शनिवार, 16 जुलाई 2022

एएमयू के बजट में कटौती किए जाने से कांग्रेसियों में रोष

बजट को 100 करोड़ करने को सौंपा पत्रक


Varanasi (dil india live). सरकार द्वारा अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का बजट कम किए जाने से कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग ने विरोध जताया है। इस संबंध में आज उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग के अध्यक्ष शाहनवाज आलम के आवाहन पर पूरे प्रदेश सहित वाराणसी में उत्तर प्रदेश कांग्रेस कमेटी अल्पसंख्यक विभाग का एक प्रतिनिधिमंडल प्रदेश महासचिव हसन मेंहदी कब्बन के नेतृत्व में जिला अधिकारी  के माध्यम से केंद्रीय शिक्षा मंत्री मानव संसाधन मंत्रालय को 4 सूत्री ज्ञापन भेजा। जिलाधिकारी के शहर के बाहर होने के कारण अपर नगर मजिस्ट्रेट प्रथम को ज्ञापन दिया गया।

कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश महासचिव हसन मेंहदी कब्बन ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का बजट 62 करोड़ से घटाकर सवा 9 करोड़ कर दिया गया, बजट में कटौती 2018 से अनवरत जारी है।

महानगर उपाध्यक्ष फसाहत हुसैन बाबू ने कहा कि अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय की वैश्चिक रैंकिंग 801 है, भारत सरकार की अपनी रैकिंग ये 10 वे स्थान पर है। सरकारी विश्वविद्यालयों की रैंकिंग में अलीगढ़ विश्वविद्यालय चौथे स्थान पर है। जो इस विश्वविद्यालय के शानदार शैक्षणिक स्तर को प्रमाणित करता है।

ज्ञापन के माध्यम से कांग्रेसजनों ने अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय का बजट को बढ़ाकर 100 करोड़ किए जाने की मांग की। यूपीए सरकार द्वारा प्रस्तावित अलीगढ़ विश्वविद्यालय के 5 कैंपस में से सिर्फ 3 कैंपस मुर्शिदाबाद किशनगंज मल्लपुरम ही संचालित है जो काफी दयनीय स्थिति में है यह पर्याप्त बजट मुहैया कराया जाए

मौजूदा वाइस चांसलर का कार्यकाल पूरा हो चुका है। नए कुलपति की नियुक्ति प्रकृति प्रक्रिया प्रारंभ की जाए, शिक्षकों के रिक्त पदों को तत्काल भरा जाए सहित 4 सूत्री मांग पत्र दिया गया और सभी मांगों पर अभिलंब विचार कर पूरी करने की मांग की गई।

प्रतिनिधिमंडल में मुख्य रूप से महानगर कांग्रेस कमेटी के उपाध्यक्ष फसाहत हुसैन बाबू, कांग्रेस अल्पसंख्यक विभाग के प्रदेश महासचिव हसन मेंहदी कब्बन, शाहिद तौसीफ,  अशोक सिंह एडवोकेट, विनोद सिंह कल्लू, तौफीक़ कुरैशी, मेंहदी हसन आब्दी, कल्पनाथ शर्मा, आशीष पाठक, कल्पनाथ  वैभव त्रिपाठी, अब्दुल करीम आदि थे

सूखा प्रभावित शहर के लिए रैली

वाराणसी सूखाग्रस्त घोषित हो, तहसील पर किसानों का धरना प्रदर्शन

किसानों ने रैली निकाल सरकार से लगाई मुआवजा देने व कर्ज माफी की गुहार 


Varanasi (dil india live). लोक समिति व ग्राम प्रधान संघ आराजी लाइन के संयुक्त तत्वावधान में सैकड़ो किसानों ने वाराणसी जिले को सूखाग्रस्त घोषित करने की माँग को लेकर तहसील राजातालाब में धरना प्रदर्शन किया। लोगों ने उपजिलाधिकारी को माँग पत्र सौपा और वाराणसी जिले को अविलम्ब सूखा घोषित किये जाने की माँग किया। आराजी लाइन और सेवापुरी ब्लाक के दर्जनों गाँव से आये आक्रोशित किसानों ने राजातालाब बाजार से रैली निकालकर तहसील राजातालाब  के गेट पर पहुँचे। तहसील के मुख्य गेट पर खड़े होकर किसानों ने अपनी मांग को लेकर खूब नारे लगाये। बाद में किसानों  ने मुख्यमंत्री व प्रधानमंत्री को संबोधित ज्ञापन के माध्यम से जिले को सूखे की माँग लेकर अविलम्ब कार्यवाही की माँग किया। धरने में शामिल किसानों ने कहा कि जुलाई माह बीतने के कगार पर है और यह महीना बिन बरसात के गुजरने वाला है बारिश नही हो पाने के वजह से जिले के किसान ज्वार, तिल, मक्का, सब्जी, अरहर आदि की फसल के अलावा धान की रोपाई नहीं कर पाए। बारिश का इंतजार करते करते धान की नर्सरी अब खराब हो गयी है। किसान भुखमरी के कगार पर है पर ऐसी दशा में शासन प्रशासन हाथ पर हाथ रखकर सिर्फ तमाशा देख रहा है। 

ग्राम प्रधान संघ अध्यक्ष मुकेश कुमार ने आरोप लगाया कि एक तरफ जहाँ किसान परेशान है, वही बिजली विभाग व बैंक अधिकारियों द्वारा संकट की इस स्थिति में भी किसानों को परेशान कर उनके ट्रैक्टर आदि खींचे जा रहे हैं जिसे तत्काल रोका जाए। बकाया वसूली भी स्थगित करने की मांग की। 

लोक समिति संयोजक नन्दलाल मास्टर ने कहा कि बरसात नही होने के कारण जिले के तमाम किसानों की फसलें क्षतिग्रस्त हो चुकी हैं। अभी तक किसानों को उचित मुआवजा की घोषणा नहीं किया गया। भेजे ज्ञापन में ग्रामीणों ने माँग किया  कि फसलों की हुई क्षति भरपाई के लिए पीड़ित किसानों को प्रति बीघा बीस हजार रुपये की दर से क्षतिपूर्ति दी जाए। सभी तरह की लगान व अन्य राजस्व वसूली पर रोक लगायी जाय। किसानों के कर्जे व बिजली बिल माफ किया जाय। बच्चों के स्कूल फीस माफ किया जाय, असंगठित खेतिहर मजदूरों को मुआवजा व मनरेगा में काम दिया जाय। नहर में अविलम्ब पानी छोड़ा जाय। 24 घण्टे बिजली की आपूर्ति किया जाय। पर्यावरण रक्षा जल संरक्षण के लिए विशेष कार्ययोजना बनायी जाय। 

धरने में मुख्यरूप से ग्राम प्रधानसंघ अध्यक्ष मुकेश कुमार, रामबाबू पटेल ग्रामप्रधान गजापुर, विजय पटेल ग्रामप्रधान कचनार, दिलीप पटेल ग्राम प्रधान कुरुसातो, एडवोकेट सर्वजीत भारद्वाज, संतोष यादव ग्रामप्रधान दीपपुर, राजेन्द्र पटेल ग्रामप्रधान चंदापुर, चंद्रजीत ग्रामप्रधान धानापुर, प्रकाश यादव ग्रामप्रधान कृष्णदत्तपुर, सरोज,लालमन, सुरेन्द्र, दिलीप, श्रीप्रकाश, महंगू, अमित, अनीता, सोनी, आशा, श्यामसुन्दर मास्टर पंचमुखी  सुनील मुन्नी, बिंदु,रमावती, सीता, श्यामदेई, सुरजा, कुमारी, वित्तन, अंजु आदि लोग शामिल रहे। रैली का नेतृत्व नन्दलाल मास्टर, संचालन प्रधानसंघ अध्यक्ष मुकेश कुमार और अध्यक्षता ग्रामप्रधान कृष्णदत्तपुर प्रकाश यादव ने किया।

बनारस रेलवे स्टेशन का एक वर्ष पूरा, मनाया जश्न


Varanasi (dil india live).  निराला नगर कालोनी महमूरगंज स्थित तेरापंथ भवन में वाराणसी नगर उद्योग व्यापार मण्डल द्वारा 'बनारस रेलवे स्टेशन' का एक वर्ष पूरे होने के अवसर पर केक काटकर पूरे हर्षोल्लास के साथ जन्मदिन के रूप में वर्षगांठ मनाया गया। 
कार्यक्रम का शुभारम्भ राष्ट्रगान से हुआ। कार्यक्रम की अध्यक्षता अनुमंडल के अध्यक्ष संजीव सिंह बिल्लू ने किया तथा संचालन मंत्री प्रतीक गुप्ता ने किया | उल्लेखनीय है कि 2015 में मंडुवाडीह रेलवे स्टेशन का नाम बदलकर "बनारस" किए जाने का सुझाव सोशल मीडिया के माध्यम से सर्वप्रथम वरिष्ठ पत्रकार एके लारी द्वारा दिया गया था लारी जी का ये सुझाव  सभी को रास आ गया। सोशल मीडिया पर इस मुहिम का दायरा बढ़ता गया।शासन-प्रशासन के अलावा दिल्ली देश के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी तक बात पहुंच गई। 

बनारस के जनप्रतिनिधियों और सामाजिक संगठनों ने भी इस मुहिम को हाथोंहाथ लिया। नतीजा हुआ कि बनारस के रहने वाले और तत्कालीन रेलराज्य मंत्री श्री मनोज सिन्हा ने साल 2017 में हुए विधानसभा चुनाव के दौरान गाजीपुर में मंडुआडीह स्टेशन का नाम बदलकर 'बनारस' करने का ऐलान कर दिया। इस ऐलान से मुहिम के साथियों का हौसला और बढ़ गया। मुहिम और तेज हो गयी।आभासी दुनिया के लाखों साथी इसके हिस्सेदार बन गये। 

फिर  वह समय भी आया जब केन्द्रीय गृह मंत्रालय ने पिछले साल के शुरू में एक दिन नोटिफिकेशन जारी कर दिया कि मंडुआडीह रेलवे स्टेशन का नाम अब बनारस होगा। फिर तमाम प्रक्रियाओं के बाद अंततः 15 जुलाई 2021वह तारीख इतिहास में दर्ज हो गया। जिस दिन हम बनारसियों को 'बनारस' नाम का माइल स्टोन मिल गया।

हम सभी बनारस के साथियों ने इस आयोजन को बनारस स्टेशन परिसर में बहुत ही शानदार तरीके से मनाने की तैयारी शुरू कर दी थी। पूर्वोत्तर रेलवे मंडल रेल प्रबंधक वाराणसी रामाश्रय पांडे ने सहमति देते हुए स्थान का आवंटन भी कर दिया था। परन्तु विभागीय जटिलताओं के कारण परिसर में वर्षगांठ समारोह नहीं हो पाया। रेलवे का यह फैसला सुनकर मन दुखी तो हुआ पर सभी ने तय किया कि हम हार नहीं मानेंगे।भले ही रेलवे अपने परिसर में सालगिरह न मनाने दे,कोई बात नहीं हम कहीं और मनाएंगे। साथ ही  यह बता देंगे बनारसी हार नहीं मानते तो ठान लेते हैं उसे मूर्त रूप देकर ही छोड़ते हैं | 

कार्यक्रम का प्रारंभ है राष्ट्रगान से हुआ तत्पश्चात वरिष्ठ पत्रकार श्री ए के लारी ने मंडुआडीह से बनारस नामांतरण का सफरनामा सबके साथ साझा किया | श्री लारी का संस्था द्वारा अंगवस्त्रम से सम्मान किया गया | सभी वरिष्ठ पदाधिकारियों एवं विशिष्ट जनों ने केक काटकर वर्षगांठ मनाया। स्वागत शोभनाथ मौर्या,मनोज दुबे,राकेश मिढ्ढा, संचालन प्रतीक गुप्ता   व धन्यवाद ज्ञापन राजेश त्रिवेदी ने दिया।

मुख्यरूप से के. एन. सिंह, मदन मोहन कपिल, विकास चतुर्वेदी, गुलशन कपूर,मनोज रावत,शरद वर्मा,घनश्याम जायसवाल,विभूति नारायण सिंह, विजयशाह, कन्हैया लाल शर्मा, संजय बनर्जी, उत्कर्ष सिंह, राजू गोंड, कुलदीप गोंड, मनोज गोंड, मनोज सोनकर, दीपक गोंड, राधेश्याम गोंड, विकास, नन्द किशोर अरोड़ा, पंकज पटेल, योगेश वर्मा, सभासद शिवशंकर  यादव, सुनील चौरसिया, निर्मल यादव, सिन्धु सोनकर, सत्यार्थ भारती रिंक्कू, मिठाई लाल यादव, सुमित मौर्या निक्की, रोहित पाठक, राजकुमार खरवार राजू , राजेश यादव, सुधीर जायसवाल, सौरभ सिंह मुन्ना, जयकिशन गुप्ता, चन्द्र प्रकाश, दीपक गुप्ता, महेश्वर सिंह, सौरभ चन्द्र, राजीव रंजन सिंह, कल्लू, अर्जुन बिंद आदि शामिल रहे।

शुक्रवार, 15 जुलाई 2022

Hajj 2022: कल से आएंगे काबा के मुसाफिर

हाजियों की वापसी पर रहेगा घरों में जश्न का माहौल


Varanasi (dil india live). कल हज का सफर मुकम्मल करके पहली फ्लाईट SV-5798 लखनऊ आ रही है। इस फ्लाइट में 377 हाजी जेद्दाह (सऊदीअरब) से उत्तर प्रदेश के लखनऊ आएंगे। हाजियों की वापसी की खुशी में जायरीन के घरों में जश्न का माहौल है।

बता दें कि इस बार पूरे (यू. पी.) से 7452 हज यात्रियों को सऊदी अरब हज पर जाना नसीब हुआ, जिसमें से लखनऊ इम्बार्केशन से लगभग 4000 और बाकी दिल्ली इम्बार्केशन से गये। हज का फर्ज़ अदा करने के बाद 16 जुलाई से हाजियों की वापसी शुरु होगी। लखनऊ इम्बार्केशन के सभी हज यात्रियों की 26 जुलाई तक वापसी हो जायेगी। उत्तर प्रदेश राज्य हज समिति लखनऊ ने एयरपोर्ट पर हाजियों को लेने आने वाले उनके रिश्तेदारों के लिए भी पानी, टेंट, पार्किंग का इंतज़ाम किया गया है। 

पूर्वांचल हज सेवा समिति के सदर हाजी रईस अहमद नायब सदर हाजी ज़ुबैर व हाजी अहमद अली, महासचिव सलमान अदनान खाँ, तारिक हसन बब्लू, डॉ. अमीन,  हज पर से वापस आने वाले सभी हाजियों का खैर मक़दम करती है और दुआ करती है कि सभी हाजि खैरियत से अपने घरों को पहुँचे l

मानसून पार्टी में मचाया धमाल



Varanasi (dil india live). स्माइल मुनिया के तत्त्वाधान मे मानसून पार्टी का आयोजन किया गया। इस दौरान स्कूल जाने वाली एक जरुरतमंद मुनिया को साइकिल प्रदान की गई। सभी सदस्याएं आसमानी रंग के परिधान में सजधज कर आईं थीं। बारिश के गीत डांस तथा उसी से संबंधित मजेदार गेम्स का भी आयोजन किया गया। कार्यक्रम में मानसून क्वीन का चयन हुआ। 

अध्यक्षा अंजलि अग्रवाल ने स्वागत कर मुनिया को साइकिल प्रदान किया। निशा एवं सुषमा के संयोजन में कार्यक्रम संपन्न हुआ। निधि, विनीता मल्होत्रा, जयंती, प्रीती जयसवाल, नूतन रंजन, ममता तिवारी, रेनू कैला, विनीता इत्यादि ने कार्यक्रम को खुशनुमा रंग दिया। इस  मौके पर धन्यवाद सरोज राय तथा संचालन चंद्रा शर्मा ने किया।

COVID-19: 18 प्लस के युवाओं का शुरू हुआ वैक्सीनेशन

बूस्टर डोज वैक्सीनेशन अब लग रहा निःशुल्क


Himanshu Rai

Ghazipur (dil india live). कोविड-19 टीकाकरण जो स्वास्थ्य विभाग की तरफ से आमजन को निशुल्क किया जा रहा है। कुछ समय पहले की बात करें तो  निजी अस्पतालों के माध्यम से प्रति टीकाकरण ₹375 का शुल्क लिया जा रहा था। लेकिन आजादी के अमृत महोत्सव के तहत 18 प्लस के युवाओं का शुक्रवार 15 जुलाई से 30 सितंबर तक जनपद के सभी स्वास्थ्य केंद्रों पर निशुल्क टीकाकरण शुरू किया गया। जिस के क्रम में जनपद में 502 लोगों का टीकाकरण किया गया।

जिला प्रतिरक्षण अधिकारी डॉ उमेश कुमार ने बताया कि शासन से मिले निर्देश के क्रम में आज जनपद के 16 ब्लॉक में 18 प्लस के युवाओं के लिए टीकाकरण कार्यक्रम शुरू किया गया। बूस्टर डोज के लिए लोगों की भीड़ कम दिखी। लेकिन आने वाले समय में लोगों की संख्या बढ़ने की उम्मीद है । विभाग के द्वारा और जिला प्रशासन के द्वारा कोविड-19 के बूस्टर डोज 18 प्लस के युवाओं को लगाया जाना है। इसके लिए जागरूक किया जा रहा है।

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र के अधीक्षक डॉ आशीष राय ने बताया कि उनके ब्लॉक में ट्रामा सेंटर के अलावा पांच अन्य स्वास्थ्य केंद्रों पर भी कोविड-19 टीकाकरण 18 प्लस के लोगों का किया गया। जिसका उद्घाटन भाजपा के नेता सतीश चंद्र राय और तेज बहादुर के द्वारा किया गया। उन्होंने बताया कि  टीकाकरण के लिए स्लॉट बुक कराने वाले लोगों के लिए प्राथमिकता पर टीकाकरण किया गया। वहीं पूर्व में टीकाकरण कराये लोग जिनका 6 माह पूर्ण हो चुका था। उन्हें फोन कर आमंत्रित किया गया और कुल 66 लोगों का टीकाकरण हुआ।

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रेवतीपुर पर कोविड-19 टीकाकरण का उद्घाटन ब्लाक प्रमुख अजिताभ राय के द्वारा किया गया । इस दौरान उन्होंने स्वयं  अपना बूस्टर डोज का वैक्सीनेशन भी कराया। बीपीएम बबीता सिंह ने बताया कि उनके स्वास्थ्य केंद्र पर कुल 52 लोगों का टीकाकरण किया गया। जिसमें से बहुत सारे लोगों को फोन कर बताया गया था।

सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र सैदपुर पर डब्ल्यूएचओ के एसएमओ डॉ विनय कुमार के द्वारा कोविड-19 टीकाकरण का शुभारंभ किया गया। कुल 45 लोगों का टीकाकरण किया गया। वहीं सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र देवकली पर डॉ एसके सरोज ने टीकाकरण केंद्र का उद्घाटन किया । कुल 65 लोगों का टीकाकरण कराया गया। इस दौरान मनिहारी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र पर बूस्टर डोज का लाभ 55 लोगों ने उठाया। बीपीएम धीरज विश्वकर्मा ने बताया कि बूस्टर डोज के लिए 1 दिन पूर्व से ही सेकंड डोज का 6 माह पूर्ण कर चुके लोगों को लगातार फोन किया गया। फिर भी संख्या कम रही लेकिन आने वाले समय में लोगों की भीड़ बढ़ने की उम्मीद है। इस कार्यक्रम में सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र मोहमदाबाद पर बीपीएम संजीव कुमार,एएनएम प्रीति, सुधीर, यासमीन, धर्मेंद्र, पंकज मौजूद रहे। वही सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र रेवतीपुर पर प्रभारी चिकित्सा अधिकारी डॉ अनिल कुमार, बीसीपीएम सुनील कुमार, आशुतोष कुमार, अभिषेक कुमार ,आनंद कुमार, शैलजा राय, शैलेश राय व अन्य लोग मौजूद रहे।

जानिए भारतीय सेना के इस जांबाज ब्रिगेडियर की कहानी

'नौशेरा के शेर' मोहम्मद उस्मान की आज है यौमे पैदाइश

(15 जुलाई जयंती पर खास ) 




Shahin ansari

Varanasi (dil india live)। ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान जंग के मैदान में शहीद होने वाले बड़ी रैंक के पहले अफसर थे। बहादुरी ऐसी कि पाकिस्तानी सेना खौफ खाती थी। इंडियन आर्मी के इस अफसर को "नौशेरा का शेर" भी कहा जाता है। उस्मान ने वतन परस्ती की ऐसी मिसाल पेश की कि बंटवारे के दौरान पाकिस्तानी सेना का चीफ बनने का मोहम्मद अली जिन्ना का प्रस्ताव ठुकरा दिया। ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान पहले ऐसे अफसर थे,जिस जांबाज़ पर पाकिस्तान ने इनाम रखा था।

  भारतीय सेना के महान अफसर  ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का जन्म 15 जुलाई, 1912 को  आजमगढ़ में हुआ था। उनके पिता मोहम्मद फारूख पुलिस में आला अधिकारी थे जबकि मां जमीलन बीबी घरेलू महिला थीं। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा स्थानीय मरदसे में हुई और आगे की पढ़ाई वाराणसी के हरश्चिंद्र स्कूल तथा इलाहाबाद यूनिवर्सिटी में हुई। वह न सिर्फ अच्छे खिलाड़ी थे बल्कि ज़बरदस्त वक्ता भी थे। वीरता उनमें कूट-कूट कर भरी थी। तभी तो महज़ 12 साल की उम्र में वह अपने एक मित्र को बचाने के लिए कुएं में कूद पड़े थे और उसे बचा भी लिया था।

 देश के बंटवारे के समय जिन्ना और लियाकत खान ने मुसलमान होने का वास्ता देकर उनसे पाकिस्तान आने का आग्रह किया। साथ ही पाकिस्तान की सेना का प्रमुख बनाने का न्यौता भी दिया। मगर उन्होंने उस न्यौते को ठुकरा दिया और 1947-48 में पाकिस्तान के साथ पहले युद्ध में वे शहीद हो गए। साल 1932 में मोहम्मद उस्मान की उम्र महज 20 वर्ष थी। उस्मान जिस दौर में पल रहे थे, वो आजादी से काफी पहले का दौर था। उस्मान ने तभी सेना में जाकर देश के लिए कुछ करने का जज्बा दिल में पाल लिया था। यह वो दौर था जब भारत में ब्रिटिश हुकूमत थी। उस्मान के पिता चाहते थे कि बेटा सिविल सर्विस में जाकर खानदान का नाम ऊंचा करे। लेकिन उस्मान के ख़्वाब उनके पिता की सोच से अलग थे।

 20  वर्ष की उम्र में उस्मान को आर एम, रॉयल मिलिट्री एकेडमी में दाखिला मिल गया। उस वक्त पूरे भारत में केवल 10 लड़कों को इस मिलिट्री संस्थान में दाखिला मिला था। उस्मान उनमें से एक थे। तब भारत की अपनी मिलिट्री एकेडमी नहीं थी, इसलिए सेना में जाने वाले युवाओं को ब्रिटिश सरकार इंग्लैंड में रॉयल मिलिट्री एकेडमी भेजकर ट्रेनिंग करवाती थी। हालांकि इंग्लैंड की इस एकेडमी का यह आखिरी बैच था। उसी साल भारत में उत्तराखंड के देहरादून में पहली इंडियन मिलिट्री एकेडमी की स्थापना हो गई। उस्मान अपने पिता फारूख की उम्मीदों से उलट आर्मी अफसर बनने के लिए इंग्लैंड रवाना हो गए। वहां उन्होंने 3 साल तक मिलिट्री की कड़ी ट्रेनिंग ली। इंग्लैंड की रॉयल मिलिट्री एकेडमी में प्रशिक्षण पूरा करने के बाद एक साल उस्मान ने रॉयल मिलिट्री फोर्स में भी अपनी सेवाएं दीं।

 जिसके बाद वो भारत लौट आए। साल 1935 में उस्मान को 10वीं बलूच रेजिमेंट की 5वीं बटालियन में पहली तैनाती मिली। वर्ल्ड वॉर के दौरान मोहम्मद उस्मान को अफगानिस्तान और बर्मा में भी तैनात किया गया। 30 अप्रैल, 1936 को उनको लेफ्टिनेंट की रैंक पर प्रमोशन मिला और 31 अगस्त, 1941 को कैप्टन की रैंक पर। अप्रैल 1944 में उन्होंने बर्मा में अपनी सेवा दी और 27 सितंबर, 1945 को लंदन गैजेट में कार्यवाहक मेजर के तौर पर उनके नाम का उल्लेख किया गया। बंटवारे से पहले साल 1945 से लेकर साल 1946 तक मोहम्म्द उस्मान ने 10वीं बलूच रेजिमेंट की 14वीं बटालियन का नेतृत्व किया। बलूच रेजीमेंट में तैनाती के दौरान वह युद्ध की हर बारीकी को सीख रहे थे। उस्मान शायद अपने जीवन की सबसे बड़ी लड़ाई के लिए तैयार हो रहे थे। जो उन्हें बंटवारे के बाद पाकिस्तानी फौज से लड़नी थी। अपनी काबिलियत के दम पर उन्हें लागातार प्रमोशन मिलता रहा और कम उम्र में ही वो ब्रिगेडियर के पद पर क़ाबिज़ हो गए।

 साल 1947 में भारत-पाकिस्तान का बंटवारा हुआ। जिसके बाद दोनों देशों से हजारों लोग इस तरफ से उस तरफ गए और वहां से यहां आए। भारत-पाक बंटवारे के बाद हर चीज का बंटवारा हो रहा था। जमीन के टुकड़े के साथ ही विभागों और सेना की कुछ रेजिमेंट का बंटवारा किया गया। बलूचिस्तान पाकिस्तान का हिस्सा बना। बंटवारे के बाद मोहम्मद उस्मान बड़ी मुश्किल में आ गए। क्योंकि बलूच रेजिमेंट बंटवारे के बाद पाकिस्तानी सेना का हिस्सा बन गई। उस दौर में सेना में बहुत ही कम मुसलमान थे। जब बंटवारा हुआ तो मोहम्मद अली जिन्ना मुसलमान होने की वजह से ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान को पाकिस्तान ले जाना चाहते थे।

 जिन्ना जानते थे कि उस्मान एक काबिल और दिलेर अफसर हैं, जो पाकिस्तानी सेना के लिए महत्वपूर्ण साबित होंगे। बावजूद इसके उस्मान ने पाकिस्तान जाने से साफ मना कर दिया। उसके बाद उस्मान को तोड़ने के लिए पाकिस्तानियों की ओर से काफी प्रलोभन दिए गए। इतना ही नहीं, मोहम्मद अली जिन्ना ने मोहम्मद उस्मान को पाकिस्तानी सेना का चीफ ऑफ आर्मी बनाने तक का लालच दिया था। मगर जिन्ना का ये लालच भी उस्मान के ईमान को हिला नहीं पाया। उस्मान ने भारतीय सेना में ही रहने का फैसला किया। जिसके बाद उन्हें डोगरा रेजिमेंट में शिफ्ट कर दिया गया। साल 1947 में भारत-पाकिस्तान बंटवारे के बाद कश्मीर आजाद रहना चाहता था। लेकिन पाकिस्तान ने बेहद चालाकी से वहां घुसपैठ की । पाकिस्तान की मंशा कश्मीर पर क़ब्ज़ा करने की थी।

 उस दौरान कश्मीर के महाराजा हरि सिंह ने भारत से मदद की गुहार लगाई। इसके बाद कश्मीर भारत का हिस्सा बन गया। भारतीय सेना ने कश्मीर को बचाने के लिए अपने सैनिकों को श्रीनगर भेज दिया। भारतीय सेना का पहला लक्ष्य पाकिस्तानियों से कश्मीर घाटी को बचाना था। भारतीय सेना ने कश्मीर के आम इलाकों को अपने कब्जे में लेना शुरू कर दिया। वहीं, पाकिस्तानी घुसपैठ करते हुए नौशेरा तक पहुंच गए थे। पाकिस्तानी फौज कश्मीर के कुछ हिस्सों पर कब्जा कर चुकी थी। पुंछ में हजारों लोग फंसे हुए थे। जिन्हें निकालने का काम भारतीय सेना कर रही थी। उस समय ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान 77वें पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभाल रहे थे। वहां से उनको 50वें पैराशूट ब्रिगेड की कमान संभालने के लिए भेजा गया। इस रेजिमेंट को दिसंबर, 1947 में झांगर में तैनात किया गया था।

 25 दिसंबर, 1947 को पाकिस्तानी सेना ने झांगर पर भी कब्जा कर लिया था। झांगर का पाक के लिए सामरिक महत्व था। मीरपुर और कोटली से सड़कें आकर यहीं मिलती थीं। लेफ्टिनेंट जनरल के. एम. करिअप्पा तब वेस्टर्न आर्मी कमांडर थे। उन्होंने जम्मू को अपनी कमान का हेडक्वार्टर बनाया। लक्ष्य था – झांगर और पुंछ पर कब्जा करना। कई अन्य अधिकारियों के साथ ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान भी कश्मीर में अपनी बटालियन का नेतृत्व कर रहे थे। उस्मान के लिए सब कुछ इतना आसान नहीं था। दुश्मन गुफाओं में छिपकर भारतीय सेना पर हमला कर रहे थे। उस्मान ने झांगर क्षेत्र को पाकिस्तानियों के कब्जे से आज़ाद कराने की क़सम खाई थी। जो उन्होंने पूरी भी की।

 ब्रिगेडियर उस्मान ने एक तो पाकिस्तान की सेना में सेनाध्यक्ष बनने की जिन्ना की पेशकश को ठुकरा दिया था। उसके बाद ऐसी बहादुरी दिखाई कि एक के बाद एक इलाके दुश्मन सेना के कब्जे से छुड़ा लाए। झांगर हासिल करने के बाद ब्रिगेडियर उस्मान ने नौशेरा को भी फतह कर लिया था। जिसके बाद से उन्हें ‘नौशेरा का शेर’ कहा जाने लगा। उस्मान की बहादुरी के आगे पाकिस्तानी सेना चारों खाने चित्त हो गई थी। ब्रिगेडियर उस्मान की क़ाबलियतऔर कुशल रणनीति का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि उनके नेतृत्व में भारतीय सेना को काफ़ी कम नुकसान हुआ था। जहां इस युद्ध में पाकिस्तानी सेना के 1000 सैनिक मारे गए, तो वहीं भारतीय सेना के सिर्फ 33 सैनिक शहीद हुए थे। ब्रिगेडियर  उस्मान अपनी बहादुरी के कारण पाकिस्तानी सेना की आंखों की किरकिरी बन चुके थे। पाकिस्तान इतना बौखला गया था कि उसने उस्मान के सिर पर 50 हजार रुपए का इनाम भी रख दिया।

 पाक सेना घात लगाकर बैठी थी। 3 जुलाई, 1948 की शाम, पौने 6 बजे होंगे। उस्मान जैसे ही अपने टेंट से बाहर निकले कि उन पर 25 पाउंड का गोला पाक सेना ने दाग दिया। उनके अंतिम शब्द थे – हम तो जा रहे हैं, पर जमीन के एक भी टुकड़े पर दुश्मन का कब्जा न होने पाए। ब्रिगेडियर उस्मान 36वें जन्मदिन से 12 दिन पहले शहीद हो गए। ब्रिगेडियर के पद पर रहते हुए देश के लिए शहीद होने वाले उस्मान इकलौते भारतीय थे। उन्हीं की कुर्बानी का नतीजा है कि आज भी जम्मू-कश्मीर की घाटियां भारत का अभिन्न अंग हैं। 

 शहादत के बाद राजकीय सम्मान के साथ उन्हें जामिया मिल्लिया इस्लामिया क़ब्रगाह, नयी दिल्ली में दफनाया गया। उनकी अंतिम यात्रा में तत्कालीन गवर्नर जनरल लार्ड माउंटबेटन, प्रधानमंत्री जवाहर लाल नेहरू, केंद्रीय मंत्री मौलाना अबुल कलाम आज़ाद और शेख अब्दुल्ला शामिल थे। किसी फौजी के लिए आज़ाद भारत का यह सबसे बड़ा सम्मान था। यह सम्मान उनके बाद किसी भारतीय फौजी को नहीं मिला। मरणोपरांत उन्हें ‘महावीर चक्र’ से सम्मानित किया गया।

 उस्मान अलग ही मिट्टी के बने थे। अपने फौजी जीवन में बेहद कड़क माने जाने वाले उस्मान अपने व्यक्तिगत जीवन में बेहद मानवीय और उदार थे। अपने वेतन का अधिकाँश हिस्सा गरीब बच्चों की पढ़ाई और जरूरतमंदों पर खर्च करते थे। वे नौशेरा में अनाथ पाए गए 158 बच्चों को उनको पढ़ाते-लिखाते और उनकी देखभाल करते थे। जब-जब भारतीय फौज की वतनपरस्ती और पराक्रम का जिक्र होगा, भारत माँ के सपूत ब्रिगेडियर मोहम्मद उस्मान का नाम बड़े अदब के साथ याद लिया जाएगा।

"लाई हयात आये , क़ज़ा ले चली , चले।

अपनी ख़ुशी से आये ना, अपनी ख़ुशी चले।।"

(लेखक सेन्टर फ़ॉर हार्मोनी एंड पीस से जुड़ी हुई हैं।)

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