मंगलवार, 9 नवंबर 2021

नागनथैया लीला देख भक्त हुए आत्मविभोर

भगवान श्री कृष्ण ने कालिया नाग का किया मानर्मदन




वाराणसी 09 नवंबर (dil india live)। तुलसीघाट पर सोमवार को शाम के 4 बजते ही भगवान श्री कृष्ण  जब अपने सखाओं संग कंदुक खेलना शुरू किया तो वातावरण कृष्ण की भक्ति में गोते लगाने लगा।लीला प्रसंग के अनुसार यमुना  में गई गेंद को निकालने के लिए कृष्ण कदंब की डाल पर चढ़कर नदी में कूद गए और कुछ क्षण में ही कालिया नाग के फन पर सवार होकर बाहर आये,लोगों को दर्शन दिए तो वहां उमड़ा जनसैलाब कृष्ण की इस लीला को देख आत्मविभोर हो गया। इस दौरान हर -हर महादेव की गूंज, डमरू की गड़गड़ाहट आरती और भजन से पूरा वातावरण गूंज उठा। तुलसीघाट पर सैकड़ों साल पुरानी नागनथैया लीला कल फिर जीवंत हो उठी। कोरोना काल में इस लक्खा मेले के सकुशल आयोजन ने काशी की धार्मिक परम्परा के निर्वहन की एक मिशाल पेश की।3 बजते ही लीला स्थल पर लोगों के आने का क्रम शुरू हुआ महज एक घँटे में अस्सी,तुलसीघाट, रीवा घाट पर भीड़ से भर गयी। नाव,बजड़े पर सवार होकर लोग लीला देखने पहुँचे।संकट मोचन मंदिर के महंत प्रो विशम्भर नाथ  मिश्र और विजय नाथ मिश्रा ने भगवान श्री कृष्ण को माला पहनाया एवं परम्परागत रूप से बजड़े पर सवार महाराज काशी नरेश के प्रतिनिधि अनंत नारायण सिंह ने भी कान्हा को माला पहनाया। मेले सुरक्षा के लिए पुलिस, पीएसी और गंगा में एनडीआरएफ और जल पुलिस के जवान तैनात किए गए थे।3 बजे से ही लीला स्थल की ओर जाने वाले सभी मार्गो पर वाहनों का आवागमन प्रतिबंधित कर दिया गया था।




सोमवार, 8 नवंबर 2021

डायबिटिक हैं तो चाय में चीनी की जगह इसे डाले

डायबिटिक मरीज़ो के लिए मुफीद स्टीविया


वाराणसी 8 नवंबर (dil india live)। स्टीविया डायबिटीज रोगियों  के लिए काफी फायदेमंद है। इसमें कैलोरी नहीं के बराबर होती है। इसे मधुरगुणा के नाम से भी जाना जाता है। यह औषधि चीनी की तरह मीठी होती है। डायबिटीज के रोगी चीनी के रूप में स्टीविया का उपयोग कर सकते हैं। इससे शुगर लेवल नहीं बढ़ता है. इसके अलावा स्टीविया हाई ब्लड प्रेशर, हाइपरटेंशन, गैस एसिडिटी, त्वचा के रोग आदि के इलाज में भी किया जा सकता है। वजन कम करने में भी यह औषधि बड़े काम की है। इसके सेवन से पैंक्रियास से इंसुलिन रिलीज होता है. इस प्रकार यह इंसुलिन शरीर में ग्लूकोज की मात्रा को अवशोषित कर शरीर में ब्लड शुगर को नियंत्रित करता है। 

सूर्योपासना का महापर्व छठ नहाय-खाय के साथ शुरू

स्नान किया, अरवा भोजन छक कर व्रत को किया शुरू 


वाराणसी 8 नवंबर (dil india live)। सूर्योपासना का चार दिवसीय महापर्व छठ आज से नहाय-खाय के साथ शुरू हो गया। लोक आस्था के महापर्व छठ के चार दिवसीय अनुष्ठान की शुरुआत आज नहाय-खाय के साथ हो गई है। छठ के पहले दिन व्रती महिला-पुरूषों ने अंतःकरण की शुद्धि के लिए नहाय-खाय के संकल्प के तहत नदियों-तालाबों के निर्मल एवं स्वच्छ जल में स्नान करने के बाद अरवा भोजन ग्रहण कर इस व्रत को शुरू किया। सुबह से ही गंगा नदी, तालाब, पोखर आदि में व्रती स्नान करते देखे गए।

परिवार की सुख-समृद्धि तथा कष्टों के निवारण के लिए किये जाने वाले इस व्रत की एक खासियत यह भी है कि इस पर्व को करने के लिए किसी पुरोहित (पंडित) की आवश्यकता नहीं होती है। महापर्व छठ के दूसरे दिन महिला एवं पुरुष व्रती कल एक बार फिर नदियों, तालाबों में स्नान करने के बाद अपना उपवास शुरू करेंगे। दिनभर के निर्जला उपवास के बाद व्रती सूर्यास्त होने पर भगवान सूर्य की पूजा कर एक बार ही दूध और गुड़ से बनी खीर खायेंगे।

इसके बाद जब तक चांद नजर आयेगा तभी तक वह जल ग्रहण कर सकेंगे और उसके बाद से उनका करीब 36 घंटे का निराहार-निर्जला व्रत शुरू हो जायेगा। इस महापर्व के तीसरे दिन व्रतधारी अस्ताचलगामी सूर्य को नदियों और तालाबों में खड़े होकर प्रथम अर्घ्य अर्पित करेंगे। व्रतधारी अस्त हो रहे सूर्य को फल और कंद मूल से अर्घ्य अर्पित करते हैं। पर्व के चौथे और अंतिम दिन नदियों और तालाबों में उदीयमान सूर्य को दूसरा अर्घ्य दिया जायेगा। दूसरा अर्घ्य अर्पित करने के बाद ही श्रद्धालुओं का करीब 36 घंटे का निराहार व्रत समाप्त होता है और वे अन्न-जल ग्रहण करते हैं।लोक आस्था के महापर्व छठ को लेकर बिहार ही नहीं यूपी में भी धूम है। 

     छठ गीतों की धूम

पूरे बिहार व यूपी में छठी मैया के गीत गूंज रहे हैं, जिससे पूरा माहौल भक्तिमय हो गया है। बनारस के गंगा घाट पर कन्हैया दुबे केडी, अमलेश शुक्ला अमन अपनी टीम के साथ छठ मैया के गीत गाते नज़र आये। उधर भोजपुरी अभिनेता खेसारी लाल यादव, निरहुआ, गायिका देवी, पवन सिंह, अनु दुबे और अन्य गायकों के गाए गीतों की अच्छी मांग है। इस पावन पर्व के गीतों में भी इतनी आस्था है कि गीत बजते ही लोगों का सिर श्रद्धा से झुक जाता है। श्रद्धालु पुराने गायकों के साथ-साथ नए गायकों को भी सुनना चाहते हैं।

इस वर्ष कई नए-नए कलाकारों ने छठी माई के गीत भी उपलब्ध है, जिसकी लोगों में काफी मांग देखी जा रही है। जिन घरों में छठ पर्व का आयोजन किया गया उन घरों से तो गीतों की आवाज आ ही रही है इसके अलावा बिहार में जिस रास्ते से गुजरें आपको विभिन्न लोक गायकों की आवाज से सजे ऐसे गीत सुनने को मिल जाएंगे। इन गानों का संयोजन और संकलन छठ महापर्व के लिए ही किया जाता है। छठ गीतों से जुड़ी एक रोचक बात ये है कि ये एक ही लय में गाए जाते हैं । ‘छठ पूजा’ के लोकगीतों की चर्चा होते ही सबसे पहले पद्मश्री से सम्मानित शारदा सिन्हा का नाम जेहन में आता है। ऐसे कई गीत हैं, जिन्हें शारदा सिन्हा ने अपनी अपनी मधुर आवाज देकर अमर कर दिया है। लोकगीतों के अलावा उन्होंने हिंदी फिल्मों में भी गीत गाए हैं। सूर्य की उपासना का पावन पर्व ‘छठ’ अपने धार्मिक, पारंपरिक और लोक महत्व के साथ ही लोकगीतों की वजह से भी जाना जाता है। घाटों पर ‘छठी मैया की जय, जल्दी-जल्दी उगी हे सूरज देव..’, ‘कईली बरतिया तोहार हे छठीमैया..’ ‘दर्शन दीहीं हे आदित देव..’, ‘कौन दिन उगी छई हे दीनानाथ..’ जैसे गीत सुनाई पड़ते हैं। मंगल गीतों की ध्वनि से वातावरण श्रद्धा और भक्ति से गुंजायमान हो उठता है। इन गीतों की पारम्परिक धुन इतनी मधुर है कि जिसे भोजपुरी बोली समझ में न भी आती हो तो भी गीत सुंदर लगता है। यही कारण है कि इस पारम्परिक धुन का इस्तेमाल सैकड़ों गीतों में हुआ है।

इस तरह हुआ दर्दनाक हादसा

ट्रक में एंबुलेंस भिड़ने से दो की मौत, दो जख्मी



एपी तिवारी 

मिर्जापुर(dil india live)। अहरौरा थाना क्षेत्र के शर्मा मोड़ के पास ट्रक में एंबुलेंस भिड़ने से दो लोगों की मौत हो गई। जबकि एंबुलेंस सवार दो लोग घायल हो गए। पुलिस ने शव कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। घटना के बाद चालक ट्रक छोड़कर मौके से फरार हो गया। यह घटना रविवार रात लगभग 11:30 बजे  की है। 

बताया जाता है कि एक चालक ट्रक लेकर जा रहा था। तभी चालक ने शर्मा मोड़ के पास अचानक ब्रेक लगा दिया। , बीच पीछे आ रही एंबुलेंस ट्रक में टकराकर फंस गई। दुर्घटना के बाद ट्रक चालक एंबुलेंस को खींचते हुए काफी दूर तक चित विश्राम मार्ग तक लेकर चला गया और ट्रक छोड़कर फरार हो गया। हादसे में एंबुलेंस में सवार दो लोगों की मौत हो गई। जबकि 2 लोग गंभीर रूप से घायल हो गए। सूचना पर पहुंची पुलिस ने शव कब्जे में लेकर पोस्टमार्टम के लिए भेज दिया। जबकि घायलों को पास के अस्पताल में भर्ती कराया गया है। पुलिस के अनुसार मृतकों की अभी पहचान नहीं हो सकी है। पहचान कराने का प्रयास किया जा रहा है।

रविवार, 7 नवंबर 2021

पटाखों के धुएं ने बढ़ाई दमा रोगियों की तकलीफ

पोस्ट कोविड मरीजों की तकलीफ में भी राहत नहीं




लखनऊ 7 नवंबर (dil india live)। इस बार कोविड काल के बाद दीपावली का पर्व आने से लोगों में जोश और उत्साह ज्यादा था। इसके चलते आतिशबाजी भी खूब हुई। पर्व के उल्लास में लोग जानवरो और मरीजों की तकलीफ भूल गये। पटाखो की आवाज से जानवर जहां दहशत में थे वहीं पटाखों के धुएं से दमा और कोरोना संक्रमित मरीजों की तकलीफ बढ़ गई। 

सांस लेने में तकलीफ, खांसी, गले में खराश और जकड़न की समस्या के 100 से ज्यादा मरीज शनिवार को बलरामपुर, सिविल व लोक बंधु अस्पताल के अलावा रानी लक्ष्मी बाई व भाऊराव देवरस अस्पताल की ओपीडी में पहुंचे। इनमें 40 मरीज कोरोना से उबर चुके व अन्य 60 मरीज सांस की तकलीफ वाले हैं। डॉक्टरों का कहना है कि दमा व पोस्ट कोविड मरीज जरूरी एहतियात बरतें और डॉक्टर की सलाह जरूर लें। चिकित्सकों का कहना था कि पटाखों के शोर और प्रदूषण ने मरीज़ों को खासा परेशान किया। सरकार ने सिर्फ दो घंटे आतिशवाजी का आदेश पारित किया था मगर पूरी रात आतिशबाज़ी ने प्रदूषण के साथ ही मरीजों का जीना दुश्वार कर किया।

शनिवार, 6 नवंबर 2021

नये सरदार, महतो की हुई दस्तारबंदी




शहंशाह सरदार तो खुर्शीद शक्कर तालाब के बने महतो 

वाराणसी 06 नवंबर (dil india live)। शक्कर तालाब ईदगाह में इलाके के सरदार व महतो की दस्तारबंदी की रस्म  अदा की गई। मेहमाने खुसुशी के रूप में मुफ्ती-ए-शहर मौलाना अब्दुल बातिन नोमानी और बाईसी तंजीम के सरदार हाजी इकरामुद्दीन थे। इस दौरान नये सरदार शहंशाह कमाल को और महतो खुर्शीद आलम को अपने हाथो से सर पर पगड़ी बांध कर दोनों नए सरदार महतो की दस्तारबंदी की। इस मौके पर बाईसी तंज़ीम के सरदार हाजी इकरामुद्दीन ने सभी को साथ ले कर चलने की और उस पर अमल की ताकीद की। इस मौके मुफ़्ती बातिन नुमानी ने कहा की मोहल्ला शक्कर तालाब के मरहूम शकूर सरदार की ये पुरानी टाट थी जो खाली थी उसी टाट के नए सरदार शहंशाह कमाल को और महतो खुर्शीद आलम को मोहल्ले के सभी आवाम के रजामंदी से बनाया गया है। हम सब को पूरी उम्मीद है की ये दोनों लोग बिना किसी भेद भाव के सभी के साथ इंसाफ करेंगे। इनको न कोई छोटा देखना है न कोई बड़ा देखना है। न कोई अपना न कोई पराया। सभी को साथ ले कर चलना होगा और जो भी मसला इन लोगो के पास आये उसके साथ इंसाफ करेंगे। ये सरदार और महतो का जो पद है काटो भरा होता है। इसको अपने सोच समझ से अच्छा अंजाम दे कर सभी को साथ ले कर चले और क़ुरान और हदीस के बताये हुए रास्ते पर चले नमाज़ के पाबंद बने। 

इनकी रही खास मौजूदगी


पूर्व विधायक हाजी अब्दुल समद अंसारी, पार्षद हाजी ओकास अंसारी, अब्दुल्ला अंसारी, पूर्व पार्षद डॉ. इंमतीयाजुद्दीन, पार्षद मौलाना रियाजुद्दीन, महताब आलम, फैजु, नसिर, हाजी गफूर, नाजिरुल हसन,  अनीसुर्रहमान, नुरुलहोदा अंसारी, रियाजुल हक़, हाजी बाबू, असगर ।

दरबार ए मुग़लिया की दीवाली

    तमसो मा ज्योतिर्गमय

दीवाली का नया कलेवर मुग़ल काल में ही हुआ निर्मित 




डॉ. मोहम्मद आरिफ

वाराणसी 06 नवंबर (dil india live) दीवाली का जश्न पौराणिक के साथ-साथ भारतीय संस्कृति का प्रतीक है। शास्त्रों में इसे मान्यता भी प्राप्त है और इस त्योहार का मूल तत्व बुराई पर अच्छाई की विजय है। दीवाली प्रेम, भाई-चारा और उल्लास का संदेश पूरी दुनियां को दे रही है और एक ऐसे समाज की कल्पना को साकार करने का प्रयास कर रही है, जहां मनुष्य से मनुष्य के बीच नफरत नहीं बल्कि मोहब्बत हो, पर इस बात से भी इनकार नहीं किया जा सकता कि दीवाली को भव्यता और आधुनिक स्वरूप प्रदान करने में मुग़लों का योगदान उल्लेखनीय रहा है। मुग़ल दरबार में जिस साझी विरासत का जन्म हुआ दीवाली ने उसमें महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। वैसे तो सभी भारतीय त्योहारों ने हिंदुस्तान में प्रवेश के समय से ही तुर्कों में गहरी दिलचस्पी पैदा किया परन्तु  कृष्णजन्माष्टमी बसन्त, होली और दीवाली ने उन्हें खास आकर्षित किया और ये पर्व  मुगल दरबार का हिस्सा बन गए। इसे ही अमीर खुसरो ने हिंदुस्तानी तहज़ीब कहा जो हिंदुस्तान को सारी दुनियां से श्रेष्ठ बनाता है। तुर्क और मुग़ल इस तहज़ीब में ऐसे रंगे की उनकी अलग पहचान कर पाना मुश्किल हो गया। इसी मेल-जोल की परम्परा ने हमें पूरी दुनियां पर मकबूलियत प्रदान की।

 भारत में मुस्लिम सुल्तानों के भारतीय त्योहार मनाने के दृष्टांत प्रारम्भ से ही मिलते हैं। 14वीं शताब्दी में मुहम्मद बिन तुग़लक़ दीवाली का त्योहार अपने महल में मनाता था। उस दिन महल को खूबसूरती से सजाया जाता था और सुल्तान अपने दरबारियों को नए-नए वस्त्र प्रदान करता थी। एक शानदार दावत का भी आयोजन किया जाता था। मुग़ल बादशाह बाबर के समय पूरा महल दुलहन की तरह सजा कर पंक्तियों में लाखों दीये जलाए जाते थे और इस अवसर पर शहंशाह गरीबों को नए कपड़े और मिठाइयां बाँटता था। सम्राट हुमांयू ने अपने पिता की विरासत के साथ-साथ महल में लक्ष्मी पूजा की भी शुरूआत किया। पूजा के दौरान एक विशाल मैदान में आतिशबाजी का आयोजन किया जाता था। गरीबों को सोने के सिक्के बांटे जाते थे और तदुपरांत 101 तोपों की सलामी दी जाती थी।

मुगल शहंशाह अकबर के समय में 'जश्न-ए-चिरागा' होता था। इतिहास में अकबर और जहांगीर के समय 'जश्न-ए-चिरागा' मनाए जाने का उल्लेख मिलता है। आगरा किला दीयों की रोशनी में दमक उठता था। अकबर के  दरबारी अबुल फजल ने 'आइन-ए-अकबरी' में लिखा है कि अकबर दीवाली पर अपने राज्य में मुंडेर पर दीपक जलवाता था। महल में पूजा दरबार होता था। ब्राह्मण दो गायों को सजाकर शाही दरबार में आते और शहंशाह को आशीर्वाद देते तो सम्राट उन्हें मूल्यवान उपहार प्रदान करता था। दीवाली के लिए महलों की सफाई और रंग रोगन महीनों पहले से शुरू हो जाता था। अपने कश्मीर प्रवास के दौरान अकबर ने वहां नौकाओं, घरों, झीलों और नदी तट पर दीये जलाने का फरमान जारी किया। अपने शहजादों और शहजादियों को जुए खेलने की भी इजाजत प्रदान किया। अकबर ने गोवर्धन पूजा तथा बड़ी दीवाली के साथ छोटी दीवाली मनाने की भी शुरुआत की।

अकबर ने ही आकाश दीये की भी शुरुआत की जो दीवाली की पूरी रात जलता था। इसमें 100 किलो से ज्यादा रुई और सरसों का तेल लगता था। दीये में रुई की बत्ती और तेल डालने के लिए सीढ़ी का इस्तेमाल किया जाता था। दरबार में फ़ारसी में अनुदित रामायण का पाठ भी होता था। पाठ के उपरांत दरबार में राम के अयोध्या वापसी का नाट्य मंचन होता था फिर आतिशबाजी का दौर शुरू होता था। इस अवसर पर गरीबों को कपड़े, धन और मिठाइयां वितरित की जाती थी। 

मुगल शहंशाह जहांगीर ने अपनी आत्मकथा 'तुजुक-ए-जहांगीरी' में वर्ष 1613 से 1626 तक अजमेर में दीपावली मनाए जाने का जिक्र किया है। जहांगीर दीपक के साथ-साथ मशाल भी जलवाता था और अपने सरदारों को नज़राना देता था। आसमान में 71 तोपें दागी जाती थीं तथा बारूद के पटाखे छोड़े जाते थे। फकीरों को नए कपड़े व मिठाइयां बांटी जातीं. तोप दागने के बाद आतिशबाजी होती थी. मुगलकालीन पेंटिंग्स में भी दीवाली का जश्न बहुतायत से मिलता है।

   शाहजहाँ के समय भी यह त्योहार परंपरागत तरीके से मनाया जाता रहा। दीवाली के दिन शहंशाह को सोने-चांदी से तौला जाता था और इसे गरीब जनता में बांट दिया जाता था। मुग़ल बेगमें और शहजादियाँ आतिशबाजी देखने के लिए कुतुबमीनार जाती थीं। शाहजहाँ राज्य के 56 जगहों से अलग-अलग तरह की मंगा कर 56 तरह का थाल सजवाता था। 40 फिट ऊंची भव्य आतिशबाजी का मनोहारी दृश्य देखने के लिए दूरस्थ इलाकों से लोग आते थे। शाहजहाँ शहजादियों के लिए अलग तथा आम जनता के लिए अलग-अलग भव्य आतिशबाजी का आयोजन करता था.इसके अतिरिक्त सूरजक्रान्त नामक पत्थर पर सूर्य किरण लगाकर उसे पुनः रोशन किया जाता था जो साल भर जलता रहता था। औरंगजेब के समय दीवाली ही नहीं बल्कि मुस्लिम त्योहारों में भी कुछ फीकापन आ गया।

मुहम्मद शाह दीवाली के मौके पर अपनी तस्वीर बनवाता था। उसने अकबर तथा शाहजहाँ से भी अधिक भव्यता इस त्योहार को प्रदान की। सजावट और आतिशबाजी के अलावा शाही रसोई में नाना प्रकार के पकवान बनाये जाते थे जिसे जन-साधारण में बांटा जाता था।

 बहादुर शाह जफर भी दीवाली के दिन लक्ष्मी पूजा के बाद दरबार में आतिशबाजी और मुशायरा का आयोजन करते थे।गले मिलने की परंपरा सम्भवतः मुहम्मद शाह के दौर में शुरू हुई जो इस त्योहार का एक महत्वपूर्ण हिस्सा बन गयी।आज दीवाली मनाने का जो स्वरूप है उसका कलेवर मुग़ल काल में ही निर्मित हुआ।

  आज इस विरासत पर कुछ लोग सवाल उठाते हैं। ये कौन है जो इन मूल्यों को नकार रहे है। हमें इनसे सावधान रहने की जरूरत है।यही मूल्य हमें दुनियां में अलग पहचान देते है और इन्ही पर विश्वास करके हमनें मिल-जुल कर आजादी की लड़ाई लड़ी।इन्हें ही संविधान में जगह दी गई और उसकी प्रस्तावना में यही मूल्य स्वतंत्रता, समता, बंधुता और न्याय बनकर उभरे। आज हमें इनकी हिफाजत करने और इनके पक्ष में खड़ा होने के लिए तैयार रहना होगा अन्यथा इतिहास हमें माफ नहीं करेगा।

(लेखक  इतिहासकार और सामाजिक चिंतक)

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