई भूमिका निभा रहे हैं। वाराणसी परिक्षेत्र में लगभग 2400 डाकिया लोगों के दरवाजे पर हर रोज दस्तक लगाते हैं। सामान्य दिनों में प्रति माह साढ़े 4 लाख तो कोविड काल के दौरान 1 लाख 70 हजार स्पीड पोस्ट, पंजीकृत पत्र वितरित किये जाते हैं।  इसके अलावा प्रतिमाह लगभग 12 लाख साधारण पत्रों का वितरण भी डाकियों द्वारा वाराणसी परिक्षेत्र में किया जाता है। ई-कामर्स को बढ़ावा देने हेतु कैश ऑन डिलीवरी, लेटर बाक्स से नियमित डाक निकालने हेतु नन्यथा मोबाईल एप एवं डाकियों द्वारा एण्ड्रोयड बेस्ड स्मार्ट फोन आधारित डिलीवरी जैसे तमाम कदम डाक विभाग की अभिनव पहल हैं।

#National Postal Workers Day': The postman who delivered the letter became smart

Change in postal information, due to bad weather 'Corona'

Battery in smart telephone and battery in smartphone#




Have you ever wondered how many difficulties the postman of your area faces during delivering mail to your doorstep? Have you ever thanked your postman for this? If not, you can express your gratitude to them on 'National Postal Workers Day' on 1st July. The concept of 'National Postal Workers' Day' came from America, where this special day was started in the year 1997 in the city of Seattle in Washington State in honour of the Postal workers. Gradually it started being celebrated in other countries including India. This day is celebrated in honour of the service rendered by Postal workers across the world.

Mr. Krishna Kumar Yadav, Postmaster General of Varanasi Region informed that Postal services have played an important role in the field of communication all over the world. When there were no other means of communication, Postal services were the main means of communication between people around the world. Even today, Postal employees are working with the same diligence to deliver essential things in the form of letters, parcels and money orders to the people. Regardless of winter, summer, rain, providing Postal services in remote areas, hilly, desert and inaccessible areas as well as delivering mail at the doorstep. Important documents like appointment letters, passport, driving license, aadhar, cheque book, ATM card along with prasad of various temples and TB sputum are being delivered by postmen. From distribution of medicines, masks, PPE kits, corona kits to door-to-door banking services, Postal workers have now become 'Corona Warriors', playing an active role in the fight against COVID-19. Prime Minister Mr. Narendra Modi has also appreciated the Postal services for this.

Postmaster General Mr. Krishna Kumar Yadav said that the postman is the most vocal face of the Postal Department. The identity of the postman has been to deliver letters and money orders, but now the postman has a smart phone in his hand and a digital device in the bag. With the launch of India Post Payments Bank, Postmen are playing a new role as an moving ATM as a part of economic and social inclusion. In Varanasi region, about 2400 postmen knock on the doors of the people everyday. On normal days, 4.5 lakhs per month and during the COVID period, 1.70 lakhs speed posts, registered letters are distributed. Apart from this, about 12 lakh ordinary letters are also distributed by postmen in Varanasi Region every month. To promote e-commerce, various innovative initiatives  by the Department like cash on delivery, new mobile app to remove regular mail from letter boxes and smart phone based delivery by postmen has been taken.

मंगलवार, 29 जून 2021

बुनकर बिरादराना तंज़ीम पांचो के नये सरदार से मिलिए

अतीकुल्लाह के सिर सजा नये सरदार का ताज

वाराणसी 29 जून (दिल इंडिया लाइव)। मुहल्ला छित्तनपुरा में  इमलियातल्ले मस्ज़िद में बुनकर बिरादराना तंज़ीम पंचो के नए सरदार अतिकुल्ला अंसारी की दस्तार बंदी लाठ मस्ज़िद के इमाम मौलाना ज़ियाउर्रहमान के हाथो हुयी । सदारत मौलाना मंजर हसनैन ने किया । आज इस मौके पर हाजी मुख्तार ने बताया की बुनकर बिरादराना तंज़ीम पांचों के सरदार मुर्तज़ा का लंबी बीमारी के कारण पिछले साल इंतेक़ाल हो गया था तब से ये पद ख़ाली चल रहा था। जिसमे सारे मोहल्ले की एकराईयति से कौम के हमदर्द अतिकुल्ला अंसारी को सर्वसम्मति से पांचों तंजीम का सरदार चुना गया हम सब को पूरी उम्मीद है की नए सरदार सब को एक साथ ले कर चलेंगे और सबको एक सामान समझते हुए सभी के साथ इंसाफ करेंगे । आज इस मौके पर मेहमान खुसूसी बुनकर बिरादराना तंज़ीम बावनी के सद्र हाजी मुख़्तार महतो, बाईसी के सरदार हाजी अब्दुल कलाम, बारहो के सरदार हाजी सरदार हाशिम, चौतीसो के सरदार हैदर महतो, चौदहों के सरदार मक़बूल हसन अशरफी व शहर उत्तरी के पूर्व विधायक हाजी अब्दुल समद अंसारी मौजूद थे। इन सभी मानिँद लोगो ने नए सरदार को मुबारक बाद दिया और दुआये दी। 



निजामत मौलाना आखिर नुमानी ने किया। इस मौके पर में आमिल हाजी मुख़्तार, हाजी अब्दुल कैयुम, हाजी बेलाल, पार्षद साजिद अंसारी, पार्षद हाजी ओकास अंसारी, हाजी मुबारक अली महतो, डॉ0 वकील, मो. शोएब मुन्ना, अतीक अंसारी, नियाज़ अहमद, हाजी इम्तियाज़, अब्दुल जब्बार, अब्दुल रसीद, अंसार अहमद, आदि लोग मौजूद थे । 

                    

सोमवार, 28 जून 2021

हज खिदमतगार डा. अकबर नहीं रहे

सड़क हादसे में डॉ अकबर अली का हुआ इंतेक़ाल

जिलाधिकारी समेत काफी लोगों ने जताया अफसोस, इशा बाद पड़ेगी मिट्टी

वाराणसी 28 जून 2021(दिल इंडिया लाइव)। दालमंडी निवासी बनारस के प्रसिद्धर एनेस्थीसिया विशेषज्ञ और जनरल फिजिशियन डॉ. अकबर अली (59 वर्ष) की आज सुबह एक सड़क दुर्घटना में मृत्यु हो गयी। इशा की नमाज़ के बाद पिपलानी कटरा स्थित उनके आबाई कब्रिस्तान में उन्हें सुपुर्दे-खाक किया जायेगा। वो अपने पीछे अपनी बेगम, एक बेटे और चार बेटियों का भरा पूरा परिवार छोड़ गये हैं।


शहर के अलग-अलग अस्पतालों में सेवा देने के साथ ही अपने घर पर भी मरीज़ों को देखा करते थे। डॉ.अली, इंडियन रेड क्रॉस सोसायटी, वाराणसी आई बैंक और नेशनल इंटीग्रेटेड मेडिकल एसोसिएशन(नीमा) के सदस्य थे। आप पूर्वांचल हज सेवा समिति के संस्थापक महासचिव भी थे। हज कमेटी ऑफ इंडिया के मास्टर हज ट्रेनर और वाराणसी इम्बारकेशन के लिए राज्य हज समिति के संयोजक थे। आपने लगभग 35 साल मदनपुरा स्थित जनता सेवा अस्पताल की निःशुल्क सेवा की। फिलहाल आप अस्पताल के इमरजेंसी मेडिकल ऑफिसर थे। कोरोना काल में भी आप मरीज़ों की सेवा में सराहनीय तौर से सक्रिय रहे थे।

ऐसे हुआ हादसा

डॉ. अकबर अली सोमवार की सुबह भी रोज़ की तरह स्कूटी से अपने घर से रामकटोरा स्थित निजी नर्सिंग होम के लिए निकले थे कि मैदागिन पर तेज रफ्तार कंक्रीट मिक्सर ट्रक के धक्के से वे गिर गए और ट्रक का पिछले पहिया उनके ऊपर चढ़ गया। हादसे के बाद ड्राइवर ट्रक छोड़ कर फरार हो गया। सूचना पर पहुंची कोतवाली पुलिस ने उन्हें मंडलीय अस्पताल भेजा जहां डॉक्टरों ने उन्हें मृत घोषित कर दिया। कथित  डंपर शहर में जारी विकास परियोजनाओं से संबंधित कार्यदायी संस्था का बताया जा रहा है। पुलिस डंपर को कब्जे में लेकर उसके रजिस्ट्रेशन नंबर की मदद से चालक का पता लगा रही है। उधर हादसे के बाद उनकी पत्नी और बच्चे रो रो कर बुरा हाल था। जनता अस्पताल में भर्ती मरीज़ो को आपकी मृत्यु का यकीन नही हो रहा और मरीज़ व उनके परिजन खबर सुनकर रोने लगे। मृदुल भाषी और हँसमुख व्यक्तित्व के धनी थे। जिलाधिकारी कौशलराज शर्मा, समाजसेवी इतिहासकार डा. मो. आरिफ, मैत्री भवन के पूर्व निदेशक फा. चन्द्रकांत, पूर्वांचल हज सेवा समिति के अध्यक्ष हाजी रईस अहमद एडवोकेट, नीमा के अध्यक्ष डॉ ओ पी सिंह, सामाजिक संस्था "सुल्तान क्लब" के अध्यक्ष डॉ एहतेशामुल हक, जनता सेवा अस्पताल, जमीअत उलेमा ज़िला बनारस, जमीअतुल अंसार संस्था, आजाद हिंद रिलीफ सोसाइटी, मरियम फाउंडेशन, मरकज़ी सीरतुन्नबी कमेटी सहित कई संगठनों ने डा. अकबर अली के इंतेकाल पर अफसोस जताया है। 

पूर्वांचल हज सेवा समिति

 एक आपात शोक सभा पूर्वांचल हज सेवा समिति की हाजी रईस अहमद कि सदारत मे हुई इसमें समिति की तरफ़ से डा. अकबर अली की अचानक मौत पर शोक प्रकट किया, और उनके बच्चे व बच्चियों के लिए सब्र की दुआ की गई l इस शोक सभा सभा में मौलाना रेयाज़ अहमद क़ादिरी हाजी रईस अहमद एडवोकेट, हाजी मोहम्मद ज़ुबैर, हाजी अहमद अली (पप्प), डा. मुहममद अमीन, हाजी अबदुल अहद, हाजी तारिक़ हसन (बबलू), हाजी तलअत महमूद, हाजी सलमान अदनान, अखतर हुसैन अंसारी,शम्सुल आरिफीन, हाजी नेयाज़ अहमद (मामा) आदि मौजूद थे।

कांग्रेस कमेटी

वाराणसी महानगर कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष फसाहत हुसैन बाबू, उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश महासचिव हसन मेहदी कब्बन एवं वाराणसी प्रभारी महासचिव प्रदेश कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग शाहिद तौसीफ संयुक्त शोक संदेश में कहा कि डा. अकबर अली हाजियो को हज पर रवाना होने से पहले हज की सही अरकान अदा करने की ट्रैनिग देने के लिए हर साल हाजियों के साथ लगे रहते रहे उनके निधन की खबर से पूर्वांचल केलोग काफी गमगीन हैं। उनकी असमयिक मौत से पूरे पूर्वांचल मे शोक की लहर है। उनके निधन से विशेष रूप से मुसलमानो की बहुत बड़ी क्षति हुई है ।जिसकी भरपाई निकट भविष्य मे नामुमकिन है ।


उक्त नेताओ ने उन्हें खिराजे अकीदत पेश करते हुए तमाम लोगों से डॉक्टर अकबर अली के मगफिरत के लिए दुआ की गुजारिश की।

रविवार, 27 जून 2021

ग्रामीण चिकित्सकों ने कोरोना काल में मानवता की अदम्य सेवा की है: डॉ. मोहम्मद आरिफ

आशा ने दिया 5 चिकित्सकों को "कोरोना योद्धा सम्मान" 

मेडिकल किट देकर किया गया सम्मानित  

वाराणसी 27 जून (दिल इंडिया लाइव)। सामाजिक संस्था 'आशा ट्रस्ट' द्वारा विभिन्न जिलों में कोरोना अवधि में उल्लेखनीय सेवा प्रदान करने वाले ग्रामीण चिकित्सकों को चिन्हित करके उन्हें "कोरोना योद्धा सम्मान " दिया जा रहा है।इसी के तहत रविवार को वाराणसी के चांदमारी स्थित एक निजी परिसर में 5 चिकित्सकों को सम्मानित किया गया। सम्मान पत्र के साथ में उन्हें स्वास्थ्य रक्षक किट भी प्रदान की गयी।  किट में आक्सीमीटर, थर्मामीटर,  थर्मल स्कैनर, वेपोराइजर, फेस शील्ड, दस्ताना, मास्क, दवाएं आदि थे जिसका चिकित्सा के दौरान प्रयोग किया जाता है। इस अवसर पर मुख्य अतिथि वरिष्ठ गांधीवादी इतिहासकार डॉ मोहम्मद आरिफ ने कहा कि  कोरोना संक्रमण के दूसरे लहर के दौरान जब सरकारी अस्पतालों और बड़े अस्पतालों में बेड और आक्सीजन के लिए हाहाकार मचा हुआ था उस समय दूर दराज गाँवों में चिकित्सकों ने बड़ी  जिम्मेदारी के साथ पीड़ित और संक्रमित लोगों को चिकित्सा सुलभ कराई। इन चिकित्सको के पास प्रायः बड़ी डिग्री नही होती लेकिन इनका विभिन्न प्रकार की स्वास्थ्य समस्याओं के इलाज करने का अनुभव कही बहुत ज्यादा है। और यही कारण था कि कोरोना की दूसरी लहर के दौरान इन चिकित्सकों ने ग्रामीण क्षेत्र में हजारों लोगों की जान बचाई। ग्रामीण क्षेत्र में सेवा कर रहे तमाम निजी चिकित्सकों ने महामारी के दौर में मानवता की सेवा की मिसाल कायम की है, उन्हें प्रोत्साहित किये जाने की आवश्यकता है। कार्यक्रम संयोजक एवं आशा ट्रस्ट के समन्वयक वल्लभाचार्य पाण्डेय ने कहा कि ग्रामीण चिकित्सकों को आधुनिक चिकित्सा उपकरणों के उपयोग का  प्रशिक्षण दिए जाने की जरूरत है जिससे भविष्य में ऐसी स्थिति उत्पन्न होने पर वे और बेहतर सेवा दे सकें। सामाजिक कार्यकर्ता महेश कुमार ने कहा कि प्रत्येक गाँव में मानदेय पर जन स्वास्थ्य रक्षकों की नियुक्ति की जानी चाहिए जिससे ग्रामीण क्षेत्र में सामान्य जांच जैसे रक्तचाप, मधुमेह, ऑक्सीजन स्तर आदि आसानी से सुलभ हो सके। इस क्रम में सम्मानित किये गये चिकित्सकों डॉ  मोहम्मद गुलबहार अहमद फैज़, डॉ नित्या नन्द पाण्डेय, डॉ शिव धनी पटेल, डॉ मोहम्मद नसीम अहमद और डॉ विजय कुमार ने भी  कोरोना संकट काल के समय के अपने अनुभवों को साझा किया।




कार्यक्रम की व्यवस्था और संचालन नाहिदा और दीपक पटेल ने किया।

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