सोमवार, 3 मई 2021

ये है ज़कात देने का सही वक्त



                    रमज़ान का पैग़ाम (03-05-2021)

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। इस्लाम में जकात फर्ज हैं। जकात पर मजलूमों, गरीबों, यतीमों, बेवाओं का ज्यादा हक है। इस वक्त दुनिया कोरोना महामारी की चपेट में है। ऐसे में जल्द से जल्द हकदारों तक ज़कात पहुंचा दें ताकि वह रमजान व  ईद की खुशियों में शामिल हो सकें। ये ज़कात देने का सही वक्त है। जकात फर्ज होने की चंद शर्तें है। मुसलमान अक्ल वाला हो, बालिग हो, माल बकदरे निसाब (मात्रा) का पूरे तौर का मालिक हो। मात्रा का जरुरी माल से ज्यादा होना और किसी के बकाया से फारिग होना, माले तिजारत (बिजनेस) या सोना चांदी होना और माल पर पूरा साल गुजरना जरुरी हैं। सोना-चांदी के निसाब (मात्रा) में सोना की मात्रा साढ़े सात तोला (87 ग्राम 48 मिली ग्राम ) है जिसमें चालीसवां हिस्सा यानी सवा दो माशा जकात फर्ज है।

सोना-चांदी के बजाय बाजार भाव से उनकी कीमत लगा कर रुपया वगैरह देना जायज है। जिस आदमी के पास साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना या उसकी कीमत का माले तिजारत हैं  और यह रकम उसकी हाजते असलिया से अधिक हो। ऐसे मुसलमान पर चालीसवां हिस्सा यानी सौ रुपये में ढ़ाई रुपया जकात निकालना जरुरी हैं। दस हजार रुपया पर ढ़ाई सौ रुपया, एक लाख रुपया पर ढ़ाई हजार रुपया जकात देनी हैं। सोना-चांदी के जेवरात पर भी जकात वाजिब होती है। तिजारती (बिजनेस) माल की कीमत लगाई जाए फिर उससे सोना-चांदी का निसाब (मात्रा) पूरा हो तो उसके हिसाब से जकात निकाली जाए। अगर सोना चांदी न हो और न माले तिजारत हो तो कम से कम इतने रूपये हों कि बाजार में साढ़े बावन तोला चांदी या साढ़े सात तोला सोना खरीदा जा सके तो उन रूपर्यों की जकात वाजिब होती है।


-इन्हें दी जा सकती हैं जकात

"ज़कात" में अफ़ज़ल यह है कि इसे पहले अपने भाई-बहनों को दें, फ़िर उनकी औलाद को, फ़िर चचा और फुफीयों को, फ़िर उनकी औलाद को, फ़िर मामू और ख़ाला को, फ़िर उनकी औलाद को, बाद में दूसरे रिश्तेदारों को, फ़िर पड़ोसियों को, फ़िर अपने पेशा वालों को। ऐसे छात्र को भी "ज़कात" देना अफ़ज़ल है, जो "इल्मे दीन" हासिल कर रहा हो। ऊपर बताये गये लोगों को जकात तभी दी जायेगी जब सब गरीब हो, मालिके निसाब न हो।
जकात का इंकार करने वाला काफिर और अदा न करने वाला फासिक और अदायगी में देर करने वाला गुनाहगार  हैं। मुसलमानों को चाहिए कि जल्द से जल्द जकात की रकम निकाल कर गरीब, यतीम, बेसहारा मुसलमान को दें दे ताकि वह अपनी जरुरतें पूरी कर लें। जकात बनी हाशिम यानी हजरते अली, हजरते जाफर, हजरते अकील और हजरते अब्बास व हारिस बिन अब्दुल मुत्तलिब की औलाद को देना जाइज नहीं। किसी दूसरे मुरतद बद मजहब और काफिर को जकात देना जाइज नहीं है। सैयद को जकात देना जाइज नहीं इसलिए कि वह भी बनी हाशिम में से है। कम मात्रा यानी चांदी का एतबार ज्यादा बेहतर हैं कि सोना इतनी कीमत का सबके पास नहीं। नबी के जमाने में सोना-चांदी की मात्रा मालियत के एतबार से बराबर थीं। अब ऐसा नहीं हैं। गरीब के लिए भलाई कम निसाब (मात्रा) में हैं।
 अगर आप "मालिके निसाब" हैं, तो हक़दार को "ज़कात" ज़रुर दें, क्योंकि "ज़कात" ना देने पर सख़्त अज़ाब का बयान कुरआन शरीफ में आया है। जकात हलाल और जाइज़ तरीक़े से कमाए हुए माल में से दी जाए। क़ुरआन शरीफ में हलाल माल  को खुदा की राह में ख़र्च करने वालों के लिए ख़ुशख़बरी है, जैसा कि क़ुरआन में अल्लाह तआला फ़रमाता है कि... "राहे ख़ुदा में माल ख़र्च करने वालों की मिसाल ऐसी है कि जैसे ज़मीन में किसी ने एक दाना बोया, जिससे एक पेड़ निकला, उसमें से सात बालियां निकलीं, उन बालियों में सौ-सौ दाने निकले। गोया कि एक दाने से सात सौ दाने हो गए। अल्लाह इससे भी ज़्यादा बढ़ाता है। जिसकी नीयत जैसी होगी, वैसी ही उसे बरकत देगा"।
   
       डा. एम. एम. खान
              चेयरमैन
मुग़ल एकेडमी, लल्लापुरा, वाराणसी

रविवार, 2 मई 2021

रो पड़ा बनारस का सिख समुदाय

नहीं रहे गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष सब्बरवाल

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी, वाराणसी के अध्यक्ष जसबीर सब्बरवाल का मेदांता अस्पताल में निधन हो गया। उनका पार्थिव शरीर सोमवार की सुबह बनारस पहुँचेगा। उनके निधन की खबर से बनारस का सिख पंथ शोक में डूब गया। वे अपने पीछे पत्नी, दो पुत्र व एक पुत्री का भरा परिवार छोड़ गये हैं।



जसबीर सब्बरवाल 2010 से लगातार बनारस के गुरुद्वारा प्रबंध कमेटी के अध्यक्ष थे। आज ही मेदांता में ह्रदय गति रुकने से उनका निधन हो गया। सोमवार को उनका पार्थिव शरीर निवास पहुँचेगा जहां से गुरुद्वारा गुरुबाग व गुरुद्वारा नीचीबाग ले ज़ाया जायेगा। इसके बाद उनका अंतिम संस्कार होगा। 

रमज़ान के रोज़े को तीन तरह से समझे

रमज़ान का पैग़ाम

(02-05-2021)

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। रमज़ान की नेमतों और रहमतों का क्या कहना। रमज़ान तमाम अच्छाइयां अपने अंदर समेटे है। रमज़ान का रोज़ा रोज़ेदारों के लिए रहमत व बरकत का सबब बनकर आता है। इसमें तमाम परेशानियां और दुश्वारियां बंदे की दूर हो जाती हैं। नेकी का रास्ता ऐसे खुला रहता है कि फर्ज़ और सुन्नत के अलावा नफ्ल इबादत और मुस्तहब इबादतों की भी बंदा कसरत करता है। रोज़ा कितनी तरह का होता है इसे कम ही लोग जानते हैं। तो रमज़ान के रोज़े को तीन तरह से समझे। मसलन पहलाआम आदमी का रोज़ा: जो खाने पीने और जीमाह से रोकता है। दूसरा खास लोगों का रोज़ा: इसमें खाने पीने और जीमाह के अलावा अज़ा को गुनाहों से रोज़ेदार बचाकर रखता हैमसलन हाथपैरकानआंख वगैरह से जो गुनाह हो सकते हैंउनसे बचकर रोज़ेदार रहता है। तीसरा रोज़ा खवासुल ख्वास का होता है जिसे खास में से खास भी कहते हैं। वो रोज़े के दिन जिक्र किये हुए उमूर पर कारबन भी रहते हैं और हकीकतन दुनिया से अपने आपको बिलकुल जुदा करके सिर्फ और सिर्फ रब की ओर मुतवज्जाह रखते हैं। रमज़ान की यह भी खसियत है कि जब दूसरा अशरा पूरा होने वाला रहता है तो, 20 रमज़ान से ईद का चांद होने तक मोमिनीन मस्जिद में खुद को अल्लाह के लिए वक्फ करते है। जिसका नाम एतेकाफ है। एतेकाफ सुन्नते कैफाया है यानि मुहल्ले का कोई एक भी बैठ गया तो पूरा मुहल्ला बरी अगर किसी ने नहीं रखा तो पूरा मुहल्ला गुनाहगार। पूरे मोहल्ले पर अज़ाब नाज़िल होगा। रमज़ान में एतेकाफ रखना जरूरी। एतेकाफ नबी की सुन्नतों में से एक है। एतेकाफ का लफ्ज़ी मायनेअल्लाह की इबादत के लिए वक्फ कर देना। हदीस और कुरान में है कि एतेकाफ अल्लाह रब्बुल इज्ज़त को राज़ी करने के लिए रोज़ेदार बैठते है। एतेकाफ सुन्नते रसूल है। हदीस व कुरान में है कि हजरत मोहम्मद रसूल (स.) ने कहा कि एतेकाफ खुदा की इबादत में रोज़ेदार को मुन्हमिक कर देता है और बंदा तमाम दुनियावी ख्वाहिशात से किनारा कर बस अल्लाह और उसकी इबादतों में मशगूल रहता है। इसलिए जिन्दगी में एक बार सभी को एतेकाफ पर बैठना चाहिए। या अल्लाह ते अपने हबीब के सदके में हम सबको रोज़ा रखने और दीगर इबादतों को पूरा करने की तौफीक दे।..आमीन।

       

  मौलाना डा. शफीक अजमल

(लेखक मुसलिम मामलों के जानकार)

शनिवार, 1 मई 2021

हक़ की जिन्दगी जीने की हमे तौफीक देता है रमज़ान


रमज़ान का पैगाम-
17 (01-05-2021)

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। हिजरी कलैंडर का वां महीना रमज़ान हैये वो महीना जिसके आते ही फिज़ा में नूर छा जाता हैचोर चोरी से दूर होता हैबेहया अपनी बेहयाई से रिश्ता तोड़ लेता हैमस्जिदें नमाज़ियों से भर जाती हैं। लोगों के दिलों दिमाग में बस एक ही बात रहती है कि कैसे ज्यादा से ज्यादा इबादत की जाये। फर्ज़ नमाज़ों के साथ ही नफ्ल और तहज्जुद पर भी लोगों का ज़ोर रहता हैअमीर गरीबों का हक़ अदा करते हैंपास वाले अपने पड़ोसियों काकोई भूखा न रहेकोई नंगा न रहे इस महीने में इस बात का खास ख्याल रखा जाता है। पता ये चला कि हक़ की जिन्दगी जीने की रमज़ान हमे जहां तौफीक देता है। वहीं गरीबोमिसकीनोंलाचारोंबेवाऔर बेसहरा वगैरह की ईद कैसे होकैसे उन्हें उनका हक़ और अधिकार मिले यह रमज़ान ने पूरी दुनिया को दिखा दिया। यही वजह है कि रमज़ान का आखिरी अशरा आते आते हर साहिबे निसाब अपनी आमदनी की बचत का ढ़ाई फीसद जक़ात निकालता है तो दो किलों 45 ग्राम वो गेंहू जो वो खाता है उसका फितरा।

सदका-ए-फित्र ईद की नमाज़ से पहले हर हाल में मोमिनीन अदा कर देता है ताकि उसका रोज़ा रब की बारगाह में कुबुल हो जायेअगर नहीं दिया तो तब तक उसका रोज़ा ज़मीन और आसमान के दरमियान लटका रहेगा जब तक सदका-ए-फित्र अदा नहीं कर देता। रब कहता है कि 11 महीना बंदा अपने तरीक़े से तो गुज़ारता ही हैतो एक महीना माहे रमज़ान को वो मेरे लिए वक्फ कर दे। परवरदिगारे आलम इरशाद फरमाते है कि माहे रमज़ान कितना अज़ीम बरकतों और रहमतो का महीना है इसे ऐसे भी समझा जा सकता है कि इस पाक महीने में कुरान नाज़िल हुआ।इस महीने में बंदा दुनिया की तमाम ख्वाहिशात को मिटा कर अपने रब के लिए पूरे दिन भूखा-प्यासा रहकर रोज़ा रखता है। नमाज़े अदा करता है। के अलावा तहज्जुदचाश्तनफ्ल अदा करता है इस महीने में वो मज़हबी टैक्स ज़कात और फितरा देकर गरीबों-मिसकीनों की ईद कराता है।अल्लाह ने हदीस में फरमया है कि सिवाए रोज़े के कि रोज़ा मेरे लिये है इसकी जज़ा मैं खुद दूंगा। बंदा अपनी ख्वाहिश और खाने को सिर्फ मेरी वजह से तर्क करता है। यह महीना नेकी का महीना है इस महीने से इंसान नेकी करके अपनी बुनियाद मजबूत करता है। ऐ मेरे पाक परवर दिगारे आलमतू अपने हबीब के सदके में हम सबको रोज़ा रखनेदीगर इबादत करनेऔर हक की जिंदगी जीने की तौफीक दे ..आमीन।

मौलाना हसीन अहमद हबीबी
(इमाम शाही मुग़लिया मसजिद बादशाहबाग, वाराणसी)

रमज़ान हेल्प लाइन: आपके सवालों का जवाब दे रहे हैं मुफ्ती साहब

बेरोज़ेदार को भी खुलेआम खाने पीने की इजाज़त नहीं

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। शरीयत ने जिन लोगों को रोजा न रखने की इजाजत दी है या जो बेरोज़ेदार हैं क्या वो खुलेआम  सबके सामनेे खा पी सकते है ? यह सवाल रेवड़ीतालाब से शमीम ने रमज़ान हेल्पलाइन में किया तो जवाब में उलेेमा ने कहा कि बेरोज़ेदार को भी खुलेआम खाने पीने की इजाज़त शरीयत में नहीं दी गयी है। चाहे उसे शरीयत रोज़ा न रखने की छुट देता हो या न देता हो। रमज़ान अली ने सवाल किया, रमजान के रोजे की नीयत किस तरह से की जाती है। इस पर उलेमा ने जवाब दिया, नीयत दिल के इरादे  का नाम है मगर जुबान से कह लेना अफज़ल है अगर रात में नीयत करें तो यूं कहे "नवैतु अन असू म गदन लिल्लाहि तआला मिन फ रजि रमजान"  और दिन में नीयत करें तो यूं कहे "नवैतु अन असू म हाजल यौम लिल्लाहि तआला मिन फरजिरमाजना"।

रमज़ान हेल्प लाइन में आये इन सवालों का जवाब मुफ्ती बोर्ड के सदर मुफ्ती मौलाना अब्दुल हादी खां हबीबीसेक्रेटरी मौलाना हसीन अहमद हबीबी व मदरसा खानमजान के उस्ताद मौलाना अज़हरुल कादरी ने दिया।

इन नम्बरों पर होगी रहनुमाई

9415996307, 9450349400, 9026118428, 9554107483



शुक्रवार, 30 अप्रैल 2021

इमाम हसन की शान में सजी महफ़िल

शायरों ने पेश किया कलाम, नमाज़ इफ़्तार और हुई दुआएं

वराणसी(दिल इंडिया लाइव)। 17 रमज़ान को मस्जिद मीर नज़ीर औरंगाबाद में क़दीमी महफ़िल का आयोजन किया गया। मेहफ़िल के संयोजक हाजी फरमान हैदर ने बताया के हर साल इस मेहफ़िल में बड़ी संख्या मे लोग शिरकत करते थे लेकिन कोरोना और लॉकडाउन के चलते सोशल डिस्टेंसिंग के साथ कुछ ही लोगों ने शिरकत कर रवायत को क़ायम रखा। महफ़िल की सदारत मौलाना ज़हीन हैदर ने की, मौलाना बाक़र रज़ा बलियवी ने नमाज़ अदा कराई। नमाज़ के बाद कोरोना के खातमे के लिए दुआ ख्वानी का भी आयोजन हुआ।

इस अवसर पर शायरों दिलकश ग़ाज़ीपुरी, बाकर बलियवी, शाद सिवानी, ज़ैन बनारसी, आमिर चंदौलवी, नक़ी बनारसी, नज़ाकत बनारसी, नबील बनारसी ने कलाम पेश किया। अंत में मस्जिद के मोतवल्ली ने लोगों का शुक्रिया अदा किया। हाजी फरमान हैदर ने बताया के शनिवार 18 रमज़ान की शाम से मौला अली की शहादत पर मजलिस मातम, अलम, ताबूत का सिलसिला शुरू होगा जो 21 रमज़ान मंगलवार की शाम तक चलेगा।

ज़कात दोगे तो माल नहीं होगा बर्बाद


रमज़ान का पैग़ाम-16

(30-04-2021)

वाराणसी (दिल इंडिया लाइव)। ज़कात देना हर साहिबे नेसाब पर वाजिब है। साहबे नेसाब वो है जिसके पास साढ़े सात तोला सोना या साढ़े बावन तोला चांदी में से कोई एक होया फिर बैंकबीमापीएफ या घर में इतने के बराबर साल भर से रकम रखी हो तो उस पर मोमिन को ज़कात देना वाजिब है। ज़कात शरीयत में उसे कहते हैं कि अल्लाह के लिए माल के एक हिस्से को जो शरीयत ने मुकर्रर किया है मुसलमान फक़़ीर को मालिक बना दे। ज़कात की नीयत से किसी फक़़ीर को खाना खिला दिया तो ज़कात अदा न होगीक्योंकि यह मालिक बनाना न हुआ। हां अगर खाना दे दे कि चाहे खाये या ले जाये तो अदा हो गई। यूं ही ज़कात की नियत से कपड़ा दे दिया तो अदा हो गई। 

ज़कात वाजिब के लिए चंद शर्ते :

मुसलमान होनाबालिग होनाआकि़ल होनाआज़ाद होनामालिके नेसाब होनापूरे तौर पर मालिक होनानेसाब का दैन से फारिग होनानेसाब का हाजते असलिया से फारिग होनामाल का नामी होना व साल गुज़रना। आदतन दैन महर का मोतालबा नहीं होता लेहाज़ा शौहर के जिम्मे कितना दैन महर हो जब वह मालिके नेसाब है तो ज़कात वाजिब है। ज़कात देने के लिए यह जरूरत नहीं है कि फक़़ीर को कह कर दे बल्कि ज़कात की नीयत ही काफी है।

फलाह पाते हैं जो ज़कात देते है

नबी-ए-करीम ने फरमाया जो माल बर्बाद होता है वह ज़कात न देने से बर्बाद होता है और फरमाया कि ज़कात देकर अपने मालों को मज़बूत किलों में कर लो और अपने बीमारों को इलाज सदक़ा से करो और बला नाज़िल होने पर दुआ करो। रब फरमाता है कि फलाह पाते हैं वो लोग जो ज़कात अदा करते है। जो कुछ रोज़ेदार खर्च करेंगे अल्लाह ताला उसकी जगह और दौलत देगाअल्लाह बेहतर रोज़ी देने वाला है। आज हम और आप रोज़ी तो मांगते है रब से मगर खाने किइफ्तार कि खूब बर्बादी करके गुनाह भी बटौरते हैइससे हम सबको बाज़ आना चाहिए। 

उन्हे दर्दनाक अज़ाब की खुशखबरी सुना दो

अल्लाह रब्बुल इज्जत फरमाता है जो लोग सोनाचांदी जमा करते हैं और उसे अल्लाह की राह में खर्च नहीं करते उन्हें दर्दनाक अज़ाब की खुशखबरी सुना दो। जिस दिन जहन्नुम की आग में वो तपाये जायेंगे और इनसे उनकी पेशानियांकरवटें और पीठें दागी जायेगी। और उनसे कहा जायेगा यह वो दौलत हैं जो तुमने अपने नफ्स के लिए जमा किया था। ऐ अल्लाह तू अपने हबीब के सदके में हम सबका रोज़ा कुबुल कर ले और हम सबको ज़कात देने की तौफीक दे..आमीन।

   

               मौलाना शमशुद्दीन साहब

{इमामजामा मस्जिद कम्मू खानडिठोरी महालवाराणसी}

Om Prakash Rajbhar बोले आदर्श समाज के निर्माण में स्काउट गाइड का योगदान सराहनीय

भारत स्काउट्स एंड गाइड्स के स्थापना दिवस सप्ताह का समापन जमीयत यूथ क्लब के बच्चों ने किया मंत्री ओपी राजभर का अभिनंदन Varanasi (dil India li...